न्यूयॉर्क में 2004 के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में दी गयी सीख
 

ली होंगज़ी
21 नवंबर, 2004 ~ न्यूयॉर्क

आप कड़ा परिश्रम कर रहे हैं। (तालियाँ)

एक साधक के रूप में, और विशेष रूप से एक फा-सुधार की अवधि के दाफा शिष्य के रूप में, आप पर बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है, और आपका एक महान उद्देश्य है जो इतिहास ने आपको सौंपा है। लेकिन आपने बहुत अच्छा किया है, और मैं, आपका गुरू, ब्रह्मांड में सभी प्राणियों के सामने यह कह सकता हूं। दूसरे शब्दों में, आपने उनकी प्रशंसा पायी है। इस संसार में आप जो काम करते हैं, चाहे वे बहुत हद तक उन दैनिक कार्यों की तरह दिखते हैं जो साधारण लोग करते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि एक दाफा शिष्य का आधार और उसके द्वारा किए जाने वाले कार्यों का उद्देश्य पूर्ण रूप से भिन्न है। मानव संसार बस भ्रम में है, और इसलिए साधारण लोगों के लिए, जो वास्तविक और मूर्त चीजों में उलझे हुए हैं, यह बताना कठिन है कि क्या सच है और क्या नहीं। इसलिए चाहे साधारण लोग इसे समझें या नहीं, दाफा शिष्य केवल सभी प्राणियों को बचाने के लिए साधारण लोगों के रूपों का उपयोग कर रहे हैं। और आप साधकों के लिए, ठीक इसी कारण से कि मानव समाज में भ्रम है, इस वातावरण में होने से आपको साधना करने का अवसर मिलता है, और जो लोग साधना में सफल होते हैं वे उत्कृष्ट हैं।

अधिकांश शिष्यों ने पूर्ण रूप से फा का मान्यकरण करने में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। निश्चित ही, कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने ऐसा नहीं किया है, लेकिन वे यहाँ विशेष रूप से बुरे काम करने के लिए आये थे; प्राचीन शक्तियों ने शुरू से ही यह व्यवस्था कर रखी थी कि वे ये काम करेंगे। इसलिए चाहे वे स्वाभाविक वातावरण में दाफा शिष्यों के साथ कैसा भी व्यवहार करें, केवल विशेष अवसर पर ही आप उनका वास्तविक रूप देख पाते हैं। चाहे वे चीजों के बारे में कितनी भी अच्छी तरह से बात करें या सबके सामने कितना भी अच्छा व्यवहार करें, यह केवल विशेष अवसर पर ही पता चलता है कि वे वास्तव में कैसे हैं।

आप ऐसे कठिन समय से गुजरे हैं जो परीक्षाओं और कठिनाइयों से भरा था। अब स्थिति को देखें तो, यह पहले जैसी नहीं है। जब यह 20 जुलाई, 1999 के बाद पहली बार शुरू हुआ, तो दुष्टता का प्रकोप इतना तीव्र था, और जिस प्रकार से उन्होंने अपनी दुष्ट शक्तियों को पंक्तिबद्ध किया, ऐसा लग रहा था कि वे वास्तव में दाफा शिष्यों को गंभीर संकट में डाल देंगे। लेकिन अब आपने देखा है, है न, कि इतिहास उन दुष्ट प्राणियों के लिए नहीं बनाया गया था, बल्कि दाफा शिष्यों को तैयार करने और अंतिम काल के दौरान चेतन जीवों को बचाने के लिए बनाया गया था। (तालियाँ) युगों पहले से, मानव जाति विभिन्न अवधियों में अनेक, अनेक सभ्यताओं से गुजरी। प्राचीन काल से लेकर आज तक सभी प्रकार की ऐतिहासिक संस्कृतियों से मनुष्यों में अनेक, अनेक चीजें समाहित हुई हैं।

जैसा कि साधारण लोग इसे देखते हैं, मानव जाति के हाल के इतिहास और संस्कृतियों के साथ जो कुछ भी हुआ है, और पृथ्वी पर जीवों के साथ युगों पहले जो कुछ भी हुआ है, वह मानव जाति का इतिहास और जीवन के प्रसार की प्रक्रिया बनाता है। जैसा कि वैज्ञानिक इसे देखते हैं, यह जीवन के विकास की प्रक्रिया है। वैसे सच तो यह है कि यह दोनों में से कोई भी नहीं है। इस संसार के सभी प्राणियों सहित संपूर्ण त्रिलोक की रचना, निर्माण, उद्भव, जन्म और सृजन इसलिए किया गया था जिससे ब्रह्मांड के अंतिम समय में फा-सुधार के दौरान चेतन जीवों को बचाया और उद्धार किया जा सके। दूसरे शब्दों में, त्रिलोक का निर्माण इसी उद्देश्य से किया गया था, ब्रह्मांड के जीवों को बचाने के उद्देश्य से।

इससे भी पहले के युगों में, इस आयाम में जहाँ मानवजाति है, इस वातावरण में जहाँ मानवजाति है, और अणुओं से बने भौतिक स्तर पर, मानवजाति का अस्तित्व ही नहीं था। खोजबीन के माध्यम से आधुनिक लोगों ने पाया है कि परग्रही जीव अस्तित्व में हैं। और वास्तव में, अतीत में ऐसे प्राणी ही थे जो अणुओं से बने इस स्तर पर फैले हुए थे, और मनुष्य का अस्तित्व ही नहीं था। देवताओं ने मनुष्य को बाद में क्यों बनाया? क्योंकि ब्रह्मांड का पुनर्निर्माण किया जाना था, चेतन जीवों को बचाना था, और त्रिलोक को इस प्रकार के वातावरण की आवश्यकता थी—ऐसा वातावरण जो ब्रह्मांड के पुनर्निर्माण का केंद्र बिंदु बन जाए, और ऐसा वातावरण जहाँ जब इस विशेष वातावरण में महान सिद्धांत सिखाया जाएगा तो सभी लोकों के प्राणी फा सुन पाएंगे।

ब्रह्मांड में सभी प्राणियों को बचाने के महान उद्देश्य से ही त्रिलोक और विशेष रूप से यहाँ के मनुष्यों का निर्माण किया गया था। इसलिए इतिहास में प्रत्येक अवधि में जो कुछ भी हुआ है, जिसमें वर्तमान का मानव इतिहास भी सम्मिलित है, उसका उद्देश्य मनुष्य के लिए, आज की मानवजाति के लिए एक संस्कृति का निर्माण करना है, जिससे वह फा को समझ सके। इसका उद्देश्य इस संसार में लोगों के लिए केवल जीवनयापन करना नहीं था, और न ही यह कि प्रगति करना या अपने लिए किसी प्रकार का अच्छा जीवन जीना। मनुष्य अच्छी चीजों की इच्छा रख सकता है और उनको पाने के लिए काम कर सकता है, लेकिन त्रिलोक और मानव जाति का उद्भव इसके लिए बिल्कुल भी नहीं हुआ था।

यदि ऐसा है, तो इसके बारे में सोचें : क्या इतिहास में घटित हुई वास्तव में प्रमुख घटनाओं के पीछे भी कोई कारण नहीं था? क्या वे आज की मानवजाति के लिए एक निश्चित आधार नहीं बना रही थी? कल्पना करें कि यदि शाक्यमुनि, ईसा, मैरी, लाओ ज आदि का कभी अस्तित्व नहीं होता। तब क्या लोग जानते कि सच्ची आस्था क्या है, दिव्य प्राणी क्या है, बुद्ध क्या है, ताओवादी देवता क्या है, स्वयं की साधना कैसे की जाए, और आध्यात्मिक अभ्यास क्या है? और दिव्यलोक क्या है? यदि लोगों को पता ही नहीं होता कि वे चीजें क्या हैं, तो आज मेरे लिए महान फा सिखाना अविश्वसनीय रूप से कठिन होता। यदि मुझे लोगों को उन अवधारणाओं को शुरू से समझाना पड़े, तो यह एक महान फा सिखाना नहीं होगा।

इतिहास के प्रत्येक काल में प्रत्येक भिन्न-भिन्न जातीय समूह के प्राणियों ने जो भिन्न-भिन्न मनःस्थितियाँ दर्शायी हैं, तथा पवित्र को दुष्ट से, उचित को अनुचित से, तथा अच्छे को बुरे से अलग करने के मामले में उनके वैश्विक दृष्टिकोण, ये सभी चीजें देवताओं द्वारा मनुष्यों के लिए लंबे, चले आ रहे वर्षों में, उद्देश्यपूर्ण रूप से बनायी गयी थीं, जिससे लोगों को उचित और अनुचित, अच्छाई और बुराई क्या है, इसकी मूल समझ प्राप्त करने में सक्षम बनाया जा सके। फिर जब दाफा का प्रसार होगा और चेतन जीवों का उद्धार शुरू होगा, तो लोग इन सभी चीजों को समझ पाएँगे और यह बताने में सक्षम होंगे कि क्या यह फा अच्छा है, क्या यह पवित्र है।

इतिहास के दौरान लोगों को देवताओं के बारे में पता चला है। "देवता" क्या है? हालाँकि यह केवल एक बहुत ही उथली समझ है, लोग जानते हैं कि देवता गौरवशाली और पवित्र होते हैं। और चाहे भिन्न-भिन्न लोग "देवताओं" को भिन्न-भिन्न तरीके से जानते और समझते हों, लेकिन वे सभी मानते हैं कि देवता लोगों के लिए अच्छे हैं और उन्हें बचा सकते हैं। चीनी इतिहास के विभिन्न राजवंशों और अवधियों में उभरे सभी वीर व्यक्ति, वे सभी उत्कृष्ट सांस्कृतिक व्यक्ति जिन्होंने इतिहास बनाया, वे सभी वास्तव में मानव जाति के सोचने के तरीके स्थापित कर रहे थे, संरचना और सोचने के तरीके स्थापित कर रहे थे जो आज के लोगों की विशेषता है। यह एक अद्भुत उपक्रम रहा है जिसमें मानव प्रजाति के विचारों की रचना की गयी थी। यह युगों-युगों से होता आ रहा है, जहां मानव जाति को विभिन्न चीजों और संस्कृतियों का अर्थ समझने से पहले उनका प्रत्यक्ष अनुभव करना पड़ा।

इसलिए जब कुछ घटित होता है तो व्यक्ति जान सकता है कि इसका क्या अर्थ है, और उस घटना के माध्यम से, वह जान सकता है कि यह गहरे स्तर पर क्या दर्शाता है। उदाहरण के लिए, "अच्छाई" क्या है, अच्छाई में क्या सम्मिलित है, इसके अर्थ क्या हैं, और इस शब्द का विस्तार क्या है? या इसी प्रकार, “दुष्टता” क्या होती है, और किसी चीज के “उचित” या “अनुचित” होने का क्या अर्थ है? अपने जीवन के वास्तविक अनुभवों के माध्यम से, लोगों को ये सभी बातें समझ में आयीं, और वे वास्तव में समझ सके थे कि उनका क्या अर्थ है। तभी लोगों को इन सबकी गहरी समझ हो पायी। ये सरल, साधारण बातें नहीं हैं जिन्हें आप लोगों को रातों-रात समझा सकते हैं।

जब देवताओं ने पहली बार मनुष्यों का निर्माण किया, तो लोगों के मन में कुछ भी नहीं था, यह पूर्ण रूप से रिक्त था, वे उचित और अनुचित के बीच अंतर नहीं कर सकते थे, और अच्छाई व दुष्टता एक साथ उपस्थित थी। [उनके व्यवहार में] अतिवाद बहुत अधिक था : जब वे प्रसन्न होते थे, तो वे दयालु हो जाते थे, और जब वे दुखी होते थे, तो वे दुष्ट हो जाते थे। लेकिन आधुनिक मनुष्य की एक भिन्न ही बात है। ऐसा क्यों है कि जब आज के लोग आधुनिक काल में पहुँचे तो वे अचानक इतने समझदार हो गये? इसका संबंध लोगों के निर्माण की प्रक्रिया के अतरिक्त एक और कारक से था, जिसके बारे में मैंने अभी बात की, और वह यह है कि उच्च-स्तरीय प्राणियों ने मनुष्यों के रूप में अवतार लिया है। जहाँ तक मानवजाति का प्रश्न है, इतिहास के दौरान इसकी प्रक्रिया वास्तव में मानव व्यवहार और विचार को स्थापित करने की थी, या दूसरे शब्दों में कहें तो, यह आज के वास्तविक लोगों का निर्माण करने की थी। तो इन सभी चीजों का क्या अर्थ था? जब आज दाफा व्यापक रूप से प्रसारित किया जा रहा है तो मनुष्य के लिए फा को समझना संभव बनाना था। मैं जो कह रहा हूँ, वह यह है कि इस सब की योजना बहुत पहले बनायी गयी थी; इसकी स्थापना बहुत पहले ही शुरू हो गयी थी।

और एक बात है जिसके बारे में मैं आपको बताना चाहता हूँ, वह यह है कि कौन वास्तव में साधना करता है और कौन वास्तव में सच्ची आस्था रखता है। अतीत में, बहुत से लोग इस या उस साधना पद्धति के बारे में, अमुक अभ्यास के बारे में, या अमुक आस्था के बारे में बात करते थे। लेकिन मैं आपको यह बताने जा रहा हूँ कि इतिहास में, चाहे कितने भी देवता या कितने भी ज्ञानप्राप्त व्यक्ति यहाँ आये हों, उनका वास्तविक उद्देश्य साधना और सच्ची आस्था की संस्कृति को स्थापित करना था जो दाफा के लिए आवश्यक था। (तालियाँ) किसी ने लोगों का उद्धार नहीं किया, और कोई भी दिव्यलोक में नहीं पहुँच पाया, इसका कारण यह है कि प्राचीन साधना पद्धतियाँ इस दाफा का आधार रखने के लिए आयी थीं जो आज लोगों का वास्तव में उद्धार कर सकता है। अतीत में जो देवता आये थे, उनके साथ वास्तव में कुछ लोग थे जिन्होंने उन देवताओं के कार्यों के परिणामस्वरूप उद्धार प्राप्त किया। फिर भी वह व्यक्ति का वास्तविक स्व नहीं था जिसका उद्धार हुआ था, बल्कि उसकी सहायक आत्मा थी। और यहां तक कि जो देवता नीचे आये, वे जिन शरीरों में उस समय बसे थे... एक मानव शरीर, वह अभी भी मानव संसार में पुनर्जन्म के चक्र का भाग है, और यहां तक कि जो लोग उन शरीरों में बसे थे, उनका भी उद्धार नहीं हुआ।

इसलिए दूसरे शब्दों में, इतिहास में कई लोगों ने प्रचार किया है कि वे "लोगों को बचा रहे हैं", लेकिन किसी ने भी लोगों को नहीं बचाया। जब शाक्यमुनि ने युगों पहले अपना फा प्रदान किया, तो उनके शिष्यों ने उनसे पूछा, "गुरूजी, क्या हमारे लिए सांसारिक जगत से अपने संबंधों को तोड़े बिना तथागत स्तर तक साधना करना संभव है?" या दूसरे शब्दों में, क्या वे साधारण लोगों के परिवेश और इस जगत के सामाजिक वातावरण को पीछे छोड़े बिना देवताओं या बुद्ध के स्तर तक साधना कर सकते हैं? शाक्यमुनि ने इसके बारे में सोचा और कहा, "इसके लिए, आपको तब तक प्रतीक्षा करनी होगी जब तक कि चक्र को घुमाने वाले पवित्र राजा संसार में अवतरित नहीं होते।" (तालियाँ) दो हजार वर्ष से अधिक समय बीत चुका है, और सच्चे धर्मों के सभी शिष्य प्रतीक्षा कर रहे हैं। किस बात की प्रतीक्षा? ऊपर के देवताओं के भव्य प्रदर्शन की? देवताओं के यहाँ आने की, जिससे आपको साधना करने या अच्छी तरह से साधना करने की चिंता करने की आवश्यकता न हो, और इससे कोई अंतर न पड़े कि कोई अच्छा है या बुरा, और सभी एक साथ दिव्यलोक जाएंगे?

निश्चित ही, मैं चाहे जो भी हूँ, लोग जानते हैं कि मैं फा को प्रसारित कर रहा हूँ और लोगों को बचा रहा हूँ। लेकिन आज यहाँ आपके साथ जो गुरू फा सिखा रहे हैं, उनका भौतिक शरीर एक साधारण व्यक्ति का है। जहाँ तक लोगों की मेरे बारे में सोच का प्रश्न है, बहुत से साधारण लोगों की अपनी-अपनी राय है। यह ठीक है—इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि वे मुझ पर विश्वास करते हैं या नहीं। मैंने यह नहीं कहा कि मैं देवता या बुद्ध हूँ। साधारण लोग मुझे एक साधारण, सामान्य व्यक्ति समझ सकते हैं, यह ठीक है। मैं जो कुछ भी करता हूँ, वह मानवीय क्रियाकलापों का रूप लेता है; मैं फा-सुधार अवधि के दाफा शिष्यों को बचाने के लिए साधारण, सामान्य मनुष्यों के साधनों का उपयोग कर रहा हूँ। कोई भी उच्च-स्तरीय जीव, जब वह इस सामाजिक वातावरण में, इस प्रकार के भ्रामक आयाम में लोगों को बचाता है, तो मानव संसार में लोगों को चमत्कारिक रूप से बचाने के लिए केवल भव्य, दिव्य प्रदर्शनों का उपयोग नहीं करेगा। (तालियाँ)

लेकिन यदि वह जो करता है वह छोटे प्रमाण में है, या केवल कुछ लोगों को सम्मिलित करता है, या यदि यह संस्कृति बनाने के लिए अतीत में कुछ किया गया था, तो यह अलग बात है। मानव जाति के लिए चीजें ऐसी ही हैं। निश्चित ही, हालाँकि, कुछ भी पक्का नहीं है। हो सकता है कि जब फा मानव संसार का सुधार करेगा तो मैं दिव्य साधनों का उपयोग करूंगा, क्योंकि उस समय चीजों को उसी प्रकार करने की आवश्यकता हो सकती है। लेकिन यदि फा द्वारा ब्रह्मांड का सुधार करने के शुरुआत के समय समाज की चीजों में बड़े प्रमाण पर दिव्य साधनों का उपयोग किया जाता, तो इससे साधकों में कुछ मोहभाव उत्पन्न हो सकते थे।

कुछ लोग सोच रहे हैं, "देवताओं के पास बहुत सी क्षमताएँ हैं। वे निर्धन लोगों को क्यों नहीं बचाते और बुरे लोगों को दंडित क्यों नहीं करते? वे आकर चमत्कार क्यों नहीं करते?" त्रिलोक के निर्माण ने मानव समाज के अस्तित्व के तरीके और उद्देश्य को स्थापित किया। यह एक भ्रम से भरा समाज है, और एक ऐसा समाज जहाँ चेतन जीव सत्य को पूर्ण रूप से नहीं देख सकते। जो कोई भी यहाँ साधना करना चाहता है, उसे भ्रम के बीच ऐसा करना होगा, और एक अच्छा मनुष्य बनना होगा, साधारण मानवीय साधनों का उपयोग करके अच्छे काम करने होंगे, और मोहभावों को त्यागना होगा। तभी वे यहाँ से बच सकते हैं, और तभी इसे साधना कहा जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति यहाँ पूर्ण रूप से दिव्य साधनों का उपयोग करके कुछ करता है, तो वह साधना नहीं है। इतिहास में कई ताओ साधकों ने मानव संसार में दिव्य कार्य किए थे, और वह पूर्वकाल की संस्कृति का निर्माण करने के लिए था।

हाल के समय में यह दुर्लभ क्यों हो गया है? ऐसा इसलिए है क्योंकि दाफा के प्रसार का समय जितना निकट आता गया, ऐसी चीजों के घटित होने की उतनी ही कम अनुमति दी गयी। हाल के समय में, फा-सुधार शुरू होने के बाद और जब फा-सुधार अवधि के बाद दाफा शिष्य साधना शुरू करने वाले थे, तो आवश्यकताएँ और भी बढ़ गईं। विशेष रूप से, जब ब्रह्मांड के प्राणियों के इस विशेष समूह ने फा का मान्यकरण करना और फलपदवी की ओर बढ़ना शुरू किया, तो यहाँ का वातावरण और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया, इसलिए नियम और भी कठोर हो गये और लोगों को कभी कभार ही वास्तविक स्थिति देखने की अनुमति दी गयी। प्राणियों के इस समूह को उच्च स्तरों तक साधना करनी है, इसलिए उनके लिए आवश्यकताएँ भी उतनी ही अधिक हैं। प्राणियों के इस समूह के कंधों पर बहुत बड़े ऐतिहासिक उत्तरदायित्व हैं और उन्हें बहुत ही कठिन वातावरण से गुजरना है। (तालियाँ) इसलिए यही कारण है कि दाफा शिष्य उल्लेखनीय हैं।

दूसरे शब्दों में, आज के दाफा शिष्यों की साधना परिस्थिति इतिहास की किसी भी साधना पद्धति या परिस्थिति से भिन्न है। मैंने हमेशा कहा है कि प्राचीन शक्तियों का भाग लेना दमन का एक रूप है और हस्तक्षेप का एक रूप है। यदि अतीत में देवताओं ने लोगों की सह आत्माओं को बचाया था न कि उनके वास्तविक मुख्य शरीरों को, तो सभी इस बारे में सोचें, क्या लोगों को बचाने का वह तरीका आज दाफा शिष्यों की साधना के लिए काम करेगा? दाफा शिष्यों के मुख्य शरीर, साथ ही संसार के लोगों के भी, सतह पर हैं। तो क्या उन्होंने जो किया वह उचित है? क्या यह काम करेगा? यह बिल्कुल काम नहीं करेगा। इसलिए मैं कहता हूँ कि वे हस्तक्षेप कर रहे हैं। यह साधना पद्धति और प्रारूप जिसे मैंने आज सभी को अपनाने के लिए कहा है, वह है साधारण मानव समाज के अनुरूप साधना करना और यथासंभव अधिकतम सीमा तक साधारण मानवीय साधनों का उपयोग करके दाफा का मान्यकरण करना (तालियाँ), और यह अभूतपूर्व है।

वे देवता, वे इस प्रकार की साधना पद्धति को कैसे संभालें इसके विषय में कुछ नहीं जानते, और उन्होंने जो किया है वह पूर्ण रूप से अनुचित है, इसलिए वे निश्चित ही दाफा शिष्यों की साधना में हस्तक्षेप का एक रूप हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि उनमें योग्यताओं की कमी है, इसका अर्थ केवल यह है कि पुराने ब्रह्मांड ने ऐसे प्राणियों को इसी प्रकार बनाया है, और पुराने ब्रह्मांड के ज्ञान की सीमा इतनी ही है। इस फा-सुधार के दौरान, ब्रह्मांड ने पिछली कमियों को पूर्ण किया है और उन चीजों को परिवर्तित किया है जिन्हें अतीत का ब्रह्मांड परिवर्तित करने में विफल रहा। उसके कारण, दाफा शिष्यों को बचाया जा सकता है और वे साधना के माध्यम से फलपदवी तक पहुँच सकते हैं। यदि आज अतीत के साधना के तरीकों का पालन किया जाता, तो एक भी दाफा शिष्य फलपदवी तक साधना नहीं कर पाता।

केवल जब कोई व्यक्ति उस पद्धति का अनुसरण करता है जिसका उपयोग दाफा आज चीजों को प्राप्त करने, साधना करने और लोगों को वास्तव में बचाने के लिए करता है, तभी वह फलपदवी प्राप्त कर सकता है। (तालियाँ) और यह केवल फलपदवी नहीं है—व्यक्ति वास्तव में बच जाता है, व्यक्ति की मुख्य आत्मा बच जाती है। (तालियाँ) जहाँ तक उन तथाकथित देवताओं का प्रश्न है जो फा-सुधार में बाधा डालते हैं, वे इसका केवल कुछ भाग ही जानते हैं, पूर्ण रूप से नहीं, वे केवल अतीत के बारे में जानते हैं, वर्तमान या भविष्य के बारे में नहीं, और केवल सतही रूप जानते हैं, आंतरिक चीजें नहीं। जब वे ऐसी चीजें करने का प्रयास करते हैं जो वे करने में सक्षम नहीं होते हैं, तो वे फा-सुधार और दाफा शिष्यों की साधना में गंभीर हस्तक्षेप लाते हैं। इसलिए मैं कहता हूँ कि आज मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ वह इतिहास में घटित हुई घटनाओं से पूर्ण रूप से भिन्न है। इतिहास में दाफा शिष्यों और ईसाइयों के दमन को देखें तो, उपरी तौर पर दोनों का दमन किया जा रहा था।

लेकिन इन साधकों के लिए, जो दिव्यता की ओर जा रहे हैं, वास्तव में जो घटित होता है वह भिन्न है। उन्हें सहना ही पड़ा क्योंकि अतीत के ब्रह्मांड में उन गहरी जड़ें जमाये हुए ऐतिहासिक मुद्दों को हल करने की क्षमता नहीं थी, जिसके कारण उच्च-स्तरीय प्राणी को भी देवताओं के साथ-साथ मनुष्यों का भी दमन करना पड़ा जो देवत्व की ओर बढ़ रहे थे। यह सब लज्जाजनक था, ब्रह्मांड के इतिहास और देवताओं दोनों के लिए। आज मैं जो कर रहा हूँ वह न केवल उस मार्ग से भिन्न है जो उन्होंने अतीत में अपनाया था; यह भविष्य और अतीत के बीच का भी अंतर है। यह वह तरीका है जो दाफा ने लोगों को दिया है; दाफा शिष्य और मैं भविष्य के लिए एक आधार रख रहे हैं। भविष्य की साधना पद्धतियाँ हमेशा ऐसी ही रहेंगी! (तालियाँ) केवल इसे ही वास्तव में लोगों को बचाना कहा जा सकता है, और केवल यही वास्तव में लोगों को बचा सकता है।

इनमें से कुछ भी इच्छानुसार परिवर्तित नहीं किया जा सकता। सब कोई जानता है कि अभी फा-सुधार की अवधि है—ब्रह्मांड का नवीनीकरण, पुनर्निर्माण और पुनः सृजन किया जा रहा है। केवल इस परिस्थिति में ही कमियों को सुधारा जा सकता है, और कमियों को तभी सुधारा जा सकता है जब विशाल नभमंडल का पुनर्निर्माण किया जा रहा हो। इसलिए यह एक अवसर है। किसी भी प्राणी को इस अवसर में हस्तक्षेप करने या उसे हानि पहुँचाने की अनुमति नहीं है। जो भी हस्तक्षेप करता है वह पाप करता है, और जो भी हस्तक्षेप करता है उसे उत्तरदायित्व उठाना होगा।

मैंने अभी जो कहा, वह मूल रूप से आज के दाफा शिष्यों की साधना पद्धति और अतीत के लोगों की साधना पद्धति के बीच के अंतर को सारांशित करता है। यदि कोई व्यक्ति बचना चाहता है, तो उसे इस तथ्य से ऊपर उठना होगा जिसमें वह है और एक कठिन वातावरण का प्रत्यक्ष अनुभव कर रहा है जहाँ प्रतिकूलता, स्वार्थ, भावनाएँ और इच्छाएँ हैं। हर चीज में एक साधक का स्वार्थ सम्मिलित होगा, और कोई भी चीज आपको एक व्यक्ति के रूप में, आपके विचारों और भावनाओं, आपके नैतिकगुण और उन चीजों को प्रभावित कर सकती है जिनसे आपको गहरा मोहभाव है। यदि आप एक निश्चित मार्ग अपनाने और कुछ निश्चित विकल्प चुनने में सफल होते हैं, तो आप असाधारण हैं। अन्यथा, आप एक साधारण व्यक्ति हैं। यदि आप साधारण लोगों के तर्क और मोहभावों से बाहर निकलने में सक्षम होते हैं, तो आप एक देवता हैं। (तालियाँ) यह अतीत की साधना पद्धतियों से पूर्ण रूप से भिन्न है।

अतीत में लोग संसार के लोगों से बचते हुए साधना करने के लिए मंदिरों और मठों या पर्वतों में जाते थे। वे लोग शारीरिक रूप से बहुत अधिक नैतिकगुण परीक्षाओं से नहीं गुजरे या उनके मोहभावों पर प्रत्यक्ष रूप से दबाव नहीं डाला गया, और उन्हें भौतिक चीजों के लिए प्रत्यक्ष रूप से परीक्षा नहीं देनी पड़ी। इसलिए व्यक्ति का मुख्य शरीर ऐसा लगता है जैसे उसने साधना नहीं की। चाहे व्यक्ति ने अपने जीवनकाल में एक सामान्य जीवन त्याग दिया हो, लेकिन उस व्यक्ति के लिए यह एक भिन्न जीवनशैली अपनाने से अधिक कुछ नहीं था। यदि उसकी सहायक आत्मा ने वास्तव में सफलतापूर्वक साधना की और उसके शरीर से निकली एक सहायक आत्मा एक देवता बन गयी, तो इसके बदले में उसको पुण्य मिलेगा।

उस व्यक्ति को अपने अगले जीवन में पूण्य प्राप्त होगा। "पूण्य" से, इसका अर्थ था कि उसे सांसारिक पूण्य मिलेगा, उससे अधिक कुछ नहीं। साधना के माध्यम से कुछ पाने की चाह रखने वाले प्राणी के दृष्टिकोण से देखें तो कौन उन चीजों को पाने के लिए साधना करेगा? मूल स्तर पर कहें तो, त्रिलोक में कुछ भी इसके लिए नहीं बनाया गया था, और कोई भी चेतन जीव उसके लिए नहीं आया था। दूसरे शब्दों में, आज के दाफा शिष्यों की साधना सबसे भव्य है, और यह भविष्य के लिए एक मार्ग प्रशस्त कर रही है। इसलिए अपने मार्ग पर अच्छी तरह चलना सबसे महत्वपूर्ण है। (तालियाँ)

मैंने हमेशा कहा है कि दाफा शिष्य अतिवाद नहीं कर सकते। आपको अपने मार्ग पर अच्छी तरह चलना चाहिए। यदि आप अपनी कल्पना को बेलगाम छोड़ देते हैं, और आज किसी चीज के बारे में आपकी समझ अनुचित है और कल आप अचानक प्रेरित होकर कुछ और करते हैं, या आप दिखावे के प्रति मोहभाव से प्रेरित होकर मूर्खतापूर्ण काम करते रहते हैं, तो ये सभी चीजें आपकी मुख्य आत्मा और एक प्राणी के रूप में आपका प्रत्यक्ष प्रतिबिंब हैं। ऐसा व्यक्ति कैसे फलपदवी प्राप्त कर सकता है? आपके कार्य आपके मुख्य शरीर का प्रदर्शन हैं जो साधना कर रहा है, और यह वही मुख्य शरीर है जिसे बचाया जाना है। क्या ऐसे प्राणी को देवताओं के बीच रखा जा सकता है? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। इसलिए आपको चीजों को अच्छी तरह से करना चाहिए और तर्कसंगत, स्पष्ट सोच और पवित्र विचारों के साथ साधना करनी चाहिए। और आपको साधारण लोगों के जीवन के अनुरूप अधिकतम सीमा तक रहते हुए साधना करने की अनुमति है। जब तक गुरू कहते हैं कि यह उचित है, आप बस आगे बढ़ सकते हैं और साधारण लोगों के तरीके का अनुसरण कर सकते हैं, क्योंकि आपको उसी प्रकार से अपने मार्ग पर चलना है, और मनुष्यों को उसी तरह से बचाया जाना है।

भविष्य में, यदि कोई देवता आकर लोगों को बचाना चाहे, तो उन्हें भी ऐसा ही करना होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि भविष्य के ब्रह्मांड में, जब लोगों को बचाने की बात आती है, तो लक्ष्य लोगों के मुख्य शरीर होंगे। इसलिए इस बात की चिंता न करें कि अतीत की साधना पद्धतियाँ कैसी थीं या आस्था के वे प्रकार कैसे थे, और यह न सोचें कि उनमें कितनी शक्ति और प्रभाव है—केवल आप ही हैं जिन्होंने वास्तव में साधना की है। (तालियाँ) ब्रह्मांड फा-सुधार से गुजर रहा है, और जिन देवताओं में वे विश्वास रखते हैं वे स्वयं को फिर से स्थापित कर रहे हैं, तो वे बचने के लिए कहाँ जाएँगे? वे दिव्यलोक में कैसे पहुँचेंगे? सभी दिव्यलोकों का पुनर्निर्माण किया जा रहा है। वे किस दिव्यलोक में जाएँगे? आप सबसे भव्य जीव हैं और वास्तव में एक स्पष्ट, खुले और अद्भुत तरीके से चेतन जीवों को बचाते हुए दिव्यलोकों की ओर बढ़ रहे हैं।

मैंने अभी जो कहा वह हमारे दाफा शिष्यों के लिए था। आपमें से जो साधक नहीं हैं या जो नए शिष्य हैं, वे शायद मेरी कही गयी बात को ठीक से न समझ पाएं और उन्हें इस पर विश्वास करना कठिन लगे। चिंता न करें, मैं यहां किसी को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं आया हूं, और यहां ऐसा कुछ भी नहीं है जो लोगों के लिए बुरा हो। यदि आपको यह समझ में नहीं आया, तो आप इसे धीरे-धीरे समझ सकते हैं, और इन साधकों को धीरे-धीरे समझना ठीक है।

एक अंतिम बात है जिस पर मैं जोर देना चाहता हूँ। कुछ शिष्यों के मन स्पष्ट नहीं हैं और उनमें बहुत अधिक मोहभाव होते है! वे थोड़ा-बहुत सुन सकते हैं और थोड़ा-बहुत देख सकते हैं, और उन्हें यह भी लगता है कि उनके पास कुछ विशेष योग्यताएँ हैं या वे सोचते हैं कि वे कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। इसलिए वे तर्कहीन और अजीब से तरीके से व्यव्हार करने लगे हैं और ऐसी बातें कहने लगे हैं जिनका कोई अर्थ नहीं होता। फिर आप साधना कैसे कर सकते हैं? चाहे आप कोई भी हों, यदि मैं आज आपको नहीं बचा पाया, तो आप नर्क में भूत बनकर रह जाएँगे! आप इतने तर्कहीन क्यों हो रहे हैं? आप शिष्यों के बीच ऐसी बातें क्यों फैलाते हैं जो उनकी साधना और फा का मान्यकरण करने में बाधा डालती हैं? क्या यह केवल आपके अपने मन के असुरिक विचारों का मुद्दा है? आप दाफा में बाधा डाल रहे हैं। क्या यह कोई छोटा पाप है?

यदि आज मैं, ली होंगज़ी, आपको दाफा शिष्य के रूप में मान्यता न देने का निर्णय लूँ, आपको अपना शिष्य न मानूँ, तो क्या आपको लगता है कि आप यहाँ रह सकते हैं? त्रिलोक की रचना इसी उद्देश्य से की गयी थी। चाहे ब्रह्मांड में यह नभमंडल कितना भी विशाल हो, लेकिन सभी प्राणी अपना ध्यान यहीं केंद्रित कर रहे हैं, और यहां सभी प्राणियों को मान्यता मिलनी चाहिए। इसलिए मैं उन शिष्यों से आग्रह करता हूं जो अभी भी तर्कहीन हैं : अपने होश में आओ और अपने जीवन के प्रति उत्तरदायी बनो। आपके अपने मोहभावों ने बाहरी दुष्ट प्राणियों को आप पर अधिकार करने, हस्तक्षेप करने और नियंत्रित करने के लिए प्रेरित किया है, जिससे आप इतने तर्कहीन हो गये हैं।

गुरू के अभी-अभी कहे शब्द काफी कठोर थे। आपने देखा होगा कि हाल ही में, कभी-कभी ऐसे शिष्यों के लिए मेरे शब्द काफी कठोर रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि मैंने उनके लिए आने वाले भयानक परिणामों को देखा है। चाहे आप उन शब्दों को कैसे भी समझें, चाहे वे लोग, जो मुझे या दाफा शिष्यों को नहीं समझते, चीजों को कैसे भी समझें, मैं, ली होंगज़ी, सभी प्राणियों के लिए आया हूँ। मैं सभी प्राणियों को बचा रहा हूँ, और मैं नहीं चाहता कि कोई भी प्राणी स्वयं को नष्ट करे, क्योंकि मैं आपके लिए ही आया हूँ! (तालियाँ) मुझे चिंता है, मुझे आपकी चिंता है। समय का दबाव और अधिक होता जा रहा है। आपने यह देखा है, और पूर्ण स्थिति बहुत परिवर्तित हो गयी है। यदि दमन अचानक समाप्त हो जाता है, तो कोई अवसर नहीं बचेगा, और सब कुछ तय हो चुका होगा।

मुझे आपके किसी फा सम्मेलन में भाग लिए हुए काफी समय हो गया है, इसलिए मैं आपके साथ थोड़ी देर और रहना चाहता हूँ। ( उत्साही तालियाँ)

मैंने सुना है कि कुछ शिष्य रूस से आये हैं और कुछ अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों से आये हैं। उनके लिए यहाँ आना कठिन था, क्योंकि उन्हें वित्तीय और अन्य प्रकार की, दोनों चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कुछ नए शिष्य भी हैं जिन्होंने मुझे कभी व्यक्तिगत रूप से नहीं देखा है और हमेशा गुरू को देखना चाहते हैं। और इसी प्रकार बहुत से अनुभवी शिष्य भी हैं जिन्होंने लंबे समय से गुरू को नहीं देखा है। ऐसा लगता है कि आप सभी के पास कहने के लिए बहुत कुछ है, और यदि मैं अभी चला गया तो आप निराश होंगे। (गुरूजी हँसते हैं) (तालियाँ) उस स्थिति में, आइए अभी भी अपनी पुरानी पद्धति का उपयोग करें—यदि आप कुछ कहना चाहते है, तो इसे एक पर्ची पर लिखें और आगे भेजें, और मैं आप सभी के प्रश्नों के उत्तर दूँगा। (तालियाँ)

आप सभी ने वास्तव में कड़ा परिश्रम किया है। मौसम ठंडा हो रहा है। गर्मियों के दौरान जब आपने वाणिज्य दूतावासों के सामने, सड़कों पर या अन्य स्थानों पर सत्य को स्पष्ट किया और दाफा का मान्यकरण किया, तब भी गर्मी थी, फिर भी यह सहनीय था। जब मौसम ठंडा हो जाता है, तो जलवायु आपके लिए कुछ हद तक चुनौती खड़ी कर देती है। फिर भी, आपने कठोर परिस्थितियों को आपको रोकने नहीं दिया। इसके विपरीत, आप अभी भी कड़ा परिश्रम कर रहे हैं और हार नहीं मानी है। यह वास्तव में आश्चर्यजनक है, और भविष्य के प्राणी और भविष्य में संसार के लोग आपको धन्यवाद देंगे, क्योंकि भविष्य में जो लोग यहाँ रहेंगे, वे इस तथ्य के लिए आपके ऋणी होंगे। (तालियाँ) संसार के लोग भ्रम में हैं। दाफा शिष्य वे हैं जो तथाकथित परीक्षाओं से गुजर रहे हैं, जबकि सभी चेतन जीव भ्रम की स्थिति में खो गये हैं। लेकिन भविष्य में, सभी को पता चल जाएगा कि दाफा शिष्य कौन थे। वे सभी दाफा शिष्यों की महानता को जानेंगे, और जो लोग बचेंगे वे दाफा शिष्यों के प्रति कृतज्ञता अनुभव करेंगे।

शिष्य: यदि परिस्थितियाँ अनुकूल होती हैं, तो क्या मैं काम करने के लिए मुख्यभूमि चीन वापस जा सकता हूँ?

गुरूजी: यदि दमन समाप्त हो जाता है और मानव जगत का फा सुधार अभी तक आरंभ नहीं हुआ है, तो यदि आप काम करने के लिए मुख्यभूमि चीन वापस जाना चाहते हैं, तो आप जा सकते हैं। क्या आप पूछ रहे हैं कि क्या आप अभी वापस जा सकते हैं? अभी वापस न जाना ही बेहतर है क्योंकि दमन अभी भी जारी है। मुझे पता है कि कुछ शिष्यों को मुख्यभूमि चीन के कुछ अधिकारियों या कुछ पदों वाले लोगों से फोन कॉल या संदेश प्राप्त हुए होंगे। उन्होंने आपको वापस जाने के लिए कहा और कुछ चीजों की गारंटी दी, वादा दिया कि आपका दमन नहीं किया जाएगा और इत्यादि। इस बारे में सभी सोचें, क्या वे वही अधिकारी थे जिन्होंने दमन की नीति निर्धारित की थी? तो क्या यह स्वाभाविक तथ्य नहीं है कि वे किसी संदिग्ध चीज की गारंटी दे रहे हैं?

तो पर्दे के पीछे उन्हें कौन निर्देशित कर रहा है? (तालियाँ) वे गारंटी कैसे दे सकते हैं? उन्हें वह गारंटी कौन दे रहा है? क्या यह संदिग्ध नहीं है? वैसे भी "युद्ध के लिए एक एकीकृत मोर्चा बनाने" का क्या अर्थ है? जब उनकी घटिया रणनीति काम नहीं करती, तो वे "युद्ध के लिए एक एकीकृत मोर्चा बनाना" आरंभ कर देते हैं। वे फिर से अपनी पुरानी चालें चल रहे हैं, और आपको सावधान रहने की आवश्यकता है। हम किसी भी राजनीतिक शक्ति के लिए खतरा नहीं हैं। हम बस चाहते हैं कि वे दमन बंद कर दें। (तालियाँ) वे लोगों का दमन करते हैं और साथ ही उन लोगों को अपने पक्ष में लाने का प्रयत्न करते हैं। वे सभी संभावित घटिया चालें चल रहे हैं। (श्रोता हँसते हैं)

शिष्य: चोंगचिंग शहर में दाफा शिष्य गुरूजी को शुभकामनाएँ भेजते हैं।

(गुरूजी: धन्यवाद।) (तालियाँ) गुरूजी, हम वादा करते हैं कि हम हर पल उन चीजों को अच्छे से करेंगे जो हमें करनी चाहिए।

गुरूजी: बहुत बढ़िया। (तालियाँ)

शिष्य: बीजिंग के सिंघुआ विश्वविद्यालय के दाफा शिष्यों ने गुरूजी को नमन भेजा है।

गुरूजी: आप सभी का धन्यवाद। (तालियाँ)

शिष्य: बीजिंग के महिलाओं के श्रम शिविरों में अवैध रूप से बंदी बनायी गयी दाफा शिष्याओं ने गुरूजी को नमन भेजा है।

गुरूजी: धन्यवाद। (तालियाँ)

शिष्य: बीजिंग की जेलों में अवैध रूप से बंदी बनाये गये दाफा शिष्यों ने गुरूजी को नमन भेजा हैं।

गुरूजी: धन्यवाद! (तालियाँ) आप चाहे किसी भी प्रकार के वातावरण में हों, आपको अपने पवित्र विचारों को दृढ़ रखना चाहिए, क्योंकि आप दाफा शिष्य हैं और आप असाधारण प्राणी हैं।

शिष्य: यूरोपीय फा सम्मेलन अगले वर्ष लंदन में आयोजित किया जाएगा, और हम उत्सुकता से आशा करते हैं कि गुरूजी अपनी उपस्थिति से हमें अनुग्रहित करेंगे। (श्रोता मुस्कुराते हैं और तालियाँ बजाते हैं) गुरूजी, कृपया हमें बताएँ कि "सात बुद्ध" को "छः बुद्ध" में क्यों बदल दिया गया है।

गुरूजी: मैं इसके बारे में भिन्न दृष्टिकोणों से बात करूँगा। एक यह है कि इतिहास के दौरान मानव संसार में बहुत से बुद्ध आये हैं। यह छः से अधिक है, और वास्तव में सात से अधिक है। निश्चित ही, अन्य देवता भी आये हैं। केवल बुद्धों की बात करें तो, लोगों को बचाने के लिए बहुत से बुद्ध आये हैं, फिर भी जब शाक्यमुनि जैसे विशेष उद्देश्य वाले बुद्धों की बात आती है, तो शाक्यमुनि से पहले वैसे छः थे। जब मैंने उनके बारे में बात की, तो मैंने बुद्ध शाक्यमुनि को उनमें से एक माना, इसलिए वे सात थे। लेकिन बौद्ध धर्म में हमेशा छः की बात की गयी है, क्योंकि शाक्यमुनि के शिष्यों ने उन बुद्धों को उनके शिष्यों के रूप में माना, इसलिए उन्होंने बुद्ध शाक्यमुनि को नहीं गिना और छः पर आ गये। जब मैंने उनके बारे में बात की तो मैंने बुद्ध शाक्यमुनि को भी इसमें सम्मिलित किया, इसलिए यह संख्या सात हो गयी। लेकिन जैसा कि कहा गया है, जब फा प्रदान किया जाता है तो आपको निश्चित रूप से लोगों की चीजों को स्वीकार करने की क्षमता के अनुसार ऐसा करने की आवश्यकता होती है। इसलिए, बौद्ध धर्म के शिष्यों को बचाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने के लिए, हमने उनकी कही गयी बात को माना और संख्या को छः में बदल दिया। (तालियाँ)

शिष्य: आदरणीय गुरूजी को नमन! मैं रोमानिया के शिष्यों की ओर से गुरूजी का नमन करना चाहता हूँ।

गुरूजी: धन्यवाद। (तालियाँ)

शिष्य: रोमानिया के अधिकांश शिष्य नए हैं। उन्होंने सभी प्रकार की चुनौतियों का सामना किया है, लेकिन वे सभी बहुत परिश्रमी हैं। मैं आदरपूर्वक गुरूजी से इस बारे में बात करने का अनुरोध करता हूँ कि रोमानिया में शिष्य किस प्रकार से फा का मान्यकरण करने में भाग लेने का बेहतर काम कर सकते हैं, साथ ही रोमानिया किस प्रकार से फा का मान्यकरण करने में बेहतर भूमिका निभा सकता है।

गुरूजी: मैंने पहले कहा था कि संसार में लोगों की संख्या के अनुसार, अभी दाफा शिष्यों की संख्या बहुत कम है, लेकिन आपके पास एक महान उद्देश्य है जो इतिहास ने आपको दिया है। इसलिए किसी भी क्षेत्र में दाफा शिष्यों के लिए, आप मूल रूप से उस क्षेत्र के प्राणियों के उद्धार की आशा हैं—वास्तव में उनकी एकमात्र आशा। वहाँ के प्राणियों को शुभ समाचार सुनने की आवश्यकता है, और यह आवश्यकता है कि आप उन्हें तथ्य स्पष्ट करें जिससे वे समझ सकें कि दाफा क्या है। यही कारण है कि दाफा शिष्यों का उत्तरदायित्व वजनी हैं। फिर आप पूछ सकते हैं, आप बेहतर कैसे कर सकते हैं? मुझे लगता है कि आप, दाफा शिष्यों के लिए, यदि आप में से प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक क्षेत्र के लोगों को तथ्य बताने के लिए केवल अपने मुख का उपयोग करता है, तो हम उन सभी तक नहीं पहुंच पाएंगे। दाफा शिष्यों द्वारा साधना करते समय और पवित्र विचारों व कार्यों पर टिके रहने पर उनमें जो शक्ति होती है, साथ ही उनकी साधना से प्राप्त शक्तिशाली सद्गुण, एक अतिरिक्त प्रभाव डालते हैं।

दूसरी ओर, दाफा शिष्यों ने जो कुछ भी किया है और तथ्यों को स्पष्ट करते समय दाफा शिष्यों ने जो कुछ भी कहा है, उससे तथ्य साधारण मानव समाज में प्रसारित होते हैं और लोगों के बीच संचार को बढ़ावा देने वाला वातावरण बनता है। फिर उस वातावरण के साथ, लोगों द्वारा की जाने वाली चर्चाएँ उन प्राणियों के उद्धार का एक और तरीका है, एक अप्रत्यक्ष तरीका। दूसरी बात यह है कि कई प्राणियों में दुष्ट प्राणियों द्वारा विष भरा गया है, और उनके मन में सीसीपी के निंदनीय मीडिया का बहुत प्रचार भरा है। उस स्थिति में, यह बेहतर है कि आप तथ्यों को स्पष्ट करके इसे दूर कर सकें, क्योंकि दाफा के बारे में मनुष्यों के मन में जो नकारात्मक विचार हैं, उनका लाभ उन दुष्ट प्राणियों द्वारा उठाया जा सकता है और उपयोग किया जा सकता है जो दाफा शिष्यों का दमन करते हैं।

इसलिए दाफा शिष्य पवित्र विचार भेजने के दौरान और अपने पवित्र विचारों और पवित्र कार्यों के माध्यम से उन्हें हटा सकते हैं। वास्तव में, यदि आपके विचार बहुत पवित्र हैं, तो जब आप सड़क पर चलते हैं और जिस शहर में आप रहते हैं, वहाँ अपना जीवन जीते हैं, तो आपके आस-पास का सारा वातावरण शुद्ध हो जाएगा। आपके अस्तित्व मात्र से ही चेतन जीवों को बचाने का प्रभाव हो जाता है। लेकिन, अपनी महान क्षमताओं के होते हुए भी, आपको अपनी व्यक्तिगत साधना के लाभ के लिए अभी भी प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि साधना में हर किसी की एक यात्रा होती है जिसे उसे पूरा करना होता है। साथ ही, प्राचीन शक्तियों ने आपके द्वारा फा के मान्यकरण करने में कई प्रकार के हस्तक्षेप उत्पन्न किए हैं। सामान्य परिस्थितियों में यदि पवित्र विचार पर्याप्त रूप से शक्तिशाली नहीं होते हैं तो उस हस्तक्षेप को हटाना बहुत कठिन है।

जहाँ तक कार्यों को अच्छी तरह से करने की बात है, इसका अर्थ है कि दाफा शिष्यों को जो तीन काम करने चाहिए, उनमें अच्छा प्रदर्शन करना—अर्थात कार्यों को सबसे बेहतर तरीके से करना। (तालियाँ) लेकिन जो प्रयास किए जा रहे हैं, उनकी मात्रा भिन्न-भिन्न है। कुछ लोग बहुत अधिक प्रयास नहीं करते हैं, जबकि दूसरे शिष्य अधिक दृढ़ होते हैं और अधिक प्रयास करते हैं। निश्चित ही, गुरू देखते हैं कि समाज में हर व्यक्ति का एक परिवार और एक नौकरी है, समाज से आपके संबंधों के कारण भिन्न-भिन्न सामाजिक दायित्व होते हैं, इसलिए आपके पास बहुत कम समय बचता है। गुरू इन सब के बारे में जानते हैं और समझते हैं। वास्तव में, दाफा की साधना पद्धति उस मुद्दे को ध्यान में रखती है और उस क्षेत्र में चीजों को बाधित नहीं करेगी।

शिष्य: ताइवान के शिष्यों ने गुरूजी को नमन भेजा है। (तालियाँ) गुरूजी, कृपया हमें एशिया-पेसिफिक प्योर अवेकनिंग वेबसाइट के लिए वर्तमान के लिए मार्गदर्शन करें।

गुरूजी: दाफा शिष्यों की वेबसाइटें अच्छी तरह से चलनी चाहिए, क्योंकि वे सत्य को स्पष्ट करने का एक साधन हैं और चेतन जीवों को बचाने में भूमिका निभा रही हैं। इसलिए उन्हें अच्छी तरह से चलाया जाना चाहिए। जहाँ तक विशेष रूप से क्या करना है, यह आप पर निर्भर है। (गुरूजी मुस्कुराते हैं) ऐसा क्यों है कि गुरू चीजों के बारे में बहुत विशेष रूप से बात नहीं करते हैं? गुरू केवल यह सुनिश्चित करते हैं कि चीजों की समग्र योजना में कोई समस्या विकसित न हो। लेकिन शिष्यों के बीच समस्याओं, तर्कों और समझ में मतभेदों के विषय में, वे ऐसी चीजें हैं जो आपकी साधना की स्थिति को दर्शाती हैं। इसलिए जब बात आती है कि अपने मार्ग पर कैसे चलना है और प्रत्येक चीज को कैसे संभालना है, तो वे ऐसी चीजें हैं जिन्हें आपको अपने स्वयं के महान सद्गुण को स्थापित करने के एक भाग के रूप में संबोधित करना चाहिए। यदि मैं आपको बताता हूँ कि प्रत्येक चीज को कैसे संभालना है, तो यह कुछ ऐसा बन जाता है जैसे कि इसे मैंने किया है, और कोई भी देवता यह स्वीकार नहीं करेगा कि आपने इसे किया है। (गुरूजी मुस्कुराते हैं) (तालियाँ) तो मुझे ये चीजें आपके ऊपर छोड़नी होंगी। मैं आपको साधना के अवसर से वंचित नहीं कर सकता।

शिष्य: ग्वांगझोउ शहर के दाफा शिष्यों ने आदरणीय गुरूजी को नमन भेजा है।

गुरूजी: धन्यवाद। (तालियाँ)

शिष्य: आदरणीय गुरूजी, क्या आप कृपया हमें बता सकते हैं कि क्या मुख्यभूमि चीन में दाफा शिष्यों के लिए यह ठीक है कि उन्होनें कम खर्च से जीवनयापन करके जो धन बचाया है, उसे न्यूयॉर्क शहर में सत्य-स्पष्टीकरण परियोजनाओं के लिए [विदेश] भेजें?

गुरूजी: सैधांतिक रूप से यह ठीक है—यदि आप आर्थिक रूप से बहुत संपन्न हैं, तो यह कोई समस्या नहीं है। लेकिन यहाँ हम कम खर्च से जीवनयापन करके बचाए गये धन के बारे में बात कर रहे हैं, इसलिए इसका अर्थ है कि व्यक्ति उतना संपन्न नहीं है। उस स्थिति में, मुख्यभूमि चीन में सत्य को स्पष्ट करने के लिए धन रखना सबसे अच्छा है, क्योंकि मुख्यभूमि के बाहर का वातावरण अभी भी भीतर की तुलना में बहुत बेहतर है। (तालियाँ)

शिष्य: गुरूजी, कृपया हमें बताएं कि क्या मैनहट्टन में सत्य-स्पष्टीकरण गतिविधियाँ तब तक जारी रहेंगी जब तक कि फा-सुधार समाप्त नहीं हो जाता। (श्रोता हँसते हैं)

गुरूजी: नहीं, वे जारी नहीं रहेंगी। मैंने इस बारे में पहले भी बात की थी जब मैनहट्टन में सत्य को स्पष्ट करने वाले शिष्यों ने एक बैठक की थी। आप इसे केवल कुछ समय के लिए करेंगे। मैनहट्टन बहुत अनूठा है : यह व्यावहारिक रूप से संसार का वित्तीय केंद्र है, और संसार भर की कई बड़ी कंपनियों के यहां कार्यालय या शाखाएं हैं। दूसरे शब्दों में, यह वित्तीय संसार के लिए संमिलन का एक केंद्र है और पूरे संसार से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। और मैनहट्टन में एकत्रित होने वाले लोग, इसकी विशिष्टता के कारण, स्वयं विशिष्ट हैं। कई सुशिक्षित लोग यहाँ केंद्रित हैं, साथ ही समाज में कुछ हद तक शक्ति और वित्तीय साधन वाले लोग भी हैं। दूसरे शब्दों में, समाज में उनकी भूमिकाएँ कोई साधारण बात नहीं हैं।

हालाँकि सम्बंधित रूप से देखा जाए तो न्यूयॉर्क क्षेत्र में, जिसमें न्यूजर्सी के आस-पास का क्षेत्र भी सम्मिलित है, बहुत से शिष्य हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जो कुछ हुआ है उसके बाद भी ऐसा लगता है कि मैनहट्टन में बहुत से लोगों को कोई परवाह नहीं है। सत्य को स्पष्ट करने के लिए इतने लंबे समय तक काम करने के बाद भी बहुत से लोग अभी भी दाफा शिष्यों के संपर्क में नहीं आये हैं। सीसीपी ने फालुन गोंग का दमन करने के लिए यहाँ बहुत सारी दुष्टता फैलाई हैं, और इसका परिणाम यह हुआ है कि यहाँ के कुछ लोगों को हमेशा दाफा को समझने में बाधाएँ आती हैं।

और इसके अतरिक्त, मुझे एक और समस्या का पता चला है। मैनहट्टन के कई बड़े निगमों में चीनी कर्मचारी हैं, और यहाँ तक कि कुछ छोटे निगमों और प्रतिष्ठानों में भी, और उनमें से अधिकांश चीनी लोग सीसीपी की बदनामी करने वाली प्रचार मशीन द्वारा प्रचारित की गयी असत्य बातों से धोखा खा गये हैं, और उनके मन में जो बातें हैं, वे अब तक नहीं हटी हैं। इसलिए वे अमेरिकी समाज में विष फैलाने वाले लोग बन गये हैं। ऐसा नहीं है कि वे लोग स्वभाव से बुरे हैं। लेकिन वास्तव में, जहाँ दाफा शिष्य एक ओर सच्चाई को स्पष्ट कर रहे हैं, वे दूसरी ओर सीसीपी द्वारा बदनामी करने वाली बातें प्रचारित कर रहे हैं। आप पर्चों पर, प्रदर्शन बोर्ड पर निम्नलिखित लिख सकते हैं, या मीडिया में इसकी रिपोर्ट कर सकते हैं : "आपकी कंपनी में चीनी लोगों को गुमराह किया गया है और वे सीसीपी को अपना विष फैलाने में सहायता कर रहे हैं (तालियाँ), इसलिए आपको स्वयं तथ्यों की जाँच करनी चाहिए।" (तालियाँ)

शिष्य: यदि मुझमें साधारण लोगों के समान कोई भी कौशल नहीं है तो मैं फा का मान्यकरण करने के काम में बेहतर कैसे कर सकता हूँ?

गुरूजी: साधारण कौशल ना हो तो भी ठीक है। बहुत से शिष्य सड़क पर पर्चे और समाचार पत्र बांटते हैं और लोगों को व्यक्तिगत रूप से सच्चाई बताते हैं। ये सब ऐसी चीजें हैं जो आप कर सकते हैं। बहुत से शिष्य पूरा वर्ष दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों के सामने एकत्रित होते हैं, और यह भी वास्तव में बहुत ही सराहनीय है। ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो आप कर सकते हैं।

शिष्य: अभिवादन, आदरणीय गुरूजी। ज़ुआन फालुन और अन्य दाफा पुस्तकों में कई अक्षरों को हाल ही में बदल दिया गया है। इसके पीछे का गहरा अर्थ क्या है?

गुरूजी: मैं इसके पीछे के अर्थ के बारे में बात नहीं करूँगा। मैं इसके बारे में केवल सतही तौर पर बात करूँगा। आइए [दो-अक्षरीय शब्द] “साधना अभ्यास” से [चीनी] शब्द “अभ्यास” को एक उदाहरण के रूप में लें। यदि दाफा शिष्यों का दमन नहीं हुआ होता, तो मैं आपको वह मार्ग बताता जो आपको अपनाना चाहिए था। लेकिन दमन शुरू होने के बाद, उन पाखंडी चीगोंग अभ्यासों और सभी प्रकार की गड़बड़ाई चीजों ने दमन में भाग लेना शुरू कर दिया, और यहाँ तक कि दाफा पर आक्रामण करने के लिए टीवी पर भी आ गये। निःसंदेह, उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि इतने सारे लोग दाफा सीख रहे थे—उनके अपने लोग भी सम्मिलित थे—इस कारण वे अब धन नहीं अर्जित कर सकते थे। इसलिए वे ईर्ष्यालु और घृणास्पद हो गये। इसलिए कुछ शिष्यों ने प्रश्न उठाया, “गुरूजी, ‘अभ्यास’ शब्द में, जब हम इसका उपयोग अन्य चीगोंग अभ्यासों का वर्णन करने के लिए करते हैं, तो क्या हम शब्द के उस एक भाग को ‘आग’ से बदलकर ‘रेशम’ कर सकते हैं? वे सच्ची साधना कर भी नहीं रहे हैं।"

यह तो बस एक उदाहरण है। अन्य सभी प्रकार के स्थानों में भ्रष्ट संस्कृति से उत्पन्न भटकावों के कारण अनेक कारक उत्पन्न हुए। चीनी एक विशेष लिखित भाषा है, और यह दिव्यलोकों में लिखित भाषा के समान है। और मौखिक चीनी दिव्यलोकों में बोली जाने वाली भाषा के समान है, क्योंकि यह संस्कृति का एक रूप है जिसे देवताओं ने सीधे मानव जाति के लिए बनाया था। साथ ही, चूंकि चीन में जो स्थापित की गयी थी वह एक अर्ध-दिव्य संस्कृति थी, चीनी अक्षरों का रूप और ध्वनि ब्रह्मांड के साथ परस्पर जुड़ी हुई है। यह पश्चिम की लिखित भाषाओं और अन्य जातियों की लिखित भाषाओं से भिन्न है। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक निश्चित दृष्टिकोण से, अन्य संस्कृतियों की लिखित भाषाएं वास्तव में अक्षरों का समूह हैं जिन्हें देवताओं ने मनुष्यों के लिए बनाया था जिससे वे पूर्वनिर्धारित संबंध बनाने के बाद उन क्षेत्रों में फा की प्रतीक्षा कर सकें। इस प्रकार उन स्थानों पर फा की प्रतीक्षा कर रहे लोग सामान्य जीवन जी सकते थे और अस्थायी रूप से एक दूसरे के साथ संवाद करने के लिए अक्षरों के संग्रह का उपयोग कर सकते थे। लेकिन यदि चीनी अक्षरों की ध्वनि और रूप ब्रह्मांड के साथ जुड़े हुए हैं, तो इसके बारे में सोचें, वे मानव जाति पर, दाफा शिष्यों, जिन्होंने इस स्तर पर फा प्राप्त किया है और साधना की है, उनके द्वारा फा के मान्यकरण पर, और यहां तक कि फा-सुधार पर भी किस प्रकार का हस्तक्षेप कर सकते हैं? दूसरे शब्दों में कहें तो, प्राचीन शक्तियां ने उन कारकों का उपयोग फा-सुधार में चीजों का लाभ उठाने के लिए किया। आइए एक उदाहरण के रूप में शब्द "目的" (मु दी या "गंतव्य") को लें। प्राचीन समय में जब किसी निश्चित स्थान पर पहुँचने का वर्णन करने के लिए "गंतव्य" या अन्य शब्दों का उपयोग किया जाता था, तो अक्षर "दी" हमेशा चीनी अक्षर "土地" (तु दी या "पृथ्वी") के समान "दी" होता था। आधुनिक समय में, व्याकरण को मानकीकृत करने और लोगों के लिए व्याकरण में महारत प्राप्त करना सरल बनाने के स्पष्ट तर्क के साथ, उस “地” (दी, जैसे “पृथ्वी” में) को “的” (दी, एक व्याकरण लेख) के रूप में लिखा गया है। इसलिए जब आप कथित रूप से “गंतव्य” पर पहुँच गये हैं, तब भी आप “स्थान” पर नहीं पहुँचे हैं। (श्रोता हँसते हैं, तालियाँ बजाते हैं)

कई कारकों के साथ समस्याएँ हैं। आधुनिक समय में प्राचीन शक्तियां ने चीनी संस्कृति को हानि पहुँचायी है और मेरे लिए एक बड़ी गड़बड़ी छोड़ दी है, जिससे मुझे फा प्रदान करते समय निपटना होता है। असंख्य क्षेत्रों में बहुत सारे हानिकारक कारक हैं, इसलिए बहुत सी चीजों को ठीक करने की आवश्यकता थी। लेकिन ऐसा करने के लिए समय नहीं था, इसलिए सुधार करने में बस कुछ चीजों को संबोधित किया गया। अच्छी बात यह है कि फा के आंतरिक अर्थ प्रभावित नहीं हुए हैं। पुस्तक ज़ुआन फालुन प्रत्येक आयाम में भिन्न-भिन्न तरीके से अभिव्यक्त होती है, और दिव्यलोकों में ज़ुआन फालुन पृथ्वी की पुस्तक से बिल्कुल भिन्न दिखती है, इसलिए इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।

शिष्य: मैं यथासंभव साधारण लोगों के अनुरूप रहकर साधना नहीं कर पाया हूँ। क्या इससे मुझे भविष्य में बहुत पछतावा होगा?

गुरूजी: तो आप साधारण लोगों के अनुरूप रहते हुए साधना करने में सफल नहीं हुए हैं, ठीक है, "जितना संभव हो सके" का अर्थ है आवश्यकताओं को पूर्ण रूप से पूरा करना। इसलिए यदि यह आज समाप्त हो जाता है, तो आप जिस भी स्तर पर हैं, वह निश्चित हो जाएगा। यह आज समाप्त नहीं हुआ है, इसलिए जब यह समाप्त नहीं हुआ है, तो जब बात उन मानकों की आती है जिन्हें आपने पूरा किया है या नहीं किया है, और जिन चीजों की आपने अच्छी तरह से साधना की है या नहीं की है, वे अभी भी चल रही प्रक्रिया का भाग हैं, इसलिए कोई भी यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकता है कि आप बस यही हैं। यदि आपको अपनी कमी का अहसास हो गया है, और मेरा मानना है कि आपको अवश्य ही हो गया होगा, क्योंकि आपने प्रश्न-पर्ची जमा की है, तो इसे सुधारें और बेहतर करें। (तालियाँ)

शिष्य: आदरणीय गुरू जी, ज़ुआन फालुन के पिछले संस्करणों में उपयोग किए गये शब्द "程度" (चेंग डू या " स्तर") को बदलकर "成度" (चेंग डू या "उपलब्धि का स्तर") कर दिया गया है। लेकिन मेरे एक साथी अभ्यासी ने कहा कि मिंगहुई वेबसाइट ने उस बदलाव को प्रकाशित नहीं किया है, तो क्या इसे फिर से जैसा पहले था वैसा कर देना चाहिए?

गुरूजी: अनेक बार अक्षरों में परिवर्तन हो चुके हैं; बदलने के लिए बहुत सी चीजें थीं। एक बार जब एक मामले से निपटा जाता है, तो बहुत सी चीजें होती हैं, इसलिए अभी के लिए शब्दों में परिवर्तन समाप्त हो गया है और कोई अतिरिक्त परिवर्तन नहीं किया जाएगा। किए गये परिवर्तनों के बारे में जानने के लिए, आप ज़ुआन फालुन के उस संस्करण को देख सकते हैं जो शीघ्र ही प्रकाशित होगा और फिर उस संस्करण के आधार पर अपने परिवर्तन कर सकते हैं। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मिंगहुई को कभी-कभी ही शब्दों में परिवर्तनों के बारे में सूचित किया जाता था, इसलिए यह स्थिति है।

शिष्य: क्या ब्रह्मांड की संरचना जिसके बारे में आपने बात की है, वह नए ब्रह्मांड की संरचना को संदर्भित करती है?

गुरूजी: जिस संरचना के बारे में मैंने आपसे पहले बात की थी, वह पूर्ण रूप से पुराने ब्रह्मांड की संरचना के बारे में थी। फा-सुधार के दौरान जो स्थिति स्पष्ट होती है, वह पुराने ब्रह्मांड के प्राणियों द्वारा प्रदर्शित स्थिति भी है। नए ब्रह्मांड के बारे में बात नहीं की जा सकती। न केवल इसके बारे में बात नहीं की जा सकती, बल्कि दिव्यलोक के रहस्यों को भी उजागर नहीं किया जा सकता। (गुरूजी मुस्कुराते हैं) (श्रोता हँसते हैं, तालियाँ बजाते हैं)) पुराने ब्रह्मांड में दिव्यलोक के कई रहस्यों को अब दिव्यलोक के रहस्य नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उन चीजों को बदला जाएगा, उनमें बदलाव होंगे। लेकिन पुराने ब्रह्मांड में कई अच्छे प्राणी और कारक हैं, जिनमें वे संरचनाएं भी सम्मिलित हैं जो अच्छी हैं, इसलिए उन्हें रखा जाएगा। इसलिए, बहुत सारे प्राणी और पुराने ब्रह्मांड की संरचना का अधिकांश भाग रखा गया है।

शिष्य: चेतन जीवों को बचाने का समय इतना तात्कालिक होते हुए भी, मेरे स्वार्थी विचार वैसे ही क्यों बने रहते हैं? मैं अपने बारे में चिंतित हूँ।

गुरूजी: मुझे लगता है कि अपनी कमियों को देख पाना ही साधना है। यह वास्तव में बहुत ही स्वाभाविक बात है। जब आप इसे पहचान पाते हैं, तो यह सुधार की दिशा में पहला कदम है। यदि आप प्रतिदिन उन चीजों पर ध्यान दे पाते हैं और उन्हें धीरे-धीरे अच्छे से कर पाते हैं, तो आप सुधार कर रहे हैं। चिंतित न हों, क्योंकि ऐसा करने से मोहभाव बढ़ेंगे। जब आप समस्याएँ देखें, तो बदलाव करें और जब आप कमियाँ देखें, तो उन्हें हटाएं। ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो आप नहीं कर सकते, और मैंने हर मामले में इस बात को ध्यान में रखा है, और जब मैंने फा का प्रसार किया, तो मैंने इसका पूर्व अनुमान लगाया था। दूसरे शब्दों में, मैं जिसे बचाना चाहता हूँ, वह मुख्यतः मुख्य आत्मा है, वह व्यक्ति स्वयं। एक व्यक्ति में कितनी क्षमता है? यदि कोई व्यक्ति अपनी गलतियों को पहचान सकता है और उन पर काबू पा सकता है, तो वह साधना कर रहा है, लेकिन क्या होगा यदि व्यक्ति के अस्तित्व को बनाने वाले तत्व ही पथभ्रष्ट हो जाएँ? या, विशेष रूप से, क्या होगा जब व्यक्ति के सोचने का तरीका पथभ्रष्ट हो? मामला स्पष्ट है : इतने वर्षों से सीसीपी ने जानबूझकर लोगों को इस प्रकार से शिक्षित किया है जिससे उसकी अपनी बातें पक्की हो जाएं। बहुत से लोगों ने देखा है कि पार्टी अच्छी नहीं है, लेकिन वे पार्टी की शिक्षा द्वारा पोषित संस्कृति की सीमित समझ से ही यह कह पाते हैं कि पार्टी अच्छी नहीं है। उन्होंने इसे उचित अर्थों में पहचाना नहीं है और उनमें डाली गयी पार्टी की संस्कृति से हटकर इसे वैसा नहीं देख पाते जैसी की यह है। यह सोचने का एक विकृत तरीका है। उस स्थिति में क्या किया जा सकता है? इसलिए मैं कहता हूँ कि कुछ ऐसी चीजें हैं जो आप कर सकते हैं, और यदि आप अपनी शक्ति के अनुसार चीजें नहीं करते हैं तो आप साधक नहीं हैं। लेकिन जो भी आप नहीं कर सकते, दाफा निश्चित रूप से आपके लिए वो चीजें करेगा, और गुरू के पास निश्चित रूप से उन्हें करने के तरीके हैं। (तालियाँ)

दूसरे शब्दों में, आपको उस भाग की साधना करनी होगी जिसकी आपको साधना करनी चाहिए। जहाँ तक उन चीजों का प्रश्न है जिनकी आप साधना नहीं कर सकते हैं, और जिनका पता या पहचान नहीं कर सकते हैं—या यदि आप उन्हें पहचान भी गए हैं तो भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं—गुरू उनका ध्यान रखेंगे। निःसंदेह, इसका अर्थ यह नहीं है कि जब आप ऐसे मोहभाव देखते हैं जिनसे आप छुटकारा नहीं पा सकते तो आप "मैं इसके बारे में कुछ नहीं कर सकता" का बहाना बना सकते हैं और इस प्रकार अपने उत्तरदायित्व से बच सकते हैं। (श्रोता हँसते हैं) ऐसा नहीं चलेगा। मैं जिस बारे में बात कर रहा हूँ, वह यह है कि जब आपके अस्तित्व की संरचना और आपके सोचने के तरीके की बात आती है—ऐसी चीजें जिन्हें आप बिल्कुल भी नहीं पहचान सकते और जिनका ध्यान नहीं रख सकते—गुरू निश्चित रूप से उन चीजों का ध्यान रखेंगे।

शिष्य: गुरूजी, क्या उस समय जब दमन समाप्त हो जाएगा, वह समय होगा जब फा मानव संसार का सुधार करेगा?

गुरूजी: यह बिलकुल संभव है। (तालियाँ) हालाँकि, यदि मैं उन चीजों के बारे में बात न करूँ तो बेहतर है। जैसे ही मैं इसके बारे में बात करूँगा, हर किसी का मन अशांत हो जाएगा। मैं इसकी अद्भुतता और भव्यता को आपके लिए स्वयं ही देखने के लिए छोड़ दूँगा।

शिष्य: गुरूजी, क्या आप उस दुष्ट राजनीतिक पार्टी की उत्पत्ति के बारे में बता सकते हैं जो दाफा शिष्यों का दमन करती है? (श्रोता हँसते हैं)

गुरूजी: जहाँ तक इस बात का प्रश्न है कि मूल स्तर पर वह चीज़ कैसे अस्तित्व में आयी, मुझे लगता है कि बेहतर होगा कि मैं इसके बारे में फा सम्मेलन में बात न करूँ। जहाँ तक इस बात का प्रश्न है कि यह मानव संसार में कैसे अस्तित्व में आयी, यह ऐसी चीज़ है जिसके बारे में मेरे कुछ भी कहे बिना ही सभी जानते हैं। वास्तव में, चाहे आप किसी कुटिल राजनीतिक पार्टी या किसी दुष्ट राजनीतिक पार्टी या किसी अन्य प्रकार की राजनीतिक पार्टी के बारे में बात करना चाहें, साधक के रूप में हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं है। कोई पार्टी चाहे कितनी भी दुष्ट क्यों न हो, वह मानव जगत का ही भाग है, और चाहे वह कितनी भी अच्छी क्यों न हो, वह फिर भी मानव जगत का ही भाग है। साधक होने का अर्थ है मानव जगत से बाहर निकलना, और जब मानव जगत में साधना करने की बात आती है, तो साधक उन सभी सांसारिक संघर्षों और मुद्दों में सम्मिलित नहीं होते हैं। जो चीजें दुष्ट हैं, उनके अस्तित्व के कारण हैं, और जो चीजें अच्छी हैं उनके अस्तित्व के भी कारण हैं। यह मानव समाज की स्थिति द्वारा निर्धारित होता है, और दाफा शिष्य इन चीजों से बिल्कुल भी चिंतित नहीं होते। लेकिन सभी ने स्पष्ट रूप से देखा कि जब उस प्रमुख शैतान ने हमारा दमन करना शुरू किया, तो वह चिल्ला रहा था कि उसकी राजनीतिक पार्टी को "फालुन गोंग को पराजित करना होगा" और "मैं यह मानने से इनकार करता हूँ कि हम (दुष्ट सीसीपी) फालुन गोंग को पराजित नहीं कर सकते।" मुझे पता है कि उसने ईर्ष्या और आक्रोश के कारण ऐसा किया, लेकिन मैं यह भी जानता हूँ कि उसके शब्दों के पीछे उसकी राजनीतिक पार्टी के तत्व थे। दूसरे शब्दों में, हमने उन्हें तभी उजागर किया जब उन्होंने हमारा दमन किया। हम इस दमन को नहीं मानते। सत्य को स्पष्ट करने की प्रक्रिया में, हम संसार के लोगों को बताएंगे कि फालुन गोंग का दमन क्यों किया जा रहा है, फालुन गोंग क्या है, और वह राजनीतिक पार्टी क्या है। जिसने भी दाफा शिष्यों का दमन किया है, उसे उजागर किया जाना चाहिए और संसार के लोगों के मन में जो घातक प्रभाव फैल गया है, उसे हटाया जाना चाहिए।

शिष्यों द्वारा सत्य को स्पष्ट करते हुए सुनने के बाद, कुछ लोग अभी भी कहते हैं, "फालुन गोंग बहुत अच्छा है, लेकिन मुझे लगता है कि पार्टी के अपने कारण हैं।" और बहुत से लोग हैं जो सोचते हैं कि सीसीपी जो कहती है वह अनुचित नहीं हो सकता, और इसलिए वे सत्य को सुनने से इनकार करते हैं। उन लोगों ने यह नहीं देखा कि यह मूल रूप से दुष्ट है। कुछ लोग कहते हैं, "फालुन गोंग बहुत अच्छा है, लेकिन पार्टी ने कुछ भी अनुचित नहीं किया है। यह उस प्रमुख शैतान की गलती है।" उस स्थिति में, हमें संसार के लोगों को बताना चाहिए कि यह फालुन गोंग का दमन क्यों करती है और फालुन गोंग का दमन करने के पीछे उसका क्या उद्देश्य था; हमें लोगों को यह समझने में सहायता करनी चाहिए कि वास्तव में कौन दुष्ट पंथ है और पार्टी क्या है। जिन दाफा शिष्यों का दमन किया जा रहा है, उन्हें इसके कलंकित भूतकाल को उजागर करना चाहिए।

सांसारिक मामले दाफा शिष्यों की चिंता का विषय नहीं हैं, जो कि साधक हैं, लेकिन मैं, ली होंगज़ी, ऐसे सभी मामलों के बारे में जानता हूँ। (तालियाँ) मैं पिछले कई वर्षों के दमन के दौरान इन बातों को समझाता रहा हूँ, और फिर भी दमन जारी है। सीसीपी का नया नेतृत्व अब तक दो वर्षों से सत्ता में है, और दमन जारी है। क्या यह केवल भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा बुरे काम करने का मामला है? तो फिर हमें संसार को उस राजनीतिक पार्टी की मौलिक दुष्टता के बारे में क्यों नहीं बताना चाहिए? यदि आपने हमारा दमन नहीं किया होता, तो हम आपसे कोई सरोकार नहीं रखते, और हम आपके बारे में कुछ भी नहीं कहते। इतने सारे दाफा शिष्यों की जान ले ली गयी है, और दमन जारी है। इतनी दुष्टता! साथ ही, पार्टी ने संसार के हर कोने में दुष्प्रचार प्रसारित करने के लिए एकतरफा मीडिया का उपयोग किया है, और यह सांस्कृतिक क्रांति से भी बदतर है। यह इतने अच्छे और दयालु लोगों के समूह को निशाना बना रही है। यदि मैं इसे सहन कर भी लूं और बर्दाश्त कर भी लूं, तब भी कोई भी देवता इसका समर्थन नहीं करेगा! (तालियाँ)

शिष्य: भावुकता के प्रति मेरे मोहभाव के कारण मैंने गलतियाँ की हैं। मैं अपने द्वारा चुने गये मार्ग का पश्चाताप अनुभव करता हूँ। मुझे इसकी भरपाई कैसे करनी चाहिए?

गुरूजी: (गुरूजी आह भरते हैं) वास्तव में ये वे बातें हैं जो गुरू को सबसे अधिक पीड़ा पहुँचाती हैं। एक साधक के लिए, यह बहुत लज्जाजनक है। यह एक साधारण व्यक्ति के लिए भी लज्जाजनक है, लेकिन आप एक साधक हैं, तो आप इसे चर्चा के लिए सबके सामने कैसे ला सकते हैं? यह बहुत लज्जाजनक है। क्या आप जानते हैं कि प्राचीन समय की साधना में, जैसे ही कोई साधक इस नियम को तोड़ता था, वह अपने जीवन के शेष समय में फिर से साधना नहीं कर पाता था। यह इतना गंभीर है।

तो, क्या किया जा सकता है? दाफा दयालु है, और गुरू आपके अस्तित्व को उसकी संपूर्णता में देखते हैं, और मानव संसार के फा सुधार के आने से पहले आपके पास अभी भी अवसर होंगे। लेकिन आप उन गलतियों को फिर से नहीं दोहरा सकते। आप बस ऐसा नहीं कर सकते। और विशेष रूप से इस समय अवधि के दौरान, दुष्टता आपकी भावुकता का लाभ उठाकर आप पर अपने दमन को बढ़ाएगी और आपकी इच्छाओं एवं मोहभावों को विशेष रूप से शक्तिशाली बनाएगी, इस हद तक कि आप स्वयं को अच्छी तरह से संभाल नहीं पाएंगे और एक दुष्ट मार्ग पर चल पड़ेंगे। गुरू ने यह देखा है। यदि आप अपने मार्ग पर अच्छी तरह से चल सकते हैं और अच्छी तरह से साधना कर सकते हैं, तो वह पाप दुष्टता का होगा। लेकिन यदि आप अभी भी अपने मार्ग पर अच्छी तरह से नहीं चलते हैं, तो वह पाप आपका अपना होगा। निःसंदेह, जो दुष्टता आपके साथ हस्तक्षेप कर रही है, उसे समाप्त कर दिया जाएगा, और उसके बाद आप जो कुछ भी करेंगे वह आपका अपना होगा।

फा-सुधार काल के दौरान, जब फा पूरे ब्रह्मांड का सुधार कर रहा है, क्या आप जानते हैं कि गुरू यह कैसे कर रहे हैं? पूरे ब्रह्मांड में सभी प्राणियों के लिए, जिसमें संसार के लोग, और इस संसार से नीचे के प्राणी सम्मिलित हैं—यहाँ तक कि वे जो बहुत नीचे हैं, जिनमें पाताल और नर्क के प्राणी भी सम्मिलित हैं—मैं एक सिद्धांत के अनुसार काम करता रहा हूँ : चाहे किसी प्राणी ने अपने अतीत में कोई भी पाप या गलती की हो, मैं उन सभी को अनदेखा करता हूँ; मैं आपके लिए उन सभी चीजों से छुटकारा दिला सकता हूँ और सब कुछ अच्छा कर सकता हूँ। किसी ने भी पहले कभी भी चेतन जीवों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया है। यदि ब्रह्मांड में कोई स्थान उचित नहीं रह पाता था, तो उसे विस्फोट के माध्यम से नष्ट कर दिया जाता था और फिर से बनाया जाता था। यदि कोई स्थान उचित नहीं रहता, तो यह मानव शरीर के उपापचय की तरह था, जहाँ यदि कोई कोशिका उचित नहीं है तो वह मर जाती है और एक नई बनती है। सभी प्राणियों के साथ ऐसा दयालु व्यवहार करना कुछ ऐसा है जो ब्रह्मांड के अस्तित्व के दौरान कभी नहीं हुआ। (तालियाँ) मैं हमेशा से यही करता आ रहा हूँ, और मैं इसमें सफल रहा हूँ। लेकिन एक बात है। यदि फा-सुधार अवधि के दौरान दाफा के विरुद्ध कोई पाप किया जाता है, जिससे फा-सुधार में बाधा उत्पन्न होती है, तो उस पाप को क्षमा नहीं किया जा सकता। बस यही एक शर्त है। यदि यह शर्त भी न होती, तो ब्रह्मांड का फा अब अस्तित्व में नहीं होता। भविष्य के प्राणियों के पास अनुसरण करने और पालन करने के लिए फा नहीं होता, और यह वैसा ही होता जैसे ब्रह्मांड में फा का न होना, जिससे यह एक अव्यवस्थित, अस्त-व्यस्त संसार बन जाता। ऐसा नहीं हो सकता! यह ब्रह्मांड को हानि पहुँचाने के समान होगा, इसलिए फा-सुधार में नकारात्मक प्रभाव होने का अर्थ है ऐसा पाप करना। किसी प्राणी के लिए, यह केवल एक अनुचित विचार के कारण हो सकता है, लेकिन इसके परिणाम विनाशकारी होते हैं।

शिष्य: आदरणीय गुरूजी को नमन। मैं हेइलोंगजियांग प्रांत का एक कोरियाई शिष्य हूँ। कृपया मुझे हेइलोंगजियांग के सभी दाफा शिष्यों और कोरिया में विभिन्न सत्य-स्पष्टीकरण समूहों की ओर से गुरूजी को नमन करने की अनुमति दें।

गुरूजी: धन्यवाद। (तालियाँ) कोरिया में दाफा शिष्यों ने बहुत अच्छा काम किया है। मुख्यभूमि चीन में भी कोरियाई जातीयता के कई दाफा शिष्य हैं और उनका बहुत गंभीर रूप से दमन किया गया है। मैं इन सब के बारे में जानता हूँ।

शिष्य: हमारा सत्य-स्पष्टीकरण समूह बीजिंग क्षेत्र में सत्य को स्पष्ट करने पर ध्यान केंद्रित करता है, हमारे प्रयासों का 80% वहाँ उपयोग करता है, और शेष 20% का उपयोग अन्य चीजों पर करता है, जिसमें शिष्यों को बचाने के प्रयास सम्मिलित हैं। जब हम बीजिंग क्षेत्र में सत्य को स्पष्ट करने के प्रयासों को शक्तिशाली करते हैं, तो क्या मैनहट्टन में केंद्रित दुष्टता कम हो जाएगी?

गुरूजी: इसे कहने का उचित तरीका यह है : जब भिन्न-भिन्न स्थानों से आये दाफा शिष्य बहुत अच्छा कर रहे होते हैं, तो दुष्टता उन सभी से निपट नहीं पाती और सभी स्थानों से समाप्त हो जाती है। मैनहट्टन में आयी दुष्टता पूर्ण रूप से समाप्त होने की प्रक्रिया में है। अभी, त्रिलोक में दुष्टता बड़ी मात्रा में समाप्त हो चुकी है। आप देख सकते हैं कि वर्तमान स्थिति बदल रही है, और यहाँ तक कि मौसम भी बदल रहा है। न्यूयॉर्क वाणिज्य दूतावास के सामने बैठे दाफा शिष्य जानते हैं कि यह सबसे ठंडा स्थान था, और हमारे दाफा शिष्यों ने इन वर्षों में वास्तव में बहुत कुछ सहा है। वर्तमान स्थिति को देखते हुए, विभिन्न स्थानों से आये दाफा शिष्य दाफा का मान्यकरण करने के लिए अपने कौशल और प्रतिभा का पूर्ण रूप से उपयोग कर रहे हैं, इसलिए यह दुष्टता कम होती जा रही है। उसे वास्तव में स्वयं को केन्द्रित करना और कुछ भी करना कठिन है।

शिष्य: मैं और शेष सभी लोग एक साथ कैसे काम कर सकते हैं जिससे हम मामलों को व्यापक रूप से देख सकें और दाफा को प्राथमिकता दे सकें?

गुरूजी: यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके बारे में सभी दाफा शिष्यों को सोचना चाहिए। जहाँ तक इसकी बात है कि क्या करना है, केवल फा का अच्छी तरह से अध्ययन करके और गुरूजी द्वारा बताये अनुसार कार्य करके ही आप इस मार्ग पर उचित तरीके से चल सकते हैं।

शिष्य: मुख्यभूमि चीन से आये हम शिष्यों के लिए अमेरिका जाकर फा सम्मेलनों में भाग लेना बहुत कठिन है, और हमारे लिए गुरूजी को व्यक्तिगत रूप से देखना दुर्लभ है। हम गुरूजी से मन से अनुरोध करना चाहेंगे कि वे मुख्यभूमि चीन से आये उन शिष्यों को संबोधित करें जो गुरूजी को फा-सुधार में सहायता करने के लिए कोरिया गये थे। कृपया हमें बताएं कि हमें जो करना चाहिए उसे कैसे अच्छे से कर सकते हैं और अतीत में हमने जो प्रतिज्ञाएँ की थीं उन्हें कैसे पूरा कर सकते हैं।

गुरूजी: दाफा के सभी शिष्य एक समान हैं, और आपको अच्छा करना चाहिए चाहे आप कहीं भी हों। चाहे आप विदेश में हों या ऐसे वातावरण में हों जहाँ आपका सीधे दुष्टता द्वारा दमन किया जाता हैं, आपको दाफा के शिष्यों के पवित्र विचारों और पवित्र कार्यों को प्रदर्शित करना चाहिए, क्योंकि इससे दुष्टता में भय पैदा होता है। दुष्टता सतह पर घमंड से भरी हुई है, लेकिन अंदर से वह डरी हुई है। आप दाफा के शिष्य हैं, और आपके अंदर भय नहीं हो सकता। यदि कोई साधक वास्तव में मृत्यु के भय को छोड़ सकता है, तो मृत्यु हमेशा के लिए आपसे दूर हो जाएगी। लेकिन यह कुछ ऐसा नहीं है जिसकी आप घटित होने की चाह कर सकते हैं—यह एक ऐसा बिंदु है जिस तक आप फा में साधना करते हैं, जिस पर आप उस प्रकार के प्राणी बन जाते हैं। जब मुख्यभूमि चीन में दमन शुरू हुआ, यदि सभी दाफा शिष्य अभी के जैसे उचित पवित्रता से आचरण करने में सफल रहे होते, तो दमन कभी शुरू ही नहीं होता, और वे दुष्ट चीजें तुरंत नष्ट हो जातीं। मानव संसार उनके लिए दुष्टता का प्रदर्शन करने का स्थान नहीं है।

अब आप लोग धीरे-धीरे अधिक स्पष्ट, शांत और अधिक तर्कसंगत हो गये हैं, और आप जानते हैं कि क्या करना है, और यह माना जा सकता है कि आपके बहुत से मानवीय मोहभाव हट गये हैं। लेकिन, वास्तव में, कुछ शिष्यों के साथ ऐसा नहीं है कि उनके मानवीय मोहभाव हट गये हैं, बल्कि यह है कि शिष्य कुछ भी अनुचित करने से बहुत डरते हैं, और यदि वातावरण थोड़ा सा सहज हो जाता है तो वे फिर से वही चीजें करने का साहस करते हैं। यह अच्छा नहीं है। यदि कोई व्यक्ति फा में साधना नहीं कर सकता है, तो वह वास्तव में फा को समझने में सक्षम नहीं है। केवल जब कोई व्यक्ति वास्तव में फा को समझ लेता है, तभी वह उचित मार्ग पर चल सकता है और उसके अस्तित्व को एक अच्छे परिणाम का आश्वासन मिल सकता है। अन्यथा उस प्रकार का प्राणी सबसे संकटमय स्थिति में रहता है, क्योंकि दुष्टता किसी भी समय उसकी कमियों का लाभ उठा सकती है। यदि वह एक साधारण व्यक्ति होता, चाहे वह कितना भी बुरा क्यों न हो, दुष्टता उस पर कोई ध्यान नहीं देती। हालाँकि, क्योंकि वह साधना करना चाहता है, दुष्टता उसे साधना करने से रोकने का प्रयत्न करेगी। और जब आप दृढ़ता से साधना नहीं करते तो आप दुष्टों के दमन का लक्ष्य बन जाते हैं।

शिष्य: कुछ शिष्य सत्य को स्पष्ट करने के लिए बहुत उत्साही हैं, लेकिन वे कभी भी आत्म-मोहभाव की क्षुद्र सीमाओं से आगे नहीं बढ़ पाये हैं। उन्होंने समग्र सहयोग और समन्वय में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है, और इससे भी अधिक बुरा, उन्होंने कुछ अन्य शिष्यों को प्रभावित किया है। यदि वे अभी भी साथी अभ्यासियों की सहायता लेने पर भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकते हैं, तो मैं गुरूजी से पूछना चाहूँगा कि भविष्य में उन शिष्यों को किस प्रकार के परिणामों का सामना करना पड़ेगा?

गुरूजी: मेरे विचार में, अभी आप यह नहीं कह सकते कि शिष्य कैसे हैं या उनके बारे में निष्कर्ष नहीं निकाल सकते हैं, क्योंकि साधना की प्रक्रिया में सभी प्रकार की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ होती हैं, और सभी साधारण लोगों के मोहभाव दिखायी देंगे। जब तक कोई अभ्यासी उन्हें हटा नहीं देता, वे निश्चित रूप से दिखायी देंगे। जहाँ तक उस भाग की बात है जिसने अच्छी तरह से साधना की है, वह कहीं भी दिखायी नहीं देता है, क्योंकि उसका वह भाग जिसने अच्छी तरह से साधना की है, दिखाया नहीं जा सकता है। और वह भाग जिसकी अच्छी तरह से साधना नहीं की गयी है, जब भी वह उभर कर आयेगा, तो दूसरों को दिखायी देगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि वह इससे कैसे निपटता है और क्या वह अपनी कमियों को पहचान पाता है जब दूसरे लोग उस भाग की ओर इंगित करते हैं या जब संघर्षों में उसका मोहभाव सामने आता है—यही सबसे महत्वपूर्ण है। एक बार जब आप किसी चीज को पहचान लेते हैं तो आपको उस पर नियंत्रण पाने की आवश्यकता होती है, और केवल यही साधना है। जो भी हो, मैं कहूँगा कि यह दृढ़ता का प्रश्न है।

यदि कोई व्यक्ति अच्छी तरह से साधना नहीं करता है और किसी अन्य दाफा शिष्य या बहुत से अन्य दाफा शिष्यों को प्रभावित करता है, और उनकी साधना को विफल बनाता है, तो यह दाफा शिष्यों की साधना में बाधा डालने का गंभीर पाप होगा, जिसे नर्क के अठारहवें स्तर पर गिरने के बाद भी क्षमा नहीं किया जा सकता है। कुछ शिष्य अपने पुराने मोहभावों को हटाने में सक्षम नहीं हैं, जिसके कारण उन्हें दुष्टता द्वारा बाधित किया जाता है। आप सभी सोच रहे हैं कि अब इन लोगों का कुछ नहीं हो सकता और वे पहुँच नहीं पाएंगे। अभी आप इसे इस प्रकार से नहीं देख सकते। कुछ शिष्यों ने वास्तव में कई अन्य मोहभावों से छुटकारा पा लिया है, और बहुत से मोहभाव हट गये हैं और प्रकट नहीं होते हैं, लेकिन वे मोहभाव जिन्हें उन्होंने नहीं हटाया है, वे अभी भी दिखायी देते हैं। गुरू निश्चित रूप से उन्हें बाहर निकलने देंगे और संघर्षों में प्रभावित होने देंगे, और निश्चित ही सभी को इसे देखने देंगे, और इसका लक्ष्य उन्हें उनसे छुटकारा दिलाना होगा। जब आप किसी में देखते हैं, तो आपको उन्हें इसके बारे में बताना होगा। यदि आप इसे इंगित नहीं करते हैं तो इसका कारण यह है कि आपको दूसरों को अपमानित करने के डर से मोहभाव है। उस स्थिति में, उन्हें आपके साथ टकराव और संघर्ष करने के लिए विवश किया जाएगा जिससे आप और वह दोनों उन मोहभावों को पहचान सकें। और इसका लक्ष्य उन मानवीय मोहभावों को हटाना है। लेकिन जब आप उन शिष्यों को देखते हैं जिनमें मोहभाव दिखते हैं, तो आप यह नहीं सोच सकते कि वे अच्छे नहीं हैं। इसलिए दाफा शिष्यों के बीच ग़लतफ़हमियाँ और गलतियाँ अपरिहार्य हैं। मुख्य बात यह है कि आप आपस में वास्तविक टकराव और संघर्ष नहीं कर सकते या एक-दूसरे पर अविश्वास करना शुरू नहीं कर सकते।

हाल ही में, मैंने अक्सर एक दूसरे के साथ सहयोग और समन्वय के मुद्दे पर जोर दिया है। चाहे आपके वे बुरे मोहभाव हट गये हों या नहीं, आपको एक दूसरे के साथ वैसे ही अच्छे से सहयोग करना होगा। ऐसा क्यों होता है कि कभी-कभी आप देखते हैं कि बहस बहुत होती है, और कभी-कभी बहस चलती ही रहती है? ऐसा क्यों होता है कि फा का मान्यकरण करते समय, शिष्यों की राय कई बार एक नहीं होती? यह कुछ ऐसा है जो हाल ही में मुख्यभूमि चीन में काफी प्रमुख रहा है। वास्तविक समस्या क्या है? यह बहुत सरल है—प्रश्न यह है कि क्या आप फा का मान्यकरण कर रहे हैं या स्वयं का मान्यकरण कर रहे हैं। यदि आप फा का मान्यकरण कर रहे हैं, तो कोई अंतर नहीं पड़ता कि कोई अन्य व्यक्ति आपके बारे में क्या कहता है, आप अंदर से प्रभावित नहीं होंगे। यदि कोई आपकी राय का विरोध करता है और आप भड़क जाते हैं और यह आपको अच्छा नहीं लगता है, यदि जब अन्य लोग आपकी किसी समस्या के आधार पर आपके विपरीत राय रखते हैं या आपकी राय से असहमत होते हैं और आपको यह अच्छा नहीं लगता है, और आप इसका विरोध करने के लिए खड़े होते हैं और अपनी ओर से बहस करते हैं, और जब यह आपको विषय से भटका देता है और दूसरों की बात नहीं सुनने देता है, [ऐसे सभी मामलों में] आप—चाहे आप सबसे अच्छे इरादों के साथ स्वयं का बचाव और स्पष्टीकरण कर रहे हों—फिर भी आप केवल स्वयं का मान्यकरण कर रहे हैं। (तालियाँ) ऐसा इसलिए है क्योंकि आपने दाफा को पहले स्थान पर नहीं रखा, और उस समय जिस चीज को आप सबसे अधिक नहीं छोड़ पाये थे वह था आपका स्व।

लेकिन लोगों के विचार जटिल होते हैं, और कभी-कभी यह बताना कठिन होता है। कुछ लोग वास्तव में फा के बारे में सोच रहे होते हैं, वास्तव में अनुभव करते हैं कि यह या वह तरीका उचित है, और उनका स्वयं से मोहभाव नहीं होता है। वे बस ऐसे ही अपनी बात पर टिके हुए हैं। कुछ लोग कह सकते हैं, "आप इतने आग्रही हैं, क्या आप स्वयं का मान्यकरण नहीं कर रहे हैं?" इसलिए ऐसे समय में आपको शांत और संयमित रहना चाहिए। वास्तव में, जब हर कोई फा के बारे में सोच रहा होता है तो सहयोग न करने की समस्या अस्तित्वहीन होती है। हम जहाँ भी हों, हमें अच्छे लोग होना चाहिए—क्या हमें काम करते समय पहले दूसरों के बारे में नहीं सोचना चाहिए? ऐसा क्यों है कि दाफा के शिष्य एक-दूसरे के साथ व्यवहार करते समय पहले दूसरों के बारे में नहीं सोचते? आप सोचते हैं, "हम सभी साधक हैं और हर कोई साधना कर रहा है, इसलिए जब हम दूसरे शिष्यों के साथ होते हैं तो हमें यह सोचने की आवश्यकता नहीं है कि हम एक-दूसरे से कैसे बात करते हैं।" क्या आप यही नहीं सोच रहे हैं? लेकिन, यह उचित नहीं है। इस बात को ना भूलें : आप मनुष्य हैं जो साधना की प्रक्रिया में हैं, आप साधना करने वाले देवता नहीं हैं, इसलिए आपको दूसरों के बारे में सोचना चाहिए।

शिष्य: कोरिया में शिष्य विभिन्न प्रकार के लोगों को सत्य स्पष्ट करने के प्रयास को बढ़ाने के लिए सभी प्रकार के तरीकों का उपयोग कर रहे हैं, और वे धीरे-धीरे लोगों का ध्यान और समर्थन प्राप्त कर रहे हैं। सत्य-स्पष्टीकरण ने बेहतर और बेहतर परिणाम दिए हैं, और साथ ही, पूरे देश में बड़ी संख्या में नए शिष्य जुड़ रहे हैं। लेकिन हाल ही में, एक के बाद एक, कुछ शिष्यों की दुर्घटनाएँ हुईं और दुखद रूप से मृत्यु हो गयी। एक की मृत्यु उस समय हुई जब वह जिस बस में सवार था वह पलट गयी, एक डूब गया, और एक अन्य की मृत्यु कार्यस्थल पर दुर्घटना में हुई। उनमें से एक शिष्य सत्य को स्पष्ट करने में बहुत सक्रिय था। ऐसी कई घटनाओं के घटित होने से कुछ नए शिष्य डगमगा गये हैं।

गुरूजी: मैंने अभी-अभी प्राचीन शक्तियों के फा-सुधार और दाफा शिष्यों में हस्तक्षेप के बारे में बात की। तो फिर प्राचीन शक्तियाँ ऐसा क्यों करती हैं? उनका लक्ष्य क्या है? वे सोचते हैं, "आप सभी यहाँ साधना करने आये हैं और आपको लगता है कि दाफा अच्छा है। क्या दाफा की अच्छाई के बारे में आपकी समझ वास्तव में फा सत्य पर आधारित है? या बल्कि, क्या आप केवल इसलिए साथ हैं क्योंकि दूसरे कहते हैं कि यह अच्छा है? या फिर आप कहते हैं कि फा अच्छा है जब आपको लगता है कि आपको इससे लाभ हुआ है?” साधना और दाफा पवित्र हैं, और वे मनुष्यों को देवताओं में परिवर्तित कर सकते हैं। प्राचीन शक्तियां इसे सहन नहीं कर सकतीं, इसलिए वे आपकी परीक्षा लेना चाहती हैं। वे देखना चाहती हैं कि क्या आप तब भी दाफा को अच्छा कहेंगे और तब भी बने रहेंगे और साधना करेंगे जब उनके सामने लोगों की मृत्यु होगी जिनके जीवन काल अंत तक पहुँच चुके होंगे। प्राचीन शक्तियों ने ऐसा किया है, इसलिए जब कोई शिष्य जानलेवा खतरे का सामना करता है, तो आप यह नहीं कह सकते कि वह अच्छा नहीं है या उसे कोई गंभीर समस्या है। वास्तव में प्राचीन शक्तियां मानवीय मोहभावों का लाभ उठाकर गड़बड़ी उत्पन्न करती हैं। एक बात यह है कि कुछ शिष्यों के लिए डगमगाना सरल है, और यदि उस प्रकार के शिष्यों ने बहुत अच्छी तरह और दृढ़ता से साधना की होती, तो वे समस्याएँ नहीं होतीं। यदि कुछ शिष्य अपने भीतर लंबे समय से चले आ रहे मोहभावों से छुटकारा नहीं पा सकते, तो उनका दमन किया जा सकता है और उनके साथ हस्तक्षेप किया जा सकता है। [वे शायद सोचते हैं,] "मैं अभ्यास कर रहा हूँ, और मेरे रोग ठीक हो गये हैं। मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। मेरा जीवन सरल हो गया है।" उनकी समझ हमेशा उसी स्तर पर बनी रहती है और वे फा के आधार पर फा को नहीं समझ पाते, और इससे समस्याओं का उत्पन्न होना सरल हो जाता है। निश्चित ही, ये चीजें हमेशा उस प्रकार की समस्या से उत्पन्न नहीं होती हैं। प्राचीन शक्तियां लंबे समय से ऐसा करती आ रही हैं, और इस प्रकार की चीजें मुख्यभूमि चीन में शिष्यों की साधना में पहले भी हुई हैं। इसलिए साधना में चीजों को पवित्र विचारों से देखना और स्पष्ट रूप से पहचानना अनिवार्य है कि साधना सबसे गंभीर मामला है।

निश्चित ही, कुछ चीजें हुई हैं। विभिन्न क्षेत्रों के शिष्यों की समझ काफी हद तक स्पष्ट हो गयी है, वे फा के आधार पर चीजों को समझने में सक्षम हैं, और इस प्रकार वे उन चीजों को उचित ढंग से संभाल सकते हैं। कुछ शिष्य हुआ करते थे जो अक्सर कहते थे, "हमारे अभ्यास स्थल पर अमुक व्यक्ति ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है! वह जो भी करेगा, हम करेंगे।" मैं आप सभी को बता दूं कि आपको ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए और बिल्कुल भी इस प्रकार नहीं सोचना चाहिए। साधक अन्य मनुष्यों को अपना आदर्श नहीं मान सकते। उन्हें फा को गुरू के रूप में लेना चाहिए! (तालियाँ) जैसे ही आप चीजें करना शुरू करते हैं [जैसा मैंने वर्णन किया है] और उस प्रकार से सोचना शुरू करते हैं, दो समस्याएँ सामने आएंगी। एक यह कि आप संभवतः उस शिष्य को ऐसे स्थान पर धकेल देंगे जहाँ से उसके निकलने के लिए कोई मार्ग नहीं होगा। और यह संभव है कि प्राचीन शक्तियां उसे समस्याओं में डाल देंगी और अन्य शिष्यों की परीक्षा लेने के लिए उसे शीघ्र ही हमें छोड़ कर जाने के लिए विवश कर देंगी। [वे सोचेंगे,] "आप सभी उसका अनुसरण कर रहे हैं। ऐसा होने पर, क्या आप अभी भी अध्ययन करेंगे, और क्या आप अभी भी साधना करेंगे?" ऐसी परिस्थितियों में, वास्तव में कुछ शिष्य ऐसे होते हैं जो सोचते हैं, "यदि वह भी सफल नहीं हो पाया, तो क्या मैं सफल हो पाऊँगा?" वे डगमगाते हैं। क्या यह प्राचीन शक्तियां कमियों का लाभ नहीं उठा रही हैं? [ऐसी स्थिति में] मैं, आपका गुरू, भी कुछ नहीं कह सकता! प्राचीन शक्तियां कहती हैं, "देखिए। देखिए कि उस परीक्षा का परिणाम कैसा रहा? हमने जो किया वह उचित था, है न?" इसलिए जब पवित्र विचार शक्तिशाली नहीं होते, तो लोगों का मन डगमगाता है। आपको इससे पूर्ण रूप से सावधान रहना चाहिए! आपको फा को गुरू के रूप में लेना चाहिए। आप केवल यह देख कर कि किसी व्यक्ति ने कितनी अच्छी तरह से साधना की है, फा के स्थान पर उस व्यक्ति से सीखने नहीं लग सकते।

क्या मुख्यभूमि चीन में जब दमन शुरू हुआ था, तब ऐसे शिष्य नहीं थे? बहुत से शिष्य स्वयंसेवकों का अनुसरण करते थे और वही करते थे जो स्वयंसेवक करते थे। जब स्वयंसेवकों ने हार मान ली, तो उन्होंने भी वैसा ही किया और हार मान ली। निश्चित ही, शिष्य अंततः दाफा के शिष्य हैं, इसलिए जब वे बाद में शांत हुए, तो उन्हें एहसास हुआ कि वे अनुचित कर रहे थे। उन्होंने फिर से फा का अध्ययन करना शुरू किया, और अनुभव किया कि उनकी समझ अनुचित थी और उन्होंने जो किया वह अनुचित था। लेकिन, इसके उस पक्ष को देखते हुए, क्या इसने उन्हें लज्जित नहीं किया? उन्होंने एक समय पर वह काम किया था, इसलिए एक साधक के लिए, क्या यह एक काला धब्बा नहीं है? इसलिए, लोगों के मन के डगमगाने से साधना वातावरण में समस्या आयेगी। आपको निश्चित रूप से इस पर ध्यान देना चाहिए।

साधना के दौरान सभी प्रकार की चीजें हो सकती हैं। कुछ लोगों ने देखा कि इन या उन लोगों के रोग अभ्यास शुरू करने के बाद ठीक हो गये। उन्होंने सोचा, "वाह, इतने गंभीर रोग भी ठीक हो गये।" या, "वाह, उस व्यक्ति का कैंसर अभ्यास शुरू करने के बाद ठीक हो गया।" "मैं भी अभ्यास करूँगा।" लेकिन वह व्यक्ति क्यों आया? वह कैंसर के कारण और स्वस्थ होने के उद्देश्य से आया था। वह यहाँ सच्ची साधना करने नहीं आया था। लेकिन मुझे एहसास है कि हर किसी को फा को समझने के लिए कहीं न कहीं से शुरुआत करनी होती है। एक व्यक्ति एक बिंदु पर फा को समझना शुरू कर सकता है और दूसरा किसी दूसरे बिंदु पर। लेकिन एक बार जब कोई व्यक्ति अभ्यास शुरू करता है तो उसे फा का अध्ययन करना सबसे प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण मानना चाहिए—तभी वह साधना है। उस स्थिति में, जब आप साधना के दौरान वास्तव में फा को समझ पाते हैं, तो आप किसी भी मोहभाव से छुटकारा पा सकेंगे। आप सोचेंगे, "मैंने फा प्राप्त कर लिया है, और मुझे किसी चीज का डर नहीं है। यदि मैं मर भी जाऊँ, तो भी। यदि मैं मर भी जाऊँ, तो भी मैंने फा प्राप्त कर लिया है। मेरे मरने के बाद मेरा क्या होगा? मैं नर्क में नहीं जाऊँगा। अंततः, मैंने फा प्राप्त कर लिया है।" ऐसे व्यक्ति को ऐसी किसी भी चीज का सामना नहीं करना पड़ेगा जो उसके जीवन को खतरे में डाले और उसे कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं होगी (तालियाँ)। ऐसा इसलिए है क्योंकि वह जिस मनःस्थिति का प्रदर्शन करता है वह एक सच्चे साधक की है। वह वास्तव में समझ गया है [कि साधना क्या है] और वास्तव में स्वयं को ऊँचा उठा लिया है, और उसने सभी मोहभावों को छोड़ दिया है। कम से कम इस मामले में वह मानवीयता से परे चला गया है, वह मानवीयता की सीमा से परे चला गया है। केवल साधारण मनुष्यों को ही स्वास्थ्य समस्याएँ होती हैं। एक बार जब वह ठीक होने के प्रति अपना मोहभाव छोड़ देता है तो उसकी स्वास्थ्य समस्याएँ दूर हो जाएँगी।

कुछ लोग लंबे समय से अपने उपचार के प्रति मोहभाव को छोड़ने में सफल नहीं हो पाए हैं। सामान्य परिस्थितियों में जब कोई व्यक्ति किसी घातक रोग से पीड़ित होता है तो वह वास्तव में अपने जीवनकाल के अंत तक पहुँच चूका होता है। वह एक घातक रोग से पीड़ित है और उसका जीवन समाप्त होने वाला है, लेकिन अब उसने दाफा का अध्ययन किया है। चाहे वह ठीक होने के लिए ही आया है, फिर भी उसे फा को समझने के लिए फा का अध्ययन जारी रखने की अनुमति है। वह लोगों के जीवन में [फा] के उदाहरणों को भी देखता है, लेकिन वह अभी भी फा के आधार पर फा को नहीं समझ पाता है। वह पुस्तकें नहीं पढ़ता है, इसलिए वह फा के आधार पर चीजों को नहीं समझ पाता है। वह केवल अभ्यास करने में दूसरों का अनुसरण करता है। वह अभी भी सोचता है, "मैं फालुन गोंग का शिष्य बन गया हूँ। मैं अभ्यास करता रहता हूँ। मैं ठीक क्यों नहीं हुआ?" साधना एक गंभीर मामला है। किसी के मन की यह परीक्षा स्पष्टता का मुद्दा है। आप जितना अधिक मोहभाव रखेंगे, आपको उतना ही कष्ट होगा। जब आप जांच के लिए अस्पताल जाते हैं तो आपको पता चलता है कि आपका रोग और भी बदतर हो गया है। फिर भी आप इसके बारे में जागरूक नहीं होते। चूँकि आप इसके बारे में जागरूक नहीं होते, इसलिए यह और भी गंभीर होता जाता है और अंत में आप वास्तव में इससे उबर नहीं पाते। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आप सच्चे शिष्य नहीं हैं, आप फा का अध्ययन नहीं करते और आप अपने रोग के प्रति अपना मोहभाव नहीं छोड़ पाते। आप एक साधारण व्यक्ति हैं जो अपने रोग को ठीक करवाना चाहता है। मेरे द्वारा दाफा के प्रसार का उद्देश्य लोगों को उनके अस्तित्व के मूल स्तर पर बचाना है, न कि साधारण लोगों को ठीक होने में सहायता करना। यदि आप वास्तव में साधना कर सकते हैं, जब आप वास्तव में जीने के प्रति अपना मोहभाव या मृत्यु के भय को छोड़ सकते हैं—और आप निरंतर इसके बारे में सोचते हुए केवल दूसरों को दिखाने के लिए उस प्रकार का आचरण नहीं करते—तो चाहे आपको कोई भी रोग हो, वह ठीक हो जाएगा। साधना में, मनुष्यत्व और ईश्वरत्व के बीच का अंतर केवल एक विचार का अंतर है। एक विचार का यह अंतर सरल लगता है, लेकिन इसे साधना में एक गहरे और ठोस आधार के साथ ही प्राप्त किया जा सकता है। यदि आप सचमुच 'फा' के अध्ययन में बहुत अधिक प्रयास कर सकें, तो आप इसे प्राप्त करने में सक्षम होंगे।

निश्चित ही, जब भी ऐसी स्थिति आती है, तो साधारणतः व्यक्ति को लंबे समय तक दाफा में एक के बाद एक अवसर दिए जाते हैं, क्योंकि उसने अंततः फा प्राप्त कर लिया है। उसे निरंतर अवसर दिए जाते हैं और उसकी मृत्यु नहीं होती है, और उसे अवसर पर अवसर दिए जाते हैं। लेकिन यदि वह व्यक्ति इतने लंबे समय तक अवसर दिए जाने के बाद भी इसे प्राप्त नहीं करता है, चाहे उसने वर्षों तक साधना की हो और दाफा कार्य करने में दूसरों का अनुसरण किया हो, यदि वह अभी भी उपचार पाने के प्रति अपने मोहभाव के मूल स्तर को नहीं छोड़ सकता है, तो मूल स्तर पर वह अभी भी एक शिष्य नहीं है, और वह अपने जीवनकाल के अंत तक पहुँचने पर परलोक सिधार जाएगा। साधारण लोग भी दाफा कार्य कर सकते हैं, और उन्हें जो मिलता है वह है पुण्य। जब साधक दाफा कार्य करते हैं, तो वे साधारण पुण्य या अच्छे जीवन की चाह नहीं करते हैं; जो चीज [उनके लिए] सबसे महत्वपूर्ण है वह है अपना स्तर ऊँचा उठाना। साधक इस संसार की चीजों की चाह नहीं करते हैं। क्या अपने रोग से मोहभाव रखना मानव संसार में किसी चीज की चाह नहीं है? कुछ लोग कहते हैं, "एक बार मेरा रोग ठीक हो जाए तो मैं दाफा के लिए बहुत सारे अच्छे काम कर पाऊंगा! मैं अभी तक ठीक क्यों नहीं हुआ?" आपका ठीक होना, आपकी साधना करना और आपका दाफा शिष्य बनना, ये सभी शर्तों पर आधारित होगा। आप साधना करेंगे और [स्वयं को दाफा शिष्य के रूप में] तभी स्वीकार करेंगे जब आपका रोग ठीक हो जाएगा। हालाँकि साधना बिना किसी शर्त के की जाती है, और चीजें बिना किसी प्रयास के स्वाभाविक रूप से प्राप्त होती हैं।

निश्चित ही, कुछ भी अटल नहीं है। मैं जिस बारे में बात कर रहा था वह फा सत्य थे। लोगों की परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं, और मैं केवल एक उदाहरण दे रहा था। यदि सभी को अच्छी समझ हो तो सब कुछ सरलता से चलता रहेगा। लेकिन जब कोई व्यक्ति अपने मोहभावों को नहीं छोड़ पाता तो यह वास्तव में कठिन हो जाता है।

शिष्य: मैं आयरलैंड से एक दाफा शिष्य हूँ, और मैं आदरणीय गुरूजी को नमन करता हूँ। पिछले काफी समय से मैं फा का प्रसार करने या व्यक्तिगत साधना में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहा हूँ। क्या मेरे पास अभी भी इसकी भरपाई करने का समय है?

गुरूजी: तो फिर आपको करना चाहिए। चूँकि यह अभी समाप्त नहीं हुआ है, हाँ, अभी भी समय बचा है। (सभी मुस्कुराते हैं और तालियाँ बजाते हैं)) चाहे आपने अच्छा प्रदर्शन न किया हो, चाहे जो भी हो, गुरू अभी भी आप में से किसी को भी पीछे नहीं छोड़ना चाहते हैं। (तालियाँ)

मैंने पहले कहा है कि ब्रह्मांड का फा-सुधार एक चरण है और मानव जगत का फा-सुधार दूसरा चरण है। इसका अर्थ यह है कि, गुरू इसे दो चरणों में कर रहे हैं। इसलिए मैंने आपको त्रिलोक का फा नहीं सिखाया है, मैंने आपको केवल ब्रह्मांड का फा सिखाया है। मैंने त्रिलोक में विभिन्न जीवित चीजों की संरचनाओं, जीवन की उत्पत्ति, जीवन की संरचना, संसार के इतिहास या धर्म से लेकर विज्ञान तक इस संसार के सिद्धांतों के बारे में बात नहीं की है, जैसे कि वे चीजें कहाँ से आयीं, उनका उद्देश्य क्या है, मानव संसार में होने वाले विभिन्न संघर्षों के पीछे के कारण—इतिहास का सब कुछ। और जहाँ तक त्रिलोक की संरचना की स्थिति और त्रिलोक के विभिन्न खगोलीय पिंडों की बात है, मैंने आपसे उन चीजों के बारे में बात नहीं की है क्योंकि वे ब्रह्मांड में बहुत महत्वहीन हैं। त्रिलोक दाफा में शिक्षा देने के योग्य नहीं हैं, क्योंकि वे महत्वहीन हैं। जब मैं आपको महान नियम सिखाता हूँ तो इसमें त्रिलोक सम्मिलित होते हैं। भविष्य में आप सब कुछ जान जायेंगे, और मुझे आपको त्रिलोक की बातें बताने की कोई आवश्यकता नहीं होगी। भविष्य में मैं उन चीजों को संभालूँगा जिनका संबंध मनुष्यों से है, और उस समय मैं त्रिलोक के फा के बारे में बात करूँगा। जब भविष्य में त्रिलोक की चीजें करने का समय आयेगा, तब फा मानव संसार का सुधार करेगा।

क्योंकि कार्य दो चरणों में किए जा रहे हैं, इसलिए ब्रह्माण्ड में एक विशेष घटना घटी है। किस प्रकार की घटना? यह कि त्रिलोक को इस समय बंद रखा गया है—त्रिलोक के अन्दर के प्राणी बाहर नहीं जा सकते और त्रिलोक के बाहर के प्राणी अन्दर नहीं आ सकते। मैं ही था जिसने शुरू से ही चीजों को बंद रखा। प्राचीन शक्तियों द्वारा आरंभ में बनाए गये तत्व वहाँ थे और अभी भी हैं तथा उन्हें पूर्ण रूप से हटाया नहीं गया है, तथा मानवीय संसार की सतह पर कार्य किए जाने से पहले, प्राचीन शक्तियों के तत्वों का वह भाग अभी भी नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। इसलिए, क्योंकि फा-सुधार और मानवीय जगत का फा-सुधार दो भिन्न-भिन्न चरणों में किया जा रहा है, इसलिए त्रिलोक को ब्रह्माण्ड से अलग करने की आवश्यकता थी। मेरे फा-सुधार की शुरुआत से—पिछले दस से अधिक वर्षों के दौरान—यह निरंतर ब्रह्माण्ड से दूर होता जा रहा है। खगोलविदों ने देखा है कि ब्रह्मांड में उपस्थित खगोलीय पिंड अब पहले के खगोलीय पिंड नहीं रहे, और आकाशगंगा की स्थिति अब वैसी नहीं रही जैसी पहले थी, और अन्य तारा मंडल जो उस स्थान के आसपास थे जहाँ आकाशगंगा पहले उपस्थित थी, अब वैसी नहीं रहीं। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि त्रिलोक ब्रह्मांड से अलग हो रहा है। वैज्ञानिकों ने इस तथ्य को तब खोजा जब यह स्थानांतरित होने की प्रक्रिया में था, और वे कह रहे हैं कि ब्रह्मांड विस्तारित हो रहा है। वास्तव में यह आकाशीय पिंड हैं जो स्वयं को त्रिलोक से अलग कर रहे हैं, साथ ही त्रिलोक अपने मूल स्थान से और दूर जा रहा है। पिछले दस से अधिक वर्षों में, त्रिलोक ब्रह्मांड से निरंतर दूर जा रहा है। जैसे-जैसे यह हो रहा है, वैज्ञानिकों ने पाया है कि खगोलीय पिंडों में बहुत अधिक बदलाव हुए हैं। जो तारे पहले नहीं थे वे दिखायी दे रहे हैं, जो खगोलीय पिंड पहले नहीं थे वे दिखायी दे रहे हैं, और जो तारा मंडल पहले नहीं थे वे दिखायी दे रहे हैं। तो पहले से जो तारे और तारा मंडल थे, वे कहाँ चले गये? ब्रह्मांड में इतने बड़े परिवर्तन क्यों हुए हैं? वास्तव में यह परिवर्तन त्रिलोक की गति के कारण हुआ है, जैसे-जैसे वह ब्रह्मांड से अलग हो रहा है।

क्या प्योर इनसाइट वेबसाइट ने इसकी सूचना नहीं दी है? ब्रह्मांड प्रकाश की गति से भी अधिक तेजी से दूर होता जा रहा है, और आकाशगंगा ब्रह्मांड से अलग होती जा रही है। चूंकि यह उस बिंदु पर पहुंच गया है जहां मनुष्य भी इस चरण को देख सकते हैं, इसका अर्थ है कि विभाजन सबसे सतही स्तर पर पहुंच गया है। जब मैं ऐसा करना शुरू कर रहा था, तो कुछ देवताओं ने मुझसे कहा, "भविष्य में, मनुष्य सभी उन चीजों को देख पाएंगे जो आपने की हैं, और अंत में उन्हें एहसास होगा कि आपने ही उन्हें किया है।" ऐसा इसलिए है क्योंकि कुछ अभिव्यक्तियाँ धीरे-धीरे उस ओर एकत्रित होंगी जहाँ मैं हूँ।

एक बार विभाजन पूर्ण हो जाने पर, आकाशगंगा के बाहर के आयाम भी अस्तित्व में नहीं रहेंगे। मनुष्य को खालीपन भयावह लगेगा। आकाशगंगा के बाहर जो तारे हुआ करते थे और आकाशगंगा के बाहर हर स्थान बिखरे हुए सभी खगोलीय पिंड अदृश्य हो जाएँगे। प्योर इनसाइट वेबसाइट ने बताया कि हमारी आकाशगंगा ब्रह्मांड की "अकेली आत्मा और भटकती हुई प्रेतात्मा" बन जाएगी। आप सोचेंगे, "उस घटना का कारण क्या होगा?" ऐसा लगता है कि लोग—जिनमें वैज्ञानिक भी सम्मिलित हैं—इसके प्रति उदासीन हैं, लेकिन ऐसा केवल इसलिए है क्योंकि वे इसे नहीं समझते हैं। यदि ब्रह्मांड में अतीत में ऐसी कोई घटना घटी होती, तो आकाशगंगा अब अस्तित्व में नहीं होती। यदि ब्रह्मांड से अलग हो जाती, तो [आकाशगंगा] अस्तित्व में नहीं रह पाती और बिखर जाती। ब्रह्मांड का फा-सुधार और मानव जगत का फा-सुधार दो चरणों में किया जा रहा है, इसलिए त्रिलोक को ब्रह्मांड से अलग करना होगा। यदि ब्रह्मांड का फा-सुधार पूर्ण हो गया होता—और सब कुछ नया और पवित्र होता—लेकिन त्रिलोक अभी भी इतना अशुद्ध होता, तो यह ब्रह्मांड को प्रदूषित कर देता। ऐसे अद्भुत ब्रह्मांड के अंदर इतना अशुद्ध स्थान होना ठीक नहीं होगा, इसलिए इसे बाहर निकालकर अलग से सँभालने की आवश्यकता है। इसलिए उसे अलग किया जाएगा। (तालियाँ) वैज्ञानिकों ने अब वह खोज लिया है जिसका मैंने वर्णन किया था।

शिष्य: "बुद्ध फा" (लुन्यु) के पाठ में चीनी अक्षरों को ठीक करने के लिए हमें क्या करना चाहिए, जिसे कुछ अभ्यासियों ने अपनी दीवारों पर लटका रखा है...?

गुरूजी: हाँ, आप "बुद्ध फा" के पाठ को ठीक कर सकते हैं, जिसे आपने दीवार पर लटका रखा है। बस उचित रंग से सुधार करें। वैसे, कोई भी तरीका उचित रहेगा।

शिष्य: हम चीन में नए शिष्यों को आगे बढ़ने में कैसे सहायता कर सकते हैं?

गुरूजी: जब नए शिष्यों की बात आती है, तो आप उनके साथ अति शीघ्रता नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें अपनी समझ को बेहतर बनाने की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। यदि वे अपनी पहल से कुछ करने का प्रस्ताव रखते हैं, तो उन्हें करने दें। लेकिन यदि वे अपनी पहल से कुछ नहीं करना चाहते हैं, तो मुझे नहीं लगता कि हम उन्हें कुछ करने के लिए विवश कर सकते हैं, क्योंकि वे अभी भी नए शिष्य हैं।

शिष्य: हमें चीन के बाहर की बड़ी कंपनियों को कैसे देखना चाहिए जो चीन में निवेश करने के लिए तैयार हैं, और हमें अपने परिवार के सदस्यों की चीन वापस जाने की इच्छा को कैसे समझना चाहिए?

गुरूजी: यदि आपके परिवार के सदस्य साधना नहीं करते हैं और चीन वापस जाना चाहते हैं, तो यह ठीक है। यदि आप एक साधक हैं तो यह सबसे अच्छा है कि आप वापस न जाएँ—क्या आप स्वयं दमन को आमंत्रित नहीं कर रहे हैं? एक दाफा शिष्य के रूप में, आप वह नहीं कर पाएँगे जो दाफा शिष्यों को करना चाहिए, लेकिन यदि आप वे काम करते हैं तो आपका दमन किया जाएगा। और साथ ही, यहाँ ऐसी चीजें हैं जो आपको करनी चाहिए।

जहाँ तक चीन में निवेश करने की योजना बनाने वाली बहुत सी कंपनियों का प्रश्न है, तो अभी इस बारे में कुछ न करें। आपको केवल तथ्यों को स्पष्ट करना चाहिए और लोगों को बताना चाहिए कि दाफा क्या है और इसका दमन क्यों किया जा रहा है। सरकार द्वारा किए गये घृणित स्वांग और सभी घटिया कृत्यों को सामने लाएँ, जहाँ उन्होंने झूठ और बदनामी का निर्माण किया, दुष्टों के दमन को उजागर करें, संसार के लोगों को इन चीजों के बारे में बताएँ और उन्हें यह सब स्पष्ट रूप से देखने में सहायता करें—तब आप अपने लक्ष्य तक पहुँच जाएँगे। जब आप सच्चाई को स्पष्ट करें, तो केवल उसी स्तर की चीजों के बारे में बात करें और उससे ऊपर न जाएँ। जहाँ तक किसी कंपनी द्वारा कहीं निवेश करने की बात है, यदि आपको अवसर मिले, तो आप बस इतना ही कह सकते हैं : “केवल आप लोगों के निवेश के कारण ही चीन में दुष्टों के समूह के पास दमन के लिए धन उपलब्ध हैं। आप देख सकते हैं कि जब वे अपनी दुष्टता प्रदर्शित करते हैं, तो यह कितना डरावना होता है, है न? क्या आपकी कंपनी को इसके दबाव का सामना नहीं करना पड़ा है?” हम इस बात में सम्मिलित नहीं होंगे कि वे वहाँ निवेश करते हैं या नहीं। हम उनसे केवल सतही स्तर पर सिद्धांतों का उपयोग करते हुए बात कर सकते हैं।

लेकिन मुझे लगता है कि भौतिक लाभ के सामने कुछ लोग सुनने को तैयार हैं और कुछ नहीं, इसलिए यह मुद्दा ध्यान का विषय नहीं है। ध्यान लोगों को यह बताने पर है कि फालुन गोंग का दमन क्यों किया जा रहा है और दमन करने वाले कितने दुष्ट हैं, और यह पर्याप्त होगा। एक बार जब लोग उन बुरी चीजों को स्पष्ट रूप से देख पाएंगे, तो वे अपने मन से चीन की साम्यवादी सरकार के बदनाम मीडिया द्वारा उत्पादित प्रचार के विषैले तत्वों को निकाल देंगे। इसका अर्थ है कि आपने उन लोगों को बचा लिया है, और उस एक कार्य ने उन्हें अगले चरण में जाने में सक्षम बनाया है। अन्यथा जब मानव संसार के फा का सुधार आयेगा और वह शक्तिशाली गोंग आयेगा... फा-सुधार के मानक हैं, और उस बिंदु पर निश्चित रूप से उनके पास [सत्य को] समझने के कोई और अवसर नहीं होंगे। मानक ब्रह्मांड में सबसे उच्च स्थान से लेकर सबसे निम्न स्थान पर लागु हैं। कोई प्राणी उस बिंदु पर चाहे जैसा भी हो, वह वही होगा, और सबकुछ सबसे कम समय में निपटाया जाएगा। जिन्हें हटाया जाना चाहिए, उन्हें हटाया जाएगा, जिन्हें रहना चाहिए, उन्हें रखा जाएगा, जिन्हें ऊँचा उठाया जाना चाहिए, उन्हें ऊँचा उठाया जाएगा, और जिन्हें नीचे गिराया जाना चाहिए, उन्हें नीचे गिराया जाएगा। यह सब एक झटके में समाप्त हो जाएगा। किसी व्यक्ति के मन में जो कुछ भी है, वह निर्धारित करता है कि वह [या उसकी स्थिति] क्या है, इसलिए उस बिंदु पर कोई और अवसर नहीं होंगे। यदि किसी व्यक्ति ने उस दुष्ट, खलनायक गिरोह का विष हटा दिया है, तो वह उस चरण को पार कर जाएगा। तो कम से कम वह भविष्य में होने वाले परिवर्तनों को देखने में सक्षम होगा।

शिष्य: मैं ताइवान से एक नन्हा शिष्य हूँ। ताइवान के नन्हे शिष्यों की ओर से, मैं गुरूजी को कमल का फूल भेंट करना चाहता हूँ। (गुरूजी मुस्कुराते हैं) (श्रोता मुस्कुराते हैं और तालियाँ बजाते हैं)) हम अपने महान गुरूजी का धन्यवाद करते हैं।

गुरूजी: धन्यवाद। यह छोटा कमल का फूल वास्तव में बहुत सुन्दरता से बनाया गया है। (तालियाँ) यह उस प्रकार का विचार और सोच है जो दाफा शिष्यों ने सत्य को स्पष्ट करने में लगायी है। आपने वास्तव में कड़ा परिश्रम किया है और लोगों को बचाने के लिए बहुत सारे सुझाव लेकर आये हैं। आज के लोगों को बचाना वास्तव में कठिन है। [ऐसा लगता है] वे तभी सुनेंगे जब आप जो बताएंगे वह उनके विचारों के अनुरूप होगा, और वे तभी सुनेंगे जब आप उनसे उस तरीके से बात करेंगे जो उन्हें पसंद है। दूसरे शब्दों में, यदि आप उन्हें बचाना चाहते हैं, तो वे ऐसा करने के लिए आपके लिए शर्तें रखते हैं। (गुरूजी मुस्कुराते हैं)

शिष्य: गुरूजी, मेरे परिवार के सदस्यों में से एक अभ्यास करता है और कहता है कि वह विशेष है। वह पवित्र विचार नहीं भेजता या सत्य को स्पष्ट नहीं करता, और वह जुआन फालुन के अतिरिक्त शायद ही कभी फा का अध्ययन करता है। अभी फा-सुधार अवधि में हम सभी प्रकार की परियोजनाओं में व्यस्त हैं। यदि मैं उसकी सहायता करने में अधिक समय बिताता हूँ, तो मुझे अन्य चीजों के लिए पर्याप्त समय निकालना कठिन हो जाता है।

गुरूजी: यह सच है। यदि वह नया शिष्य है, तो आपको उसके प्रति कुछ समझदारी दिखानी चाहिए। यदि वह अनुभवी शिष्य है, तो वह निश्चित रूप से अनुचित कर रहा है। जहाँ तक उसकी सहायता करने का प्रश्न है, तो ऐसा करने का कोई विशेष तरीका नहीं है। देखें कि वह कहाँ भटक गया है और उसे संबोधित करने के लिए उचित कदम उठाएँ। उसके मन की बाधा को हटाएँ और उसके मोहभाव का पता लगाएँ।

शिष्य: हम वास्तव में प्राचीन शक्तियों की व्यवस्था को कैसे तोड़ सकते हैं, स्वार्थ से परे कैसे जा सकते हैं, और सच्चे फा-सुधार शिष्य कैसे बन सकते हैं?

गुरूजी: अतीत में ब्रह्मांड स्वार्थ पर आधारित था। आइए मनुष्य को एक उदाहरण के रूप में लेते हैं : जब निर्णायक क्षण की बात आती है तो वह वास्तव में दूसरों की परवाह नहीं करता था। जब मैंने फा-सुधार शुरू किया, तो कुछ देवताओं ने मुझसे कहा, "आप ही एकमात्र ऐसे हैं जो दूसरों के मामलों में सम्मिलित होते हैं।" मुझे पता है, आपको यह विश्वास करना कठिन लगता है, क्योंकि आप दाफा द्वारा बनाए गये परोपकारी प्राणी हैं जिनकी फा-सुधार में भूमिकाएँ हैं और जो वास्तव में ज्ञानप्राप्त हैं। यदि मैंने ऐसा नहीं किया, तो काल के अंत के साथ सभी जीव समाप्त हो जाएँगे। जब कोई प्राणी चीजों को करने में दूसरों के प्रति विचारशील होता है और इस प्रक्रिया में सहनशीलता दिखाता है, तो ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उसका शुरुआती बिंदु निस्वार्थ होता है।

जब दाफा साधक अपने भीतर स्वार्थ देखते हैं, तो उन्हें धीरे-धीरे उस पर नियंत्रण पाने के लिए काम करना चाहिए। इसके बारे में जागरूक होने का अर्थ है कि आपने साधना में एक और कदम आगे बढ़ा लिया है, क्योंकि जो अभ्यासी नहीं है वह इसके बारे में जागरूक नहीं हो सकता है और उसके मन में यह विचार भी नहीं आता है कि वह स्वार्थी है या नहीं। केवल साधक ही स्वयं की जांच करने और अपने भीतर देखने का पालन करते हैं।

शिष्य: फ़ुशुन के दाफा शिष्यों ने आपको अपना नमन भेजा है। (गुरूजी: धन्यवाद।) मेरा व्यक्तित्व धीमी गति वाला है। जब मैं काम करता हूँ तो मैं साधारणतः धीमा होता हूँ और इसके लिए अक्सर मेरी आलोचना की जाती है। क्या मुझे काम करते समय अपने तरीके बदलने की आवश्यकता है?

गुरूजी: वास्तव में ऐसे लोग हैं जिनका व्यक्तित्व धीमी गति वाला है। मुझे पता है कि मेरा व्यक्तित्व तेज गति वाला है, और मैं हर काम बहुत शीघ्रता से करता हूँ। यदि आप कहते हैं कि कुछ करने की आवश्यकता है, तो मैं दूसरों के तैयार होने से पहले ही द्वार से बाहर निकल जाता हूँ। (गुरूजी हँसते हैं) (तालियाँ) दूसरे शब्दों में कहें तो, मैंने यह तीव्र गति विकसित की है, और मैं जो कुछ भी करता हूँ, वह शीघ्र ही और शीघ्रता से करता हूँ। निश्चित ही, मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि धीमी गति वाला व्यक्तित्व अच्छा नहीं है। कुछ लोगों को बस इस तरह से काम करने की आदत पड़ गयी है। लेकिन मुझे लगता है कि यदि हम लोगों को बचाने की बात करें तो यह बेहतर होगा कि हम थोड़ी शीघ्रता से काम करें। (गुरूजी मुस्कुराते हैं) (श्रोता हंसते हैं और तालियाँ बजाते हैं) लेकिन ऐसा नहीं है कि आपको अपना व्यक्तित्व बदलना चाहिए।

ब्रह्मांड में प्राणी ऐसे ही होते हैं। हर कोई भिन्न होता है : कुछ धीमे होते हैं जबकि दूसरे तेज होते हैं, और कुछ चिंतित होते हैं जबकि दूसरे संतुलित होते हैं। कुछ लोग, वे बस अपने हर काम धीमी गति से करते हैं, और इसे मोहभाव नहीं कहा जा सकता। हालाँकि, आपको लोगों को बचाने और दाफा शिष्यों को जो काम करने चाहिए, उनमें शीघ्रता करनी चाहिए। मुझे नहीं लगता कि इसका आपके व्यक्तित्व से कोई लेना-देना है। आपको पता होना चाहिए कि "शीघ्रता करने" का क्या अर्थ है, चाहे आपका व्यक्तित्व कितना भी धीमा क्यों न हो।

शिष्य: मैं एक नया शिष्य हूँ। मैं फा-सुधार मार्ग पर अच्छी तरह से चलने के लिए बहुत उत्सुक हूँ, लेकिन मुझे पता नहीं है कि क्या यह एक मोहभाव है? मैं कैसे पता लगाऊं?

गुरूजी: आप एक ऐसे शिष्य हैं जिसने हाल ही में फा प्राप्त किया है, इसलिए अत्यधिक चिंतित न हों। कई चीजों में आप के लिए अनुभवी शिष्यों जैसी अपेक्षाएँ नहीं रखी जा सकतीं। लेकिन वास्तव में कुछ नए शिष्य हैं जो सच में अच्छा कर रहे हैं। वे दाफा के लिए काम करने में मन से सम्मिलित हैं और वे वही कर रहे हैं जो दाफा शिष्यों को करने की आवश्यकता है। वे वास्तव में अद्भुत हैं। कभी-कभी मुझे वास्तव में लगता है कि उन देर से आने वालों में ज्ञानप्राप्ति की क्षमता अधिक है। साधना में धीरे-धीरे सुधार करना होता है, और यह आशा करना यथार्थ नहीं है कि आप एक ही बार में उच्च स्तर पर पहुँच जाएँगे और अनुभवी शिष्यों की तरह बन जाएँगे, क्योंकि वे भी, धीरे-धीरे साधना और सुधार के माध्यम से उस स्थान पर पहुँचे हैं जहाँ वे हैं। अब जब आपने दाफा प्राप्त कर लिया है तो आपको चिंता करने की कोई बात नहीं है। बस आगे बढ़ो और व्यवस्थित रूप से वह करो जो करने की आवश्यकता है, और वह करो जो दाफा शिष्यों को करना चाहिए—अपनी समझ के अनुसार चीजों में आगे बढ़ो। इसमें कोई समस्या नहीं है।

शिष्य: क्या गुरूजी यह बताएँगे कि यदि दाफा शिष्य अपने समन्वय और सहयोग में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो इसका हमारे काम पर क्या प्रभाव पड़ेगा, और यदि हम इतना अच्छा नहीं करते हैं, तो इसका क्या परिणाम होगा?

गुरूजी: यदि आप समन्वय और सहयोग ठीक से नहीं करते हैं, तो दुष्टता लाभ उठाएगी और कठिनाईयां उत्पन्न करेगी। बहुत सी फा-सुधार की चीजों के साथ, ऐसा नहीं है कि उन्हें करने का कोई तरीका नहीं है। चाहे यह कितना भी कठिन क्यों न हो, आपके लिए एक मार्ग होगा, चाहे वह कितना भी संकीर्ण हो। आपको उस मार्ग पर उचित तरीके से चलना होगा, और यदि आप थोड़ा भी पीछे रह गये या थोड़ा भी भटक गये, तो यह काम नहीं करेगा। फिर भी, आपके लिए एक मार्ग है। दूसरे शब्दों में, आपको उस पर उचित तरीके से चलना होगा। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, तो वर्तमान में उपस्थित दुष्टता इसका लाभ उठाएगी और कठिनाईयां उत्पन्न करेगी। वास्तव में, मैं जिस बारे में बात कर रहा था, वह स्वयं के मान्यकारण के स्थान पर फा का मान्यकारण करने का प्रश्न है जब आप किसी चीज पर एक साथ काम करते हैं—यही बात है।

जब सभी लोग किसी बात पर चर्चा कर रहे हों, तो आप किसी के द्वारा आपके विचार पर असहमति व्यक्त करने पर व्याकुल हो सकते हैं, लेकिन यदि कोई आपत्ति नहीं उठाता है और सभी कहते हैं, "यह एक बहुत अच्छा विचार है, और वह विचार भी बुरा नहीं है"—जिससे कोई अपमानित न हो—तो मैं कहूंगा कि यह शिष्य दाफा या अपनी स्वयं की साधना के प्रति बहुत उत्तरदायी नहीं हैं। वे संघर्ष का सामना करने का साहस नहीं करते हैं और चीजों को सीधे संबोधित करने का साहस नहीं करते हैं, और जब वे कोई समस्या देखते हैं तो वे बोलने का साहस नहीं करते हैं। यह स्वयं से बहुत अधिक मोहभाव रखना है, और यह स्वार्थ है। यदि आप स्वयं से मोहभाव के बिना किसी समस्या से निपटते हैं और शांत होकर इस बारे में विचार रखते हैं कि समस्या से कैसे निपटा जाए, तो मुझे नहीं लगता कि इसे सुनकर अन्य लोग असहज अनुभव करेंगे, क्योंकि आप यह फा के लिए कर रहे हैं। यह एक बात है।

दूसरी बात यह है कि यदि किसी का प्रस्ताव अस्वीकृत हो जाता है और वह व्यक्ति व्याकुल हो जाता है, तो उसे वास्तव में समस्या है। साधारणतः दाफा का मान्यकरण करने के मामलों पर चर्चा केवल तभी मार्ग से भटकती है जब स्वयं के प्रति कोई मोहभाव उत्पन्न होता है। अब से इस पर ध्यान दें—यदि आप मेरी बात पर विश्वास नहीं करते, तो जब आप यहाँ से निकलें और घर जाएं तो इस बात का ध्यान रखें। जब आप किसी विषय पर बात कर रहे हों, तो देखें कि कौन बातचीत को मार्ग से भटका रहा है, और जो व्यक्ति ऐसा कर रहा है, उसे निश्चित रूप से समस्या है। (श्रोता हँसते हैं और तालियाँ बजाते हैं) जो व्यक्ति विषय से भटक जाता है, वह स्वयं से जुड़ा होता है, या जब उसकी अवधारणाओं को चुनौती दी जाती है, तो वह मानवीय मानसिकता से प्रेरित होकर व्याकुल हो जाता है और दाफा की चीजों को एक ओर रख देता है। ऐसे समय में दुष्टता उसका लाभ उठाएगी—वह तर्क करते समय मूल विषय से और परे होता जाएगा, और दुष्टता उसका लाभ उठाएगी। उस समय वह और अधिक व्याकुल हो जाएगा, और जितना अधिक वह व्याकुल होगा, उतनी ही अधिक उसकी मानवीय मानसिकता वास्तव में दुष्टता द्वारा उत्तेजित की जाएगी और वह साधना की स्थिति में उतना ही कम होगा, इसलिए दुष्टता और भी अधिक लाभ उठाएगी। आपको क्या लगता है कि दुष्ट समझ, या बुरे मार्ग पर "ज्ञानोदय" कहाँ से आता है? क्या वे यहीं से नहीं आते हैं? दुष्टता उसके मोहभावों का लाभ उठाती है और उसके मन में झूठे विचार उत्पन्न करती है, लेकिन वह उन्हें वास्तविक मानता है और सोचता है कि वे काफी उचित हैं। वह सोचता है, "आप में से कोई भी मुझे नहीं समझता है, और फिर आपके साधना स्तर मेरे जितने उच्च नहीं हैं, और आप में से कोई भी फा को उतना अच्छी तरह नहीं समझता जितना मैं समझता हूँ।" (गुरूजी हँसते हैं) इसका परिणाम ऐसे ही होता है।

शिष्य: न्यूयॉर्क शहर में दाफा शिष्यों के प्रयासों ने स्थिति को बहुत परिवर्तित कर दिया है, और कई साधारण लोग हमारे अत्याचार-विरोधी प्रदर्शनों में जो कुछ भी देख रहे हैं, उससे प्रभावित हुए हैं। लेकिन बहुत से पश्चिमी लोगों ने हमें बताया है कि वे बहुत सारी भयावह छवियां देख रहे हैं, जिससे उन्हें हमारे प्रति सहानुभूति कम हो रही है। क्या गुरूजी कृपया हमें इस बारे में बताएंगे?

गुरूजी: शायद वे कहते हैं कि सत्य को स्पष्ट करने के लिए आपके द्वारा आयोजित अत्याचार-विरोधी प्रदर्शन बहुत चौंकाने वाले हैं, लेकिन मैं आपको बता दूँ कि आपके कार्य सकारात्मक हैं, और उर्जा पवित्र और करुणामयी है, इसलिए यह किसी भी प्रकार से लोगों को नकारात्मक रूप से नहीं चौंकाएगी। बल्कि, कुछ लोगों को जो असुविधा अनुभव होती है, वह उन लोगों के मन के बुरे विचारों के कारण हुई होती है। क्या लोग हर स्थान पर यीशु को सूली पर चढ़ाए जाने की वह सजीव छवि नहीं लटकाते हैं, जिसमें उनके हाथ और पैर कीलों से छेदे गये हैं और खून बह रहा है? क्या लोग सैकड़ों या हज़ारों वर्षों से उस छवि को नहीं देख रहे हैं? तो समस्या यह नहीं है कि क्या प्रस्तुत किया गया है। क्या दाफा शिष्यों को दमन में इसी प्रकार की कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ा है? आप कला का उपयोग करके बुरे कामों को दिखाने का प्रयास नहीं कर रहे हैं, आप लोगों को बचा रहे हैं। कुछ लोगों की नकारात्मक प्रतिक्रियाएँ होने का कोई कारण अवश्य होगा, उनकी मनःस्थिति में कुछ समस्याएँ होंगी। शायद दुष्टता उनके मन को नियंत्रित कर रही है, या यदि नहीं, तो इसका अर्थ है कि उनकी धारणाएँ उचित नहीं हैं। यहाँ तक कि जो लोग दाफा शिष्यों से सहानुभूति रखते हैं, उनकी भी ऐसी धारणाएँ हैं जो साधारण समाज से आयी हैं, और समझ के मामले में, वे इसके कारण असहज अनुभव कर सकते हैं। चिंता न करें, हालाँकि, इसे कुछ हद तक अधिक विस्तृत स्पष्टीकरण दे कर हल किया जा सकता है।

संसार में मनुष्य के भिन्न-भिन्न विचार हो सकते हैं। कुछ लोगों को मसालेदार खाना अच्छा लगता है, कुछ को खट्टा खाना अच्छा लगता है, कुछ को मीठा खाना पसंद होता है और कुछ को फीका। ये सब एक व्यक्ति की अपनी बनायी हुई प्रवृत्तियाँ हैं। मैनहट्टन में यदि कोई कॉमेडी चल रही हो, फिर भी बहुत सारे लोग हैं जो इसे पसंद नहीं करते और इसकी आलोचना करते हैं। मनुष्य ऐसे ही होते हैं। दोनों प्रकार के लोग हैं, सकारात्मक और नकारात्मक, और मनुष्य बस परस्पर-सृजन और परस्पर-विरोध के सिद्धांत के भीतर जीते हैं। वे सभी एक जैसे नहीं हो सकते। शायद वहाँ और भी लोग हैं जो सोचते होंगे कि यातना-विरोधी प्रदर्शन अच्छे हैं, बस उन्होंने बताया नहीं है। हम अच्छे लोगों को बचाने के स्थान पर उन लोगों को साथ में लाने के लिए अब और समझौता नहीं कर सकते जिनके मन में बहुत सारी बाधाएँ हैं। हम संसार के लोगों को बचा रहे हैं। कुछ लोग इन चीजों को देखना सहन नहीं कर सकते, लेकिन ऐसे और भी लोग हैं जो देख सकते हैं, और जो प्रेरित, जागरूक और बचाये गये हैं। (तालियाँ)

यदि कोई सोचता है कि वह इसे सहन नहीं कर सकता, तो चलिए इस बारे में सोचते हैं। इतने पवित्र क्षेत्र में और दुष्टता को इतने स्पष्ट रूप से उजागर किया गया है, और जो कुछ दिखाया गया है वह वास्तव में वास्तविक जीवन में हो रहा है, फिर भी एक व्यक्ति है जो अभी भी इस प्रकार के प्रश्न उठाता है, तो क्या उस व्यक्ति में समस्या नहीं है? निश्चित रूप से उसमें समस्या है। चाहे आप कितना भी परिश्रम करें और सच्चाई को स्पष्ट करने में कितना भी प्रयास करें, मैं आपको बता दूं, इस संसार में हमेशा ऐसे लोग होंगे जिन्हें आप बचा नहीं सकते। हमेशा एक भाग ऐसा होगा जिसे बचाया नहीं जा सकता। हम उन लोगों के कारण निराश या हताश नहीं हो सकते। हम इस प्रकार कुछ लोगों की बातों से प्रभावित होकर कैसे काम कर सकते हैं? हम यहां लोगों को परिवर्तित करने के लिए हैं, उनके द्वारा परिवर्तित होने के लिए नहीं। (तालियाँ)

हम लोगों को जो कुछ भी प्रदान कर रहे हैं वह अद्भुत है, और हम लोगों को बचा रहे हैं। हम उन लोगों को साथ में लाने के लिए समझौता नहीं कर सकते जो अब अच्छे नहीं रह गये हैं और जो लोगों के उद्धार में बाधा डालते हैं, जिसके कारण अच्छे लोग बच नहीं पाते। निश्चित ही, जब हम उन लोगों के बारे में बात करते हैं जो अब अच्छे नहीं रह गये हैं, तो यह आवश्यक नहीं है कि वे पूर्ण रूप से बुरे हों, और शायद यह उनकी धारणाओं के कारण हो। लेकिन जब बात इसकी आती है तो आपको शांत और तर्कसंगत रहना होगा। उन कुछ लोगों के कारण भटके नहीं और उन लोगों से प्रभावित न हों। आपको अपने मन में इस बारे में बहुत स्पष्ट होना चाहिए कि आप क्या कर रहे हैं : आप लोगों को बचा रहे हैं, आप सबसे पवित्र और सबसे महान काम कर रहे हैं! (तालियाँ) हमारे शिष्यों ने यातना-विरोधी प्रदर्शनियों को आयोजित करने में बहुत परिश्रम किया है और बहुत सी विपत्तियों को पार किया है। यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है।

वास्तव में मुख्य बात यह है कि हम स्वयं स्पष्ट सोच रखें। हमें दृढ़ विश्वास के साथ काम करना चाहिए, न कि डरते हुए या झिझकते हुए। आप इस तथ्य को नहीं देख सकते कि आप ईश्वरत्व की राह पर चलने वाले प्राणी हैं। (तालियाँ) इसलिए आप साधारण लोगों से भिन्न हैं और आप उनसे प्रभावित नहीं हो सकते। मैनहट्टन में आप जो कुछ भी कर रहे हैं, उसके लिए सभी देवता आपकी प्रशंसा करते हैं, वे वास्तव में आपकी प्रशंसा करते हैं। चाहे वे सकारात्मक भूमिका निभाने वाले देवता हों या नकारात्मक भूमिका निभाने वाले, वे सभी आपकी प्रशंसा करते हैं। संसार के लोग भी आपकी प्रशंसा करते हैं। क्या अच्छा है और क्या बुरा है, इसके सार्वभौमिक सिद्धांत नहीं बदले हैं।

शिष्य: जब हम फा-सुधार के लिए दाफा कार्य करते हैं, तो क्या प्राथमिकता का प्रश्न सम्मिलित होता है? यदि कुछ शिष्य अपनी राष्ट्रीयता या मातृभाषा के कारण किसी विशिष्ट राष्ट्रीयता या भाषा से संबंधित दाफा कार्य करना चाहते हैं, तो क्या उन्हें कुछ समय के लिए इसे छोड़कर अपने सामने उपस्थित दाफा कार्य पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए?

गुरूजी: अपनी राष्ट्रीयता या भाषा से संबंधित दाफा कार्य करना अनुचित नहीं है। गुरू आपको इन प्रश्नों के विशिष्ट उत्तर नहीं दे सकते, क्योंकि प्रत्येक शिष्य सत्य को स्पष्ट करने और जीवों को बचाने के लिए कार्य कर रहा है। हो सकता है कि उन लोगों के मन में कोई और कार्य हों जो वे करना चाहते हैं। लेकिन जब आपके लिए एक समूह के रूप में किसी चीज पर एक साथ काम करना आवश्यक हो, तो दाफा शिष्यों को अच्छी तरह से सहयोग करने की आवश्यकता होती है।

शिष्य: मेरा एक प्रश्न है। आपने थोड़ी देर पहले कहा था कि एक बार दमन समाप्त हो जाने के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा। मैं पूछना चाहता हूँ कि क्या साधारण लोग जो अभी भी भ्रमित हो रहे हैं, उनके पास कोई और अवसर होगा?

गुरूजी: एक प्राणी वही होगा जो उसके मन में समाया हुआ है, और एक प्राणी जिसे समाप्त किया जाना है और एक जिसके लिए चीजें अच्छी होनी हैं, दोनों के लिए ही यह एक ही बार में तुरंत हो जाएगा। कुछ लोग कह सकते हैं कि वे बस एक निश्चित राजनीतिक पार्टी में विश्वास करते हैं या वे बस उस पार्टी के लिए काम करना चाहते हैं। यदि ब्रह्मांड का नियम उस पार्टी को अच्छा मानता है, तो उन्हें वह क्षण आने पर रहने दिया जाएगा; यदि ब्रह्मांड का नियम उस पार्टी को दुष्ट मानता है, तो वह क्षण आने पर उन्हें मिटा दिया जाएगा। उस समय पर तथ्यों को स्पष्ट करना अब और नहीं होगा तथा लोगों को कुछ समझने के लिए अतिरिक्त अवसर देना अब और नहीं होगा। उस समय पर ऐसी चीजें अब और नहीं होंगी, और लोगों के अंदर जो कुछ भी समाहित होगा वे उसके सदस्य होंगे और उन्हें इसके एक तत्व के रूप में देखा जाएगा। व्यक्ति के मन में जो कुछ भी है, वह उसका एक भाग बन जाएगा, और पलक झपकते ही सब कुछ समाप्त हो जाएगा।

शिष्य: हम अक्सर संयुक्त राज्य अमेरिका में सामुदायिक परेड में भाग लेते हैं और बहुत से समूहों द्वारा हमारा स्वागत किया गया है। क्या गुरूजी हमें बताएंगे कि हम अधिक से अधिक साधारण लोगों के तरीकों का पालन करते हुए किस प्रकार से लोगों को दाफा की जानकारी प्राप्त करने में सहायता कर सकते हैं? जब हमारे बीच मतभेद होते हैं, तो क्या हमें उनकी स्वयं ही चर्चा कर लेनी चाहिए या गुरूजी को रिपोर्ट करना चाहिए? (श्रोता हँसते हैं)

गुरूजी: जब आप समस्याओं का सामना करते हैं तो आपको उन पर साथ मिलकर आपस में बात करनी चाहिए क्योंकि आप साधना कर रहे हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि जब भी आपको कोई समस्या हो तो आप गुरू को साधना करने के लिए भेजें। (श्रोता हँसते हैं और तालियाँ बजाते हैं) क्या यह सच नहीं है? इसलिए जब आप समस्याओं का सामना करते हैं तो आपको यह पता लगाना चाहिए कि उनका समाधान कैसे किया जाये, और चाहे आप उन चुनौतियों पर नियंत्रण कर लें या समाधान पर सहमत होने पर उनको हल करें, वे आपके लिए शक्तिशाली सद्गुण स्थापित करने के अवसर हैं। वह प्रक्रिया वास्तव में परिपक्व होने की प्रक्रिया है, भविष्य की ओर बढ़ने की प्रक्रिया है, और यह ईश्वरत्व के मार्ग पर आपके द्वारा उठाये जाने वाले कदमों में से एक है। (तालियाँ) आपको निश्चित ही गुरू पर बारीकियों को नहीं छोड़ना चाहिए। (श्रोता हँसते हैं)

तो आपको सभी प्राणियों को दाफा की जानकारी प्राप्त करने में कैसे सहायता करनी चाहिए? एक बार जब आप तथ्यों को स्पष्ट कर देते हैं और लोगों को दमन को समझने में वास्तव में सहायता कर देते हैं और जानते हैं कि दाफा एक सकारात्मक चीज है, तो इतना पर्याप्त है। यदि कोई व्यक्ति सोचता है कि फालुन गोंग वास्तव में अच्छा है और फालुन गोंग के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करता है, तो आप उसे बहुत ही सामान्य स्तर पर समझा सकते हैं कि फालुन गोंग अपने अभ्यासियों को अच्छा बनने के लिए कहता है, और अंत में आप उसे बता सकते हैं कि हम अच्छे से अच्छा मनुष्य बनने और ज्ञान प्राप्ति तक पहुँचने का प्रयास कर रहे हैं। आप उसे बस इतना ही बता सकते हैं, और आप इससे आगे नहीं बता सकते। यदि आप उसे उच्च स्तर की चीजें बताना शुरू करेंगे तो आप उसे डरा देंगे।

और लोगों के विचारों के स्तर भिन्न-भिन्न हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप किसी प्रथम श्रेणी के बच्चे को कॉलेज के पाठ पढ़ाते हैं, तो वह स्कूल जाने से मना कर देगा और वह अब पढ़ने नहीं जाएगा। (तालियाँ) आप साधना के माध्यम से धीरे-धीरे करके अपने वर्तमान आयामों और स्तरों तक पहुँचे हैं, और यदि आप उसे एक ही बार में सब कुछ बताना चाहते हैं, तो यह वैसा ही है जैसे आप उसे एक साधारण व्यक्ति से उठाकर उस स्तर पर पहुँचाना चाहते हैं जहाँ आप हैं। (गुरूजी हँसते हैं) मैं भी, आपका गुरू, ऐसा नहीं करता। (श्रोता हँसते हैं) मैं किसी प्राणी को, उसके सभी निम्न-स्तरीय कारकों से मुक्त होने के बाद, किसी भी ऊँचाई के स्तर तक पहुँचा सकता हूँ, और मैं किसी भी स्तर के प्राणियों का निर्माण कर सकता हूँ। लेकिन यदि आप चाहते हैं कि निम्न-स्तरीय प्राणी इतने उच्च स्तरों पर चीजों को समझे, तो सामान्य परिस्थितियों में वह प्राणी इसे संभाल नहीं सकता। इसलिए लोगों को धीरे-धीरे करके समझना होगा। मैं आपसे उच्च स्तरों पर चीजों के बारे में बात न करने के लिए क्यों कहता हूँ? मैं आपसे तथ्यों को तर्कसंगत रूप से स्पष्ट करने के लिए क्यों कहता हूँ? इसीलिए। इसलिए जब कुछ शिष्य पूर्ण रूप से तर्कसंगत नहीं होते और तथ्यों को स्पष्ट करते समय तुरंत बहुत ऊंचे स्तर की बातें करते हैं, और जब वे सरकारी अधिकारियों से देवता ऐसे और देवता वैसे होने के बारे में बात करते हैं और उन्हें बताते हैं कि उनका गुरू ऐसा-ऐसा है (श्रोता हंसते हैं), तो लोग सोचते हैं कि आप व्यर्थ बातें कर रहे हैं। (श्रोता हंसते हैं) तथ्यों को स्पष्ट करने का यह तरीका नहीं है। एक साधक की समझ साधना के माध्यम से धीरे-धीरे करके प्राप्त होती है, और साधारणतः लोगों को समझना बहुत कठिन होगा यदि आप चाहते हैं कि वे तुरंत इतने ऊंचे स्तर की चीजों को समझें। यदि वे नहीं समझते हैं, तो यह उल्टा प्रभाव उत्पन्न करेगा और सार यह है कि इसका हानिकारक प्रभाव होगा।

शिष्य: सैन डिएगो, कैलिफोर्निया में पिछले दो वर्षों में कुछ नए शिष्य मार्ग से जुडें हैं और फा प्राप्त किया है, और पूर्वनिर्धारित लोग अभ्यास सीखने के लिए हर सप्ताह आते रहते हैं। उन नए शिष्यों में से कुछ काफी सक्षम हैं और फा का मान्यकरण करने के लिए परियोजनाओं में सम्मिलित होने के लिए योग्य हैं। क्या हमें उन्हें सीधे तीन काम करने के लिए कहना चाहिए या उन्हें फा का अध्ययन करने और केवल व्यायाम करने के लिए कहना चाहिए, और फिर कुछ समय पश्चात उन्हें फा का मान्यकरण करने के लिए परियोजनाओं में सम्मिलित करना चाहिए?

गुरूजी: मैं देख सकता हूँ कि आपके पास बहुत कम कर्मचारी हैं और आप कुछ योग्य नए शिष्यों को सम्मिलित करने के लिए उत्सुक हैं। लेकिन मुझे अभी भी लगता है कि शीघ्रता न करना ही बेहतर है। ऐसा क्यों है? क्योंकि जब अनुभवी शिष्य एक साथ चीजों के बारे में बात करते हैं और ऐसी स्थिति में होते हैं जहाँ वे इस बात के प्रति बहुत सचेत नहीं होते कि वे किस प्रकार व्यक्त करते हैं, तो यह नए शिष्यों को डरा देगा। आपकी शक्ति के कारण, चाहे आपके शब्द शक्तिशाली न हों, उनके लिए वे शक्तिशाली हैं। और आप अपनी आवाज ऊँची न भी करें तो, उनके लिए यह गर्जन की तरह लगता है। (श्रोता हँसते हैं) वास्तव में उन्हें ऐसा ही लगता है। इसलिए आपको प्रतीक्षा करनी चाहिए और नए शिष्यों को तब तक सम्मिलित नहीं करना चाहिए जब तक कि वे एक निश्चित स्तर की समझ और ज्ञान प्राप्त न कर लें, और उन्हें धीरे-धीरे सुधार करने का अवसर न मिले—कम से कम जब तक उन्हें दाफा के बारे में कुछ गहरी समझ न हो जाए। इस प्रकार यह उन्हें किसी चीज की समझ की कमी के कारण साधना छोड़ने की ओर नहीं ले जायेगा।

शिष्य: जब से दमन शुरू हुआ है, मैं अपने शोध संस्थान के पाठ्यक्रमों में उलझा हुआ हूँ और मेरे पास किसी और चीज के लिए समय नहीं है। मेरे पास दाफा कार्य के लिए अधिक समय नहीं है और मैंने निश्चित रूप से अपना 100% समय दाफा कार्य को समर्पित नहीं किया है। क्या मैं उस स्तर तक पहुँच पाऊँगा जहाँ मुझे पहुँचना चाहिए?

गुरूजी: यदि आपकी नौकरी ने आपको वास्तव में व्यस्त कर रखा है तो यह कोई समस्या नहीं है। जिस प्रकार आप अपना काम अच्छी तरह से करते हैं, फा का अध्ययन करने के लिए भी समय निकालें और जो भी अवसर मिले उसका उपयोग उन चीजों को करने में करें जो दाफा शिष्यों को करनी चाहिए, जैसे तथ्यों को स्पष्ट करना। हमेशा व्यस्त समय और कम व्यस्त समय आते रहेंगे, और ऐसा नहीं हो सकता कि हर कोई एक ही समय पर व्यस्त हो या हर कोई एक ही समय पर व्यस्त न हो। कुछ लोग व्यस्त होते हैं जबकि दूसरे व्यस्त नहीं होते। हालाँकि, एक साधक के लिए, कुछ भी हमेशा स्थिर नहीं रहता। चाहे आप इस समय व्यस्त हों या नहीं, बस वही करें जो आपको करना चाहिए, और समय बीतने के साथ सब कुछ परिवर्तित हो सकता है। तो मेरा यही मानना है : व्यस्त होने को बहाने के तौर पर कुछ न करने के लिए या फा अध्ययन की उपेक्षा करने के लिए उपयोग न करें। और ऐसे लोग भी हैं जो व्यस्त होने पर बहुत चिंतित हो जाते हैं, और ऐसा भी ठीक नहीं है। अपनी स्थिति के अनुसार आप जो कर सकते हैं, करें।

मैंने अभी जो कहा वह मैनहट्टन में तथ्यों को स्पष्ट करने के लिए भी लागू होता है। जिनके पास क्षमता है और जिनकी परिस्थितियाँ उन्हें आने की अनुमति देती हैं वे आ सकते हैं, और जिनकी परिस्थितियाँ उन्हें आने की अनुमति नहीं देती हैं उन्हें नहीं आना चाहिए। ऐसा नहीं है कि आप सभी को एक ही प्रकार से काम करना है। जब आप सभी अपने मन से काम कर रहे होते हैं, तो वह सच्चा होता है। गुरू ने आपको कभी कुछ करने का आदेश नहीं दिया है। मैंने बस आपको यह बताया है कि आपको क्या करना चाहिए, और कुछ शिष्य उसे कर लेते हैं। बस वही करें जो दाफा शिष्यों को अपनी परिस्थिति और क्षमता के अनुसार करना चाहिए। यदि आप अपनी परिस्थिति की अनुमति न होने पर चीजों को जबरन करते हैं तो यह काम नहीं करेगा। यदि आप ऐसा करते हैं, तो आप अपने दैनिक जीवन और अपनी साधना दोनों में समस्याएँ उत्पन्न करेंगे, और यह अच्छा नहीं है।

शिष्य: तुर्की के दाफा शिष्य आपका नमन करते हैं। आप तुर्की कब आना चाहेंगे? तुर्की के बारे में आप क्या सोचते हैं?

गुरूजी: हर एक राष्ट्र की जनसंख्या का बड़ा भाग दाफा के लिए आया है, इसलिए मैं नहीं चाहता कि दाफा के प्रसार के दौरान कोई भी राष्ट्र पीछे छूट जाए। और इसीलिए मैं आपसे तथ्यों को स्पष्ट करने के लिए कहता हूँ। विभिन्न क्षेत्रों में दाफा के शिष्यों को वास्तव में उन कामों को अच्छी तरह से करना चाहिए जो किए जाने चाहिए। चेतन प्राणी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।

जहां तक तुर्की जाने की बात है, तो मैं निश्चित रूप से अवसर मिलने पर जाऊंगा। (तालियाँ) मैं भविष्य में संसार के हर कोने की यात्रा करूंगा (उत्साही तालियाँ), क्योंकि मुझे हर उस व्यक्ति का ध्यान रखना है जिसे आपने सच्चाई को स्पष्ट करते हुए बचाया है। (तालियाँ)

शिष्य: मैंने कुछ साथी अभ्यासियों को देखा है, जो अत्याचार विरोधी प्रदर्शनों में दुष्ट पुलिसकर्मियों की भूमिका निभाने के बाद, पहले से कहीं अधिक आसुरिक प्रकृति का प्रदर्शन करते हैं। क्या कोई संबंध है? (श्रोता हँसते हैं)

गुरूजी: नहीं, ऐसा नहीं है। यह केवल आपके मन में है। (गुरूजी मुस्कुराते हैं) एक बार जब वे घर जाएँगे, फा का अध्ययन करेंगे, और अपनी मानसिकता को थोड़ा व्यवस्थित करेंगे, तो सब ठीक हो जाएगा।

शिष्य: कुछ दाफा शिष्यों ने हाल ही में कला केंद्र और विद्यालय शुरू किया है, जो साधारण जनता के लिए भी खुला है। इससे पहले कि फा मानव संसार का सुधार करे, इस तथ्य को देखते हुए कि बहुत सारी दाफा परियोजनाएँ चल रही हैं और वित्तीय स्थिति तंग है, मैं गुरूजी से सलाह माँगना चाहूँगा कि हमें अपनी भूमिकाएँ कैसे निभानी चाहिए।

गुरूजी: चाहे दाफा शिष्य कंपनियाँ चला रहे हों या विद्यालय शुरू कर रहे हों, मुझे लगता है कि ये सामान्य गतिविधियाँ हैं जो वे समाज के सदस्यों के रूप में करते हैं। वे जीवनयापन का साधन हैं और साथ ही साथी अभ्यासियों के लिए रोजगार के अवसर भी उत्पन्न कर सकते हैं। साथ ही, इस प्रकार से समाज के साथ हमारे संपर्क के माध्यम से कुछ साधारण लोगों तक पहुँचा जा सकता है, और वे इससे लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

आपने पूछा कि फा द्वारा मानव संसार का सुधार करने से पहले आपको अपनी भूमिकाएँ कैसे निभानी चाहिए। आप अपनी क्षमता के अनुसार ऐसा कर सकते हैं। कला विद्यालय चलाना अन्य व्यवसायों से भिन्न है। कला विद्यालय शिष्यों को जेन, शान, रेन का अनुसरण करके अच्छा मनुष्य बनना सिखा सकता है। और विद्यालय दाफा शिष्यों द्वारा प्रायोजित प्रदर्शनों में भाग ले सकता है, जिससे लोगों को दाफा शिष्यों का दूसरा पक्ष देखने में सहायता मिलती है और वे स्वयं उस राजनीतिक दल और उस प्रमुख शैतान की दुष्टता और दाफा शिष्यों की अच्छाई के बीच का अंतर देख पाते हैं। तो यह वास्तव में एक अच्छी बात होनी चाहिए। न्यू टैंग डायनेस्टी टीवी द्वारा प्रायोजित चीनी नववर्ष समारोह का उद्देश्य अधिक चीनी लोगों तक पहुँचना और उन्हें सम्मिलित करना है जिससे उन्हें तथ्यों को स्पष्ट किया जा सके और उन्हें बचाया जा सके। यदि प्रदर्शन बुरे होते, तो कोई भी नहीं देखता, और हम प्राणियों को बचाने के अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते। अच्छे प्रदर्शन उस उद्देश्य की पूर्ति करेंगे, या कम से कम एक सेतु का काम करेंगे। यदि विद्यालय वास्तव में सफल होता है तो वह हमारे प्रदर्शनों में भाग ले सकता है। तो यह सब अच्छा है।

शिष्य: कुछ शिष्य लंबे समय से साधना कर रहे हैं और ऐसा लगता है कि वे फा के मान्यकरण करने के महत्व को समझते हैं, फिर भी वे बहुत परिश्रमी नहीं हैं। हम उनकी सहायता कैसे कर सकते हैं?

गुरूजी: कोई चमत्कारिक हल नहीं है। उच्च स्तरों तक पहुँचने के लिए हर किसी को पहले स्वयं की दृढ़ता से साधना करनी पड़ती है। जहाँ तक उन लोगों का प्रश्न है जो परिश्रमी नहीं हैं, देखें कि उनके विचार कहाँ अटके हुए हैं। दाफा शिष्यों को क्या करना चाहिए, इस बारे में उनकी अपर्याप्त समझ के पीछे कोई कारण होना चाहिए—पता लगाने का प्रयास करें कि उनके लिए अभी सबसे अधिक किस बात का महत्व है? चूँकि वे हमारे शिष्य हैं, इसलिए हमें उनका उत्तरदायित्व लेना होगा और उनसे बात करनी होगी। यदि वे साधारण लोग होते तो हमें इसकी चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती। साधारण लोगों के लिए अपनी पसंद की चीजों को महत्त्व देना उचित है। वे साधना नहीं करना चाहते, इसलिए हम उन्हें परेशान नहीं करेंगे। हालाँकि, एक बार जब कोई साधना शुरू कर देता है, तो यदि वह साथ नहीं दे पाता है, तो वह व्यक्ति दुष्टों के दमन के खतरे में पड़ जाएगा, इसलिए आपको उसका उत्तरदायित्व लेना होगा।

शिष्य: दाफा शिष्यों द्वारा संचालित समाचार पत्र द्वारा प्रकाशित नौ टिप्पणियाँ बहुत बढ़िया हैं, लेकिन मुझे चिंता है कि साधारण लोग जो हमें नहीं समझते वे कहेंगे कि हम राजनीतिक हो रहे हैं।

गुरूजी: ऐसा नहीं होगा। हर कोई जानता है कि वह दुष्ट राजनीतिक दल फालुन गोंग का दमन कर रहा है। हम बस लोगों को यह बता रहे हैं कि वह राजनीतिक दल फालुन गोंग का दमन क्यों कर रहा है और साथ ही, उन्हें यह भी बता रहे हैं कि वह दल अपने दमन से क्या प्राप्त करना चाहता है, सी.सी.पी. फालुन गोंग का दमन क्यों कर रहा है और फालुन गोंग और सी.सी.पी. के बीच क्या मूल अंतर हैं। तो हम बस इस बारे में बात करेंगे कि वह राजनीतिक दल क्या है और वह जेन, शान, रेन का विरोध क्यों करता है। लेकिन जहाँ तक साधना का प्रश्न है, व्यक्तिगत साधना और तथ्यों को स्पष्ट करने के हमारे सिद्धांतों में से एक यह है कि हम उन चीजों में सम्मिलित नहीं होते हैं। सी.सी.पी. द्वारा दाफा शिष्यों का दमन किये जाने का मीडिया द्वारा पर्दाफाश और सभी प्राणियों को बचाने के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध है। फालुन गोंग का दमन उस विशेष राजनीतिक पार्टी के नाम पर किया गया है, जिसने अपने दमन के दौरान कई लोगों के मन में विष भरा है। उन लोगों को बचाने के लिए यह आवशयक है कि उन्हें उस पार्टी को समझने में सहायता की जाए जैसी वह है।

मिंगहुई वेबसाइट ने इसे रिपोर्ट नहीं किया है, क्योंकि इस दृष्टिकोण से जो कि दाफा साधना से लगभग मेल खाता है, यह कोई महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है। मीडिया रिपोर्ट सभी प्राणियों को बचाने का एक और तरीका है।

जहां तक भविष्य में चीन पर शासन करने वाले व्यक्ति का प्रश्न है, जो चाहे, उसे करने दें। इससे हमारा कोई लेना-देना नहीं है। चाहे वह अच्छा हो या बुरा, यह एक मानवीय मामला है, और हम साधक हैं। यदि आपने हमारा दमन नहीं किया होता, तो हमें आपको उजागर करने की आवश्यकता नहीं होती। जब आपके पास उन भयानक चीजों को करने का साहस है, तो आपके पास इसका सामना करने का साहस क्यों नहीं है?

शिष्य: बहुत से शिष्य जो एफ जी ऍम टेलीविजन कार्यक्रम बनाने में सम्मिलित थे, अब उन्हें नहीं बनाते हैं क्योंकि वे मैनहट्टन में हाल ही में सत्य-स्पष्टीकरण प्रयासों और नव वर्ष के उत्सव की तैयारियों में व्यस्त हैं।

गुरूजी: गुरू इस बारे में कुछ नहीं कह सकते क्योंकि ये ऐसी चीजें हैं जिन्हें आपको स्वयं ही हल करना है। वे सभी महत्वपूर्ण हैं। मैं एफ जी ऍम द्वारा किए गये सभी कार्यक्रमों को देखता हूँ—उनमें से हर एक को। (तालियाँ) इसलिए वे सभी महत्वपूर्ण हैं, और आपको उनमें से किसी एक को भी अनदेखा नहीं करना चाहिए। वास्तव में, मैं देख रहा हूँ कि आप सभी वास्तव में व्यस्त हैं, और प्रत्येक व्यक्ति कई परियोजनाओं पर काम कर रहा है। आपस में समन्वय करें, गुरू कुछ विशेष नहीं कह सकते।

शिष्य: (अनुवादित प्रश्न) चूँकि विशाल नभमंडल दाफा द्वारा निर्मित किया गया था, तो आज यह इतनी अनुचित स्थिति में कैसे हो सकता है कि इसे सुधारने के लिए गुरूजी की आवश्यकता पड़ गयी है? हैमिल्टन, न्यूजीलैंड के शिष्यों ने गुरूजी को अपना नमन भेजा है।

गुरूजी: धन्यवाद। (तालियाँ) ब्रह्मांड की पूर्व विशेषताएँ उसके द्वारा पूर्ण किए गये चक्रों को निर्धारित करती हैं। तो, विशेषताएँ क्या थीं? वे "सृजन-स्थिरता-पतन-विनाश-शून्यता" थीं, और प्राचीन ब्रह्मांड ऐसा ही है। ब्रह्मांड अत्याधिक विशाल है, और जब पतन और विनाश छोटे प्रमाण पर या एक स्थानीय क्षेत्र में हुआ, तो वह क्षेत्र विस्फोट में नष्ट हो गया, और फिर एक शून्य बन गया। शून्य बन जाने के बाद, पदार्थ अभी भी अस्तित्व में था, इसलिए देवता उस मृत पदार्थ का उपयोग करके ब्रह्मांड में एक नई परत को शुरू से बनाते थे। यह प्रक्रिया मानव चयापचय के समान ही है। यदि किसी बड़े क्षेत्र में समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, तो उस बड़े क्षेत्र को नष्ट कर दिया जाना चाहिए और उसके बाद नए प्राणियों का निर्माण किया जाना चाहिए। कोई भी इस बारे में नहीं सोचता कि उसके चयापचय का करुणा से कोई सम्बन्ध है या नहीं। जो भी है, ब्रह्मांड में उच्च-स्तरीय देवता सृजन-स्थिरता-पतन-विनाश की प्रक्रिया को उसी प्रकार देखते हैं जिस प्रकार मनुष्य चयापचय को देखते हैं—उन्हें इस बात की कोई अवधारणा नहीं है कि यह करुणामयी है या नहीं। ब्रह्मांड जीवित है, और यदि इस जैविक शरीर के किसी भाग में कोशिकाएँ अब योग्य नहीं हैं, तो उस भाग को हटाकर बदलने की आवश्यकता है। इसलिए मनुष्यों में भी ऐसी ही प्रक्रिया होती है : जन्म-वृधावस्था-रोग-मृत्यु।

भविष्य का ब्रह्मांड इस संबंध में भिन्न होगा। एक बार जब कोई चीज पतन की अवस्था में पहुँच जाती है, तो उसे पूर्ण रूप से बनाया जाएगा और नवीनीकृत किया जाएगा जिससे वह फिर से अच्छा बन जाए। तो यह प्राचीन ब्रह्मांड से भिन्न है। (तालियाँ)

भविष्य के सभी प्राणी निस्वार्थी होंगे, जबकि अतीत के प्राणी स्वार्थी थे। (तालियाँ) कुछ प्राणियों को दूसरों के प्रति कोई सम्मान नहीं होता क्योंकि वे अपनी मनचाही चीजों का पीछा करते हैं, और यह इस संसार में पूर्ण रूप से प्रदर्शित हुआ है। किसी बात को सिद्ध करने या अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए, संसार में कुछ लोग दूसरों को हानि पहुँचाने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं और कभी दूसरों की भलाई के बारे में नहीं सोचते। कुछ लोगों का स्वार्थ बहुत ही क्रूर रूप से सामने आता है—उनमें से कुछ जानबूझकर अधिकार जताने के लिए लोगों को ढूंढते हैं और हमेशा दूसरों को नीचा दिखाते हैं। उन्हें ऐसा करने का अधिकार किसने दिया? किसी ने नहीं। आपको ऐसा नहीं होना चाहिए, दाफा में साधना करने वाले किसी भी व्यक्ति को ऐसा नहीं होना चाहिए।

शिष्य: आदरणीय गुरूजी, आपके करुणामयी उद्धार के लिए धन्यवाद। कृपया हमें यह समझने में सहायता करें कि समाज में हमने जो कौशल प्राप्त किए हैं, उनका उपयोग सत्य स्पष्टीकरण में कैसे किया जाए।

गुरूजी: मुझे लगता है कि हर दाफा शिष्य अपने कौशल और क्षमताओं का उपयोग सभी प्राणियों को बचाने और दाफा का मान्यकरण करने के लिए कर रहा है। दाफा शिष्य वेबसाइट और रेडियो स्टेशन और टीवी स्टेशन जैसे मीडिया आउटलेट चला रहे हैं, और यह सब तथ्यों को स्पष्ट करने के एकमात्र उद्देश्य के लिए है। इस बिंदु पर सी सी पी और उस प्रमुख शैतान के दुष्ट, खलनायक गुट ने वित्तीय लाभ का उपयोग किया है जिससे अब समाज का मीडिया उनके हाथ में है। कोई भी उस दमन के बारे में रिपोर्ट नहीं कर रहा है जिसका हम सामना कर रहे हैं, इसलिए कोई अन्य उपाय न होने के कारण, दाफा शिष्यों ने इन चीजों को करने के लिए एक साथ काम किया है। मेरे कहने का अर्थ है, आपने इन चीजों को करने का बीड़ा उठाया है, और गुरू ने इनमें से किसी भी चीज का विशेष रूप से नेतृत्व नहीं किया है। यह सच है कि गुरू ने आपके द्वारा किए गये काम की पुष्टि की है या आपको बताया है कि आपको क्या करना चाहिए—इतना तो मैं कह ही सकता हूँ। लेकिन, जहाँ तक प्रत्येक व्यक्ति को क्या करना चाहिए, गुरू आपको बहुत स्पष्ट रूप से नहीं बता सकते। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक बार गुरू ने कुछ कह दिया, तो दूसरे लोग सोचेंगे, "गुरूजी ने उसे ऐसा करने के लिए कहा है," और आप भी सोचेंगे, "गुरूजी ने मुझे ऐसा करने के लिए कहा है," तो फिर आप कुछ और नहीं करेंगे या किसी और चीज पर ध्यान नहीं देंगे। और जब आपकी अन्य चीजों के लिए आवश्यकता होगी, तो आपके पास एक बहाना होगा : "गुरूजी ने मुझे ऐसा करने के लिए कहा है।" (गुरूजी हँसते हैं) मैंने आपको एक मोहभाव दे दिया होगा, और यह अच्छी बात नहीं है। इसलिए आपको अपने आप बहुत सी चीजें करने की आवश्यकता है। आपको अपना स्वयं का महान सदगुण स्थापित करना चाहिए, और यही वास्तव में अद्भुत है।

शिष्य: जब हम तथ्यों को स्पष्ट कर रहे होते हैं, यदि कुछ लोग स्वीकार करते हैं कि दमन अनुचित है, लेकिन दाफा उनके अनुसार नहीं है, और हमारे पास इस समय चीजों को और अधिक स्पष्ट करने का समय नहीं है, तो हमें क्या करना चाहिए? क्या हमें लोगों को दमन के बारे में बताने में सहायता करना पहली प्राथमिकता बनानी चाहिए और इसे बड़े प्रमाण पर करना चाहिए?

गुरूजी: इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि दाफा उनके अनुसार है या नहीं। लेकिन यदि उनका दाफा के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण है, तो यह दुष्टता द्वारा विष भरने का परिणाम है, और आपके लिए उन्हें चीजों को स्पष्ट करना आवश्यक है। साधारणतः जब तथ्यों को स्पष्ट करने की बात आती है, तो इसका अर्थ दमन के बारे में बात करना होता है—आपको दाफा साधना से संबंधित चीजों के बारे में बात करने की आवश्यकता नहीं है। यदि लोग साधना नहीं करना चाहते हैं तो ठीक है। आपको उन्हें बताना चाहिए कि हम अच्छे लोगों का समूह हैं, और हमारा दाफा लोगों को अच्छा बनना सिखाता है। [आपको शायद यह नीति अपनानी चाहिए,] "इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि यह आपके अनुसार है या नहीं, मैं आपको दाफा सीखने के लिए मनाने का प्रयास नहीं कर रहा हूँ। मैं बस आपको यह बताने का प्रयास कर रहा हूँ कि दमन दुष्टतापूर्ण है और जो आप जानते हैं वह वास्तव में विषैला दुष्प्रचार है।" और इतना पर्याप्त होगा। जो लोग फा सीखने आते हैं वे अपनी इच्छा से ऐसा करते हैं, इसलिए नहीं कि उन्हें इसमें घसीटा गया है। आपको यह बिल्कुल याद रखना चाहिए : हम किसी पर कुछ भी थोपना नहीं चाहते हैं।

शिष्य: हम चीन को बहुत सारे ई-मेल भेज रहे हैं। ई-मेल टीम अत्याधिक चुनौतियों से निपट रही है, तकनीक और जनशक्ति दोनों के विषय में। क्या यह हमारी टीम में बचे लोगों के साथ शिनशिंग समस्याओं के कारण है या यह इसलिए है क्योंकि प्राचीन शक्तियों ने हमको बाधित किया हुआ है?

गुरूजी: आप में से प्रत्येक का अपना मार्ग है। मुझे लगता है कि आपने जो कुछ भी पूछा है उसके पीछे दो कारण हैं : पहला, करने के लिए बहुत सारे काम हैं और परिणामस्वरूप आपके पास कम लोग हैं; और दूसरा, शायद आपने अपनी व्यक्तिगत साधना में चीजों को अनदेखा कर दिया है, इसलिए दुष्टता ने कमियों का लाभ उठाया है, क्योंकि दाफा शिष्यों को तीनों चीजों में से प्रत्येक को करने की आवश्यकता है। कुछ लोगों ने कहा है, "गुरूजी, हाल के वर्षों में, विशेष रूप से 20 जुलाई, 1999 से, मैंने पाया है कि पुस्तक पढ़ने के माध्यम से मेरा सुधार धीमा हो गया है। यह पहले जैसा नहीं है, जब मुझे हर दिन एक सफलता प्राप्त करने और मेरी समझ में बहुत तीव्रता से सुधार होने का बहुत अच्छा एहसास होता था।" ऐसा क्यों है कि अब आपको पुस्तक पढ़ने में पहले जैसा अच्छा अनुभव नहीं होता है? ऐसा नहीं है कि अब फा शक्तिशाली नहीं रहा। बात यह है कि अब आवश्यकताएं अधिक हैं, और दाफा शिष्यों को तीनों चीजें अच्छी तरह से करनी होंगी, तभी वे सुधार देख पाएँगे। (तालियाँ)

कुछ लोग जिन्होंने पहले के समय में फा का अध्ययन करना शुरू किया था, कहते हैं कि वे घर पर ही पुस्तक पढ़ते हैं और वे बाहर जाकर वे काम नहीं करेंगे जो दाफा शिष्यों को करने चाहिए। मुझे लग रहा है कि उन लोगों की समझ दुष्टता से बहुत परे नहीं हैं, और वे भाग्यशाली होंगे यदि वे भटकने नहीं लगे हैं। पिछले कुछ वर्षों से, दाफा शिष्य दमन के बीच फा का मान्यकरण कर रहे हैं और सत्य को स्पष्ट करके प्राणियों को बचा रहे हैं। उन लोगों में बिल्कुल भी सुधार नहीं होगा, वे घर पर चाहे पुस्तक को कितना भी क्यों न पढ़ें। यदि आप वे काम नहीं करते जो दाफा शिष्यों को करने चाहिए, तो न केवल आपमें सुधार नहीं होगा, बल्कि आप केवल नीचे की ओर गिरते जाएँगे। "दाफा शिष्य" ... "दाफा शिष्य," "फा-सुधार अवधि के दाफा शिष्य" होने का क्या अर्थ है? यह ब्रह्मांड में सबसे प्रमुख उपाधि और सबसे भव्य जीव होना है। यदि आप केवल अपने उद्धार पर ध्यान देते हैं, तो क्या यह पर्याप्त होगा? इसे "दाफा शिष्य" कैसे कहा जा सकता है? "फा-सुधार अवधि का दाफा शिष्य" होना क्या है? क्या आपने फा का मान्यकरण किया है? आप तब आये जब दाफा ने आपको लाभ पहुंचाया, लेकिन जब दाफा पर कठिनाई आयी तो आप छिप गये और आपने उसके लिए बोलने का साहस नहीं किया। आपने स्वयं को एक साधारण व्यक्ति से कम योग्य प्रदर्शित किया है, इसलिए "घर पर फा का अध्ययन" करने का क्या अर्थ है? सभी प्राणियों में दमन के दौरान विष भरा जा रहा है, इसलिए आप छिपकर कैसे सहज अनुभव कर सकते हैं? दाफा शिष्य सत्य को स्पष्ट क्यों कर रहे हैं और प्राणियों को क्यों बचा रहे हैं? क्योंकि यही दाफा शिष्यों का कर्तव्य है। मैं, ली होंगज़ी, इसी प्रकार का प्राणी चाहता हूँ, और एक दाफा शिष्य उसी प्रकार का साधक होता है।

शिष्य: ऐसा लगता है कि साथी अभ्यासी साधारणतः दुष्टता के आर्थिक दमन पर नियंत्रण पाने पर अधिक ध्यान नहीं देते हैं, इसलिए बहुत से अभ्यासी लंबे समय से कम वेतन वाली नौकरियों में हैं, और इस प्रकार समय और वित्तीय बाधाओं के कारण फा का मान्यकरण करने में सीमित हो गये हैं।

गुरूजी: यह समस्या वास्तव में उपस्थित है, लेकिन कभी-कभी यह हमारा अपना दोष या हमारी अपनी कमी होती है कि हम हर चीज को ध्यान में नहीं रखते हैं, जिसके कारण ऐसी चीजें होती हैं। दाफा के शिष्य फा का मान्यकरण करने के लिए एक पवित्र मार्ग पर चल रहे हैं और सभी प्राणियों को बचा रहे हैं, इसलिए उस मार्ग के सभी पक्ष, जिसमें वित्तीय परिस्थितियाँ भी सम्मिलित हैं, एक साथ आने चाहिए। यदि आप कुछ विषयों में अच्छा नहीं करते हैं, तो दुष्टता इस कमी का लाभ उठाएगी। किसी भी चीज के साथ, जब तक आप उसे अच्छी तरह से करते हैं, सबकुछ बदल जाएगा।

शिष्य: क्या आप संगीत रचना में सम्मिलित शिष्यों के लिए कुछ शब्द कहेंगे? हमने उन शिष्यों जितना अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है जो कलाकार हैं।

गुरूजी: हमें कलाकार शिष्यों और संगीतकार शिष्यों के बीच तुलना से और कौन किससे बेहतर कर रहा है उससे सरोकार नहीं है । (श्रोता हँसते हैं) ये केवल आत्म-सुधार और स्तर में भिन्नता के मुद्दे हैं। संगीत रचना करने वाले दाफा शिष्यों का ऐसा करना एक विशेष कर्तव्य है, और यह सत्य को स्पष्ट करने के अतरिक्त है। सभी प्राणियों को बचाने के लिए, दाफा शिष्यों ने कुछ गीतों की रचना की है, जिनमें गाला में प्रस्तुत किए गये गीत भी सम्मिलित हैं। वे गीत स्वयं दाफा शिष्यों द्वारा रचित थे, और यह बहुत उल्लेखनीय है। जिस दिन मैंने कलाकार दाफा शिष्यों को फा सिखाया, मैं संगीत और रंगमंच कला बनाने के लिए उत्तरदायी शिष्यों की बैठकों में भी सम्मिलित हुआ, और मैंने वहाँ फा सिखाया। हालाँकि, उस समय इसे रिकॉर्ड नहीं किया गया था। मैं भविष्य में जब अवसर आयेगा, इस पर और अधिक बात करूँगा। (तालियाँ)

शिष्य: ऐसे कई शिष्य हैं जो अपनी दिखावट और अपने व्यव्हार पर ध्यान नहीं देते हैं, जैसे कि वे कैसे दिखते हैं, बोलते हैं और व्यवहार करते हैं।

गुरूजी: मैं यहाँ कुछ अतिरिक्त बात करना चाहूँगा। परंपरागत रूप से भिन्न-भिन्न देवताओं के भिन्न-भिन्न मनुष्यों की दिखावट के बारे में भिन्न-भिन्न विचार रहे हैं। आप जानते होंगे कि अतीत में ताओ की साधना करने वाले कुछ लोग इस बात की अधिक परवाह नहीं करते थे कि वे कैसे दिखते हैं। कम से कम इस संसार में साधना करने वाले ताओवादी ऐसे ही थे, और विशेष तौर पर निम्नतर लोग, बाहरी दिखावट पर और भी कम ध्यान देते थे। वे बहुत ही लापरवाह थे और स्वयं को साफ-सुथरा नहीं रखते थे। उनमें से कुछ लोग तो जानबूझकर गंदे वातावरण में भी साधना करते थे। ऐसा क्यों था? उन्हें लगा कि एक साधक के लिए अपने पहनावे के बारे में बहुत अधिक ध्यान देना एक मोहभाव है और इस बारे में लापरवाह होना बेहतर है। और उन्होंने और क्या घटनाएँ देखी? अतीत में साधना मार्गों ने सह आत्माओं की साधना की, इसलिए उन्होंने अपनी साधना में कुछ ऐसा पाया, जो यह था कि समय के साथ जैसे-जैसे व्यक्ति साधना करता गया, उसके शरीर पर की हर चीज में शक्ति उत्पन्न होने लगी। वे लोग इस ओर बुरे लग रहे थे, लेकिन दूसरी ओर साधना पूर्ण कर चुकी सह आत्माओं की दृष्टि में, वे सभी चीजें अच्छी लग रही थीं। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस आयाम में पदार्थ व्यक्ति के साधना करने पर परवर्तित हो जाता है, और उसे शक्ति प्राप्त होती है। इसलिए जैसे-जैसे शक्ति बढ़ती है, दूसरी ओर शक्ति से बना अलौकिक खज़ाना दिखायी देता है, दूसरी ओर से व्यक्ति के शरीर पर उपस्थित धूल और मिट्टी शरीर को ढँके हुए खज़ानों की तरह दिखते हैं, जो चमकते और चकाचौंध करते हैं। लेकिन इस ओर—मानवीय जगत में—जो दिखा वह व्यक्ति के सिर और पूरे शरीर पर मिट्टी थी, वह सिर से पैर तक गंदा था, शरीर पर बस बहुत सारी धूल और मिट्टी थी। निरंतर अभ्यास करने से धूल और मिट्टी साधना के माध्यम से प्राप्त शक्ति से शक्तिशाली हो गईं, इसलिए सह आत्माओं ने जो चीजें ले लीं वे सभी अच्छी थीं। उन्होंने यह देखा, इसलिए वे जानबूझकर स्वयं को संवारने से दूर रहे।

अब इसे दूसरे दृष्टिकोण से देखते हैं। जैसा कि आप जानते हैं, पश्चिमी समाज में लोग दिखावट और आचरण की बहुत परवाह करते हैं। चूँकि उनकी संस्कृति में साधना नहीं होती है, इसलिए उन्हें इन मामलों की कोई अवधारणा नहीं है। बौद्ध धर्म में साधना सिखाती है कि एक साधक के पास जो कुछ भी है वह उसे बुद्ध द्वारा दिया गया है—उसे वह दिव्य पद मिलेगा जो बुद्ध उसे देंगे, और उसे वह मिलेगा जो उसे मिलना चाहिए और वह नहीं मिलेगा जो उसे नहीं मिलना चाहिए। पश्चिम के देवताओं के लिए भी यही बात लागू होती है। निश्चित ही, हालाँकि, दाफा सभी पिछली साधना स्वरूपों से भिन्न है।

1960 के दशक से पहले, जैसा कि पश्चिमी शिष्यों को याद होगा, पुरुष सज्जन, शिष्ट और सभ्य थे। महिलाएँ शालीन थीं और अच्छी तरह से शिक्षित और सुसंस्कृत होने को बहुत महत्व देती थीं। मनुष्यों ने सोचा होगा कि यह अच्छा है, और वास्तव में देवताओं ने भी इसे इतना बुरा नहीं माना। लेकिन इसने मनुष्यों को सरलता से इसके प्रति मोहभाव उत्पन्न करवा दिया। यह एक ऐसे बिंदु पर पहुंच गया जहां किसी व्यक्ति का मूल्य उसके बोलने के तरीके और आचरण से आंका जाने लगा। किसी व्यक्ति को उसके मूल चरित्र के स्थान पर उसके आधार पर शिष्टाचारी माना या नहीं माना जाता था। बाद में, चूंकि सभी मनुष्य यहाँ फा प्राप्त करने के लिए आये थे, इसलिए साधना के मार्ग में आने वाली सभी क्रियाओं और प्रवृत्तियों को हटाना पड़ा, और इसलिए प्राचीन शक्तियां सम्मिलित हो गईं और उन्होंने एक बुरी चीज से लड़ने के लिए एक बुरी चीज का उपयोग करने का तरीका अपनाया। क्या आप जानते हैं कि 1960 के दशक की शुरुआत में हिप्पी और स्ट्रीट आर्टिस्ट क्यों दिखायी दिए, लोगों ने एक मैला-कुचैला रूप धारण करना और पारंपरिक मूल्यों के विरुद्ध काम करना शुरू कर दिया, और जब कपड़ों की बात आयी, तो यह जितना अधिक आरामदायक था, उतना ही अधिक फैशन वाला था? लोगों के कपड़ों की बाहरी परत उनकी आंतरिक परत से छोटी थी, उनकी आस्तीन उनके हाथों को ढकती थी और केवल उनकी उँगलियाँ खुली रहती थीं, उनकी पैंट कमर से नीचे होती थी, उनकी पैंट की लंबाई उनके पैरों के ऊपर एकत्रित हो जाती थीं—मूल रूप से, यह जितना ढीला-ढाला होता था, उतना ही बेहतर होता था। मैं आपको बता सकता हूँ कि यह निश्चित रूप से केवल एक फैशन प्रवृत्ति नहीं थी। प्राचीन शक्तियां ने एक बुरी चीज का उपयोग करके एक बुरी चीज से लड़ने के लिए उस मानवीय जुनून को हटाने के लिए ऐसा किया। वास्तव में साफ-सुथरे कपड़े पहनने में कुछ भी अनुचित नहीं है, लेकिन किसी भी चीज को जुनून नहीं बनना चाहिए। एक बार जब कोई चीज जुनून बन जाती है, तो मानव मन भटक गया होता है और यह उन मनुष्यों को उसके साथ चरम सीमा तक ले जाता है।

चीन में सांस्कृतिक क्रांति से पहले, चीनी लोग काफी साफ-सुथरे और सभ्य थे, उनकी पाँच हज़ार वर्षों की सभ्यता थी। आप जानते हैं कि जापानी हमेशा से बहुत साफ-सुथरे और स्वच्छ रहे हैं, है न? कुछ शताब्दियों पहले जब चीजें इतनी विकसित नहीं थीं, तो जापानी हर दिन एक बड़े बर्तन में पानी गर्म करके लकड़ी के ड्रम में स्नान करते थे। वे ऐसा तब भी करते थे जब बहुत कम विकास हुआ था। और क्या आप जानते हैं? तांग राजवंश में भी लोग इसी तरह रहते थे—तांग राजवंश के लोगों के साथ भी बिल्कुल ऐसा ही था। ऐसा नहीं है कि प्राचीन काल में लोग साफ-सुथरे नहीं थे। ऐसा इसलिए है क्योंकि आज के लोग नहीं जानते कि प्राचीन लोग कैसे रहते थे। विभिन्न राजवंशों और विभिन्न अवधियों में लोग एक जैसे ही थे, वे नहीं बदले। केवल उनकी वेशभूषा में अंतर था। आज के लोग प्राचीन लोगों को पिछड़ा हुआ बताते हैं, लेकिन यह वास्तव में विकासक्रम के सिद्धांत पर आधारित तर्क से उत्पन्न हुआ है। सांस्कृतिक क्रांति ने "चार प्राचीन" को हटा दिया और स्वच्छता और साफ-सफाई को "रूढ़िवादी मानसिकता" के रूप में देखा—एक विशेष राजनीतिक दल के बेतुके शब्दों में कहें तो, यह एक "रूढ़िवादी मानसिकता" थी। वे महिलाओं की चोटियाँ काट देते थे, यदि उन्हें कोई ऊँची एड़ी के जूते पहनकर सड़क पर चलता हुआ मिल जाता तो वे उसके पैरों से जूते उतार देते और एड़ी काट देते, और वे कैंची से आपके द्वारा पहने गये किसी भी अच्छे दिखने वाले कपड़े को काट देते। चीन में उस राजनीतिक दल ने नारा दिया "हाथों को कठोर कर लो, कीचड़ से लथपथ हो जाओ और पूरे शरीर पर 'क्रांतिकारी कीड़ों' के साथ रहो।" (श्रोता हँसते हैं) चीनी सभ्यता को पूर्ण रूप से नष्ट करने में बस कुछ ही वर्ष लगे।

मैं जानता हूँ कि कुछ कोकेशियाई शिष्य कुछ चीनी शिष्यों की दिखावट पर चिढ़ते हैं। [उस प्रकार की दिखावट] उस समाज में रहने का एक उत्पाद है, और समय के साथ वे इसके साथ सहज हो गये और यह एक आदत बन गयी, और उन्हें अपने कार्यों और आचरण की अनुपयुक्तता का एहसास नहीं है। निश्चित ही, कुछ भी अति नहीं होना चाहिए, इसलिए जितना संभव हो सके मनुष्यों के जैसे आचरण करें और एक स्वाभाविक, प्रतिष्ठित व्यक्ति की तरह व्यवहार करें। आप बहुत बेढंगे, असभ्य, शिष्टाचार के प्रति लापरवाह या अनौपचारिक नहीं हो सकते।

वास्तव में, साधना के दृष्टिकोण से, चाहे आप अपनी दिखावट पर ध्यान दें या न दें, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता और इससे आपकी साधना प्रभावित नहीं होगी, लेकिन मुख्य बात यह है कि आप किसी भी प्रकार का मोहभाव उत्पन्न नहीं कर सकते। चीनी लोग कहते हैं, "मुझे बस सहज रहना पसंद है। जितना सहज उतना ही बेहतर। बेढंगा और अव्यवस्थित रहना बहुत सरल है।" मैं कहूंगा कि यह अच्छा नहीं है। एक दाफा शिष्य को दूसरों के लिए एक आदर्श होना चाहिए और एक प्रतिष्ठित मनुष्य की तरह दिखना चाहिए। जब मैं मुख्यभूमि चीन में फा सिखा रहा था और व्याख्यान दे रहा था, तो मैं हमेशा औपचारिक कपड़े पहनता था, और यह आपके लिए एक उदाहरण स्थापित करने के लिए था। (तालियाँ) और ऐसा इसलिए है क्योंकि कुछ लोगों को लगता है कि कर्म शब्दों से ऊँचा बोलते हैं। चाहे वे लोग उचित हों या नहीं, कुछ अभ्यासी बस गुरू की नकल करना चाहते हैं—"मैं वैसे ही कपड़े पहनूंगा जैसे गुरूजी पहनते हैं।" (श्रोता हँसते हैं) इसलिए मैं अपनी दिखावट पर ध्यान देता हूँ और आप सभी को भी ऐसा करना चाहिए। सांस्कृतिक क्रांति ने वास्तव में चीनी संस्कृति को इतनी बुरी तरह से नष्ट कर दिया कि इसने कुछ ही वर्षों में पांच हजार वर्ष प्राचीन सभ्यता को नष्ट कर दिया। इसलिए चीनी लोगों को अपनी दिखावट और व्यवहार पर अधिक ध्यान देना चाहिए, पश्चिमी शिष्यों को दिखावट के आधार पर लोगों का मूल्यांकन करने से बचना चाहिए, और एशियाई शिष्यों को समग्र रूप से अपने व्यवहार पर अधिक ध्यान देना चाहिए। (श्रोता तालियाँ बजाते हैं) किसी को भी अति नहीं करनी चाहिए।

शिष्य: हमें उन चीजों को कैसे देखना चाहिए जिनका फा-सुधार अवधि में साधारण लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है?

गुरूजी: हाँ, आप तथ्यों को बहुत अच्छी तरह से स्पष्ट कर सकते हैं, लेकिन यदि लोगों को आपकी दिखावट बहुत अप्रिय लगती हैं और वे आपको अशिष्ट भाषा का उपयोग करते हुए सुनते हैं, तो वे आपको विश्वसनीय नहीं मानेंगे। यदि आप सत्य स्पष्टीकरण में अच्छा प्रदर्शन नहीं करते हैं तो आपका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। आपको यह सब ध्यान में रखना होगा।

शिष्य: शिष्यों के रूप में हमें अर्जेंटीना में हुई घटना को किस प्रकार से देखना चाहिए?

गुरूजी: जहाँ तक उसकी बात है, मुझे लगता है कि यदि कोई दाफा शिष्यों का दमन करता है तो हमें उन्हें उत्तरदायी ठहराना चाहिए। यदि आवश्यकता पड़ी तो हम तथ्यों को समझाएँगे और यदि कोई घायल होता है तो हम आवश्यकता पड़ने पर इस मामले को अदालत में ले जाएँगे। इन सभी चीजों के उदाहरण हैं और आपको वह करना चाहिए जो करने की आवश्यकता है।

शिष्य: यदि व्यायाम करते समय मेरा मन रिक्त या शांत नहीं है, तो क्या मैं स्वयं को उसी प्रकार स्वच्छ कर सकता हूँ जिस प्रकार हम पाँच मिनट के दौरान करते हैं, जब हम पवित्र विचार भेजते हैं?

गुरूजी: जब भी आपका मन रिक्त और शांत न हो या आपका मन के साथ हस्तक्षेप हो रहा हो, तब आप पवित्र विचार भेज सकते हैं। यदि आप कोई सुधार करना चाहते हैं या पवित्र विचार भेजना चाहते हैं, तो आपको समय से बाध्य होने की आवश्यकता नहीं है। आप इसे किसी भी समय कर सकते हैं और जब आपको लगे कि आपका मन रिक्त हो गया है और आपके पवित्र विचार शक्तिशाली हो गये हैं, तब आप रुक सकते हैं।

शिष्य: क्या दाफा शिष्यों द्वारा किए जाने वाले तीन कामों को करने की आवश्यकताएँ बच्चों के लिए भी वयस्क शिष्यों के जैसे ही हैं?

गुरूजी: नहीं, वे भिन्न हैं। छोटे शिष्यों के कौशल, संचार क्षमताओं और समाज का उनको गंभीरता से लेने का मामला भिन्न होता हैं। इसलिए आवश्यकताएँ समान नहीं हो सकतीं। बच्चे और वयस्क एक जैसे नहीं होते—बच्चे तो बच्चे होते हैं। मैंने इस बारे में पहले भी कई बार बात की है।

शिष्य: आप लगभग तीन घंटे से बात कर रहे हैं। गुरूजी बहुत परिश्रम कर रहे हैं। बहुत से शिष्य चाहते हैं कि गुरूजी थोड़ा पानी पिएँ। (तालियाँ)

गुरूजी: कोई बात नहीं। मुझे लगता है कि चूँकि अभी भी बहुत सारी प्रश्न पर्चियाँ हैं, इसलिए मैं उन पर बात नहीं करूँगा जिन पर पहले ही चर्चा हो चुकी है।

शिष्य: कुछ शिष्यों का कहना है कि हम अभी के लिए वाणिज्य दूतावासों और दूतावासों में जाने से रुक सकते हैं क्योंकि मैनहट्टन अधिक महत्वपूर्ण है।

गुरूजी: वे सभी महत्वपूर्ण हैं, और किसी भी स्थान को अनदेखा नहीं किया जा सकता। (तालियाँ)

शिष्य: हम एक विवाहित जोड़ा हैं और दोनों शिष्य हैं, और हमारा एक दस वर्ष का पुत्र है। वह तीन वर्ष से मिंगहुई विद्यालय में पढ़ रहा है, फिर भी वह अक्सर लोगों से लड़ता है, झूठ बोलता है, और बुरा व्यवहार करता है।

गुरूजी: एक बच्चा, अच्छा, कभी-कभी उसमें अभी भी एक बच्चे के गुण हो सकते हैं, और जिन लोगों के संपर्क में वह आता है वे भी इसमें भूमिका निभाते हैं। मानव जाति एक कलुषित प्रवाह है, और यदि कोई ऐसा है जो इस कलुषित प्रवाह से अछूता है, तो वह एक देवता होगा। यहाँ तक कि साधना करने वाले दाफा शिष्यों को भी अक्सर स्वयं को स्वच्छ करने की आवश्यकता होती है, और यह एक बच्चे के लिए और भी अधिक लागू होता है।

और साथ ही, यदि माता-पिता में कुछ विषयों में कमियां हैं, तो बच्चा उसे प्रतिबिंबित करेगा। वे जानबूझकर दाफा शिष्यों और माता-पिता को दिखायी जाएँगी। इस बारे में और अधिक बात नहीं करते। वह आखिर एक बच्चा है।

शिष्य: कोरियाई भाषा में पहले बहुत सारे चीनी अक्षर होते थे, लेकिन आधुनिक काल की शुरुआत से इसमें साधारणतः केवल कोरियाई भाषा का ही उपयोग किया जाता रहा है, और यह फालुन गोंग के व्यापक प्रसार में कुछ हद तक बाधा बन गया है। कृपया इस पर कुछ प्रकाश डालें।

गुरूजी: मुझे याद है कि अतीत में पूरा एशियाई क्षेत्र, और मैं मध्य-पूर्वी देशों या भारत की बात नहीं कर रहा हूँ, चीनी अक्षरों का उपयोग करता था या कम से कम आंशिक रूप से उनका उपयोग करता था, क्योंकि वहाँ बहुत सारे चीनी लोग थे। चीनी लोग वहाँ व्यापार कर रहे थे या यहाँ तक कि सरकारी अधिकारी भी बन गये थे, इसलिए वहाँ बहुत सारे चीनी विद्यालय भी थे। अतीत में, एशियाई क्षेत्र में चीनी भाषा का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था, चाहे व्यापार में हो या सांस्कृतिक आदान-प्रदान में। इससे चीजें काफी सरल हो जाती थी। लेकिन प्राचीन शक्तियां संसार के लोगों को फा प्राप्त करने से रोकने पर तुली हुई थीं और साथ ही मेरे लिए फा-सुधार करने में बाधा उत्पन्न कर रही थीं। इसलिए इसने दुष्टों के समूह को एक भयानक काम करने के लिए विवश किया।

प्राचीन शक्तियों ने सोचा, "यदि चीनी भाषा का उपयोग [इन सभी देशों द्वारा] किया जाता है, तो लोगों के लिए फा प्राप्त करना बहुत सरल हो जाएगा और आपके फालुन गोंग के लिए संसार में प्रसारित होना बहुत सरल हो जाएगा।" तब प्राचीन शक्तियों का अधिकार नहीं रहता जब उनका वह करने का समय आता जो वे करना चाहती थी। जो वे करना चाहती थी, उसे करने के लिए, उन्होंने लोगों की राष्ट्रवाद की अवधारणा का लाभ उठाया जिससे वे अपनी मूल संस्कृतियों को बढ़ावा दे सकें, ऐसे अक्षर [भाषा के लिए] बना सकें जिन्हें देवता शब्दों के रूप में नहीं देखते। सोवियत संघ में कम्युनिस्ट देशों के एक सम्मेलन में एक बार सी सी पी ने सीधे-सीधे कहा, "दक्षिण पूर्व एशिया में हम चीनी बहुत सारे हैं, बहुत बड़ी संख्या में। हमारे द्वारा केवल एक पुकार से वे स्थान हमारी राजनीतिक पार्टी के राष्ट्र बन जाएँगे।" और आप जानते हैं, उस सम्मेलन में बहुत सारे पत्रकार सम्मिलित हुए थे, और उन्होंने शीघ्र ही उस समाचार को पूरे संसार में प्रसारित कर दिया। सम्मेलन अभी समाप्त भी नहीं हुआ था कि पूरे दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र ने चीनी लोगों के विरुद्ध एक बड़ा अभियान शुरू कर दिया। क्या आप जानते हैं कि "चीनियों की अस्वीकृति" कैसे शुरू हुई? यहीं से इसकी शुरुआत हुई। दक्षिण एशिया में विशेष रूप से, चीनी लोगों द्वारा चलाये जा रहे विद्यालयों को बंद करने के लिए विवश किया गया, वहां के चीनी लोगों को स्थानीय नाम और उपनाम अपनाने पड़े, और चीनी भाषा के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके अतरिक्त, कई देशों ने अपने संविधानों में ऐसे कानून और सुधार पारित किये जो चीनी भाषा के उपयोग पर प्रतिबंध लगाते हैं। इसलिए आज जब फा का अध्ययन करने और उसे प्राप्त करने की बात आती है तो कुछ क्षेत्रों के लोगों के लिए बहुत सी चुनौतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।

निश्चित ही, प्राचीन शक्तियां दाफा की शक्ति का अनुमान नहीं लगा सकती थीं। एशिया ही नहीं, बल्कि विश्व भर में लोग महान फा का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद कर सकते हैं, और महान फा का आंतरिक अर्थ अपरिवर्तित रहता है, चाहे वह किसी भी भाषा में हो। लेकिन दाफा शिष्यों के पहले समूह के लिए बाधाएँ बहुत बड़ी थीं जो फा-सुधार अवधि के दौरान सम्मिलित हुए थे। जिन लोगों ने शीघ्र फा प्राप्त किया था, उनके विरुद्ध हस्तक्षेप बहुत तीव्र रहा है।

शिष्य: हांगकांग में शिष्य जो साहित्य सामग्री वितरित कर रहे हैं, उनमें कई कहानियाँ हैं, जिनका विषय है "मन में 'दाफा हाओ' का पाठ करें और आपकी स्वास्थ्य समस्याएँ ठीक हो जाएँगी।" इसने कुछ मुख्यभूमि चीनी पर्यटकों को अनुचित तरीके से सोचने पर विवश कर दिया है कि हम इस विचार को आगे बढ़ा रहे हैं कि यदि लोगों को स्वास्थ्य समस्याएँ हैं तो उन्हें दवा लेने की आवश्यकता नहीं है और केवल यह कहने से वे ठीक हो जाएँगे कि दाफा महान है।

गुरूजी: "दाफा हाओ" कहना न केवल साधारण लोगों के लिए, बल्कि दाफा शिष्यों के लिए भी प्रभावी है क्योंकि यह मन में उपस्थित बुरी चीजों को दूर करता है। जब आपके शरीर की हर कोशिका यह कहती है कि दाफा महान है, तो आप पाएँगे कि आपका पूरा शरीर इसकी प्रतिध्वनि अनुभव करता है। (तालियाँ) यह फा है जिसका आपका मन आह्वान कर रहा है, इसलिए यह इतना शक्तिशाली है। लेकिन मुझे लगता है कि सत्य को ज्ञान के साथ स्पष्ट करना सबसे अच्छा है। मुख्यभूमि चीन के बाहर आपको ऐसा करने या इस प्रकार सत्य को स्पष्ट करने की आवश्यकता नहीं है। वातावरण बंधित नहीं है और आप लोगों को तर्क के आधार पर चीजों को स्पष्ट कर सकते हैं। मुख्यभूमि चीन में वातावरण भिन्न है, जिस हद तक लोगों में बदनामी भरे प्रचार से विष भरा गया है वह अलग-अलग है और इसलिए उनके फालुन गोंग के बारे में भिन्न-भिन्न विचार हैं, और मुख्यभूमि चीन के लोगों की चीगोंग के प्रति एक निश्चित सांस्कृतिक संदर्भ और पृष्ठभूमि है, इसलिए आप मुख्यभूमि चीन में अधिकतर लोगों के बीच ऐसा कर सकते हैं। लेकिन आपको शहरी क्षेत्रों में या यदि आप मुख्यभूमि चीन के बाहर हैं तो ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है। आपको हांगकांग में भी ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है। बस उन्हें आत्मविश्वास और गरिमापूर्ण तरीके से तथ्य बताएं, और यह ठीक रहेगा।

शिष्य: जैसे-जैसे हमने फा का प्रचार किया और सत्य को स्पष्ट किया, कुछ पश्चिमी साधारण लोग भावुक हो गये और हमारे लिए मिठाई, फल और अन्य चीजें लाए। हम पूछना चाहेंगे कि क्या उन्हें स्वीकार करना उचित है। हमने इस पर कई बार चर्चा की है और शिष्यों की राय भिन्न-भिन्न रही है।

गुरूजी: यह परिस्थिति पर निर्भर करता है। यदि लोग आपको मन से और इच्छा से कुछ देते हैं, लेकिन आप उसे लेने से मना कर देते हैं, तो यह वास्तव में थोड़ा असभ्य है। वे चीजें बहुत महंगी नहीं हैं, इसलिए व्यक्ति को धन्यवाद देने के बाद उन्हें स्वीकार करना उचित है। लेकिन आपको इसे परिस्थिति के अनुसार समझना होगा। यदि कोई आपको बहुत अधिक भोजन सामग्री देना चाहता है, तो उसे स्वीकार करना वास्तव में उचित नहीं होगा। इसे परिस्थिति के अनुसार संभालें, और इसके बदले आप उन्हें इसके लिए पैसे दे सकते हैं। हालाँकि, कुछ लोग वास्तव में करुणा से ऐसा करते हैं। वे देखते हैं कि आपको ठंड लग रही है, और वे आपके लिए कुछ कॉफ़ी या भोजन लाते हैं, आप इसके लिए उनका धन्यवाद कर सकते हैं। यदि आप उन्हें पैसे देना चाहते हैं, तो यह भी ठीक है। यदि वे इसे नहीं लेना चाहते हैं, तो बस उन्हें बहुत-बहुत धन्यवाद दें। स्थिति के अनुसार इन चीजों को संभालें।

शिष्य: कुछ साधारण लोगों के मीडिया और टीवी कार्यक्रम निर्माता हैं जो अब दाफा के विषय में कार्यक्रम करना चाहते हैं, और वे हमारी कुछ सामग्री चाहते हैं। हम गुरूजी से पूछना चाहेंगे कि हमें इसे कैसे संभालना चाहिए।

गुरूजी: यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे किस प्रकार के कार्यक्रम करना चाहते हैं। यदि वे हमारी परेड और दमन-विरोधी प्रदर्शनों को शूट करना चाहते हैं, तो वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं, क्योंकि वे पहले से ही सार्वजनिक कार्यक्रम हैं। लेकिन यदि वे आपके जीवन के विशेष पहलुओं के बारे में कार्यक्रम करना चाहते हैं, कि आप कैसे फा का अध्ययन करते हैं और साधना करते हैं, तो मैं कहूंगा कि उन्हें मना कर दें। उन्हें क्यों मना करें? क्योंकि आप नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं और वे इसका क्या करेंगे। इसके अतरिक्त, फा का अध्ययन और साधना एक बहुत ही गंभीर बात है, और कुछ साधारण लोगों को उस पर टिप्पणी करने देना उचित नहीं है। इसलिए आपको उन्हें मना कर देना चाहिए, और फिर, लोगों के लिए हमें वास्तव में समझना बहुत कठिन है।

थोड़ी देर पहले मैंने इस बारे में बात की थी कि कैसे अतीत में साधक बेढंगे और अव्यवस्थित होते थे। मैं फिर से बताना चाहता हूँ कि आपको उससे मोहभाव नहीं होना चाहिए। आप में से कुछ सोच रहे होंगे, "वाह, वे बेढंगी और गंदी चीजें अच्छी चीजों में परिवर्तित कर सकते हैं। फिर मैं भी गंदा रहूँगा।" (श्रोता हँसते हैं) मैं आपको यह स्पष्ट करना चाहता हूँ : तब सह आत्माएँ ही चीजें प्राप्त करती हैं! इसलिए आपको उन चीजों की नकल नहीं करनी चाहिए। चाहे वे चीजें वास्तव में अच्छी चीजों में परिवर्तित हो जाएँ और मुख्य आत्मा उन्हें प्राप्त भी कर ले, फिर भी दाफा में हम इस प्रकार से साधना नहीं करते। दाफा शिष्यों, मैं आपको बता दूँ, भविष्य में आपके पास सब कुछ होगा। (तालियाँ)

गुरूजी: धन्यवाद! (तालियाँ) पश्चिमी समाज वास्तव में चीनी लोगों द्वारा अपनाई जाने वाली साधना से काफी अपरिचित है। जब मैंने फा सिखाना शुरू किया, तो मैं सोच रहा था, "उनकी समझ कितने उच्च स्तर तक पहुँच पायेगी? और जनता इसे कैसे देखेगी?" वास्तव में, हालाँकि संस्कृति में अंतर के कारण उन्हें [चीनी] विचारों को व्यक्त करने का तरीका और मनुष्य के भगवान बनने की अवधारणा अपरिचित लगती है, लेकिन साधकों द्वारा दिखायी जाने वाली अच्छाई और करुणा और दाफा द्वारा उत्सर्जित सकारात्मक ऊर्जा किसी को भी यह सोचने पर विवश कर सकती है कि यह अच्छा है। सत्य को स्पष्ट करने के जैसे ही, आपको अपने परिवार से धीरे-धीरे दाफा की साधना के बारे में बात करनी चाहिए। आपको सबसे पहले उन्हें बताना चाहिए कि दाफा क्या है और फिर धीरे-धीरे उन्हें बताना चाहिए कि आप इसे सीख रहे हैं। वास्तव में मुझे नहीं लगता कि यह कोई बड़ी बात है—कई बार, यह केवल आपके अपने मानवीय विचार होते हैं।

उनसे खुलकर और सीधे बात करें, लेकिन सुनिश्चित करें कि आप बहुत ऊंचे स्तर पर बात न करें। वे आपके परिवार के सदस्य हो सकते हैं, लेकिन यदि आप कहते हैं, "मैं कुछ भी छुपाना नहीं चाहता, इसलिए मैं उन्हें वह सब कुछ बताऊंगा जो मैं जानता हूं" ... (श्रोता हंसते हैं) गुरूजी आपको झूठ बोलने के लिए नहीं कह रहे हैं। मैं कह रहा हूं कि आपको उच्च स्तर की चीजों के बारे में बात नहीं करनी चाहिए, अन्यथा यह उन्हें डरा देगा। चूंकि फा को समझना धीरे-धीरे किया जाता है, इसलिए यदि आप पहले ही उच्च स्तर की चीजों के बारे में बात करेंगे तो वे घबरा जाएंगे। आप यह कह सकते हैं, "यह अभ्यास वास्तव में अच्छा है और यह स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है। यह मन और शरीर के लिए अच्छा है और यह लोगों के नैतिक आदर्शों को बढ़ाता है। यह पुस्तक बहुत अच्छी है। क्या आप इसे पढ़ना चाहते हैं? क्या आप इसके बारे में और अधिक जानने में रुचि रखते हैं?" बस सबसे मूल स्तर से शुरू करके इसके बारे में बात करें, और उन्हें इसके बारे में स्वयं ही अधिक जानकारी प्राप्त करने दें और इसे स्वयं पढ़ने दें। चूँकि ज़ुआन फालुन सबसे निचले स्तर के प्राणियों, अर्थात मानव स्तर के सत्य से शुरू होता है, इसलिए लोग ज़ुआन फालुन को पढ़कर फा को समझ सकते हैं। यदि आप इसके बारे में निचले स्तर पर बात करना शुरू करते हैं, तो आपके परिवार के सदस्य जो इसके बारे में अधिक नहीं जानते हैं, वे इसका विरोध नहीं करेंगे। यदि आप उच्च स्तर पर चीजों के बारे में बात करते हैं और शुरू से ही बुद्ध और बड़े ब्रह्मांडों का उल्लेख करते हैं, तो वे सोचेंगे कि कहीं आपमें कुछ गड़बड़ तो नहीं है। (श्रोता हँसते हैं) और ऐसा इसलिए है क्योंकि वे वास्तव में आपकी कही गयी बातों को स्वीकार नहीं कर सकते। इसके अतरिक्त, पश्चिमी धर्म सिखाते हैं कि केवल एक ईश्वर है; उनकी समझ यह है कि ब्रह्मांड में केवल एक ईश्वर है। इसलिए उनके लिए इस प्रकार की चीजों को स्वीकार करना वास्तव में कठिन है। समझ धीरे-धीरे आती है।

शिष्य: अभिवादन, गुरूजी! मैं पूछना चाहता हूँ कि क्या भविष्य में चीनी अक्षरों को पारंपरिक शैली के मानक के अनुसार बदला जाएगा। धन्यवाद।

गुरूजी: वास्तव में, मैंने इसके बारे में नहीं सोचा है। वास्तव में, आजकल लोग जिस पारंपरिक शैली का उपयोग करते हैं, वह स्वयं कुछ ऐसा है जो सबसे प्राचीन अक्षरों से विकसित हुआ है, और यह आज जैसा है वहाँ पहुँचने के लिए क्रमिक परिवर्तनों से गुजरा है। मानव सभ्यता के वर्तमान चक्र में लोगों ने हड्डियों और सीपियों पर शिलालेखों का उपयोग करना शुरू किया। वहाँ से यह बड़ी और छोटी मुहर लिपियों में विकसित हुआ, और बाद में यह आधिकारिक लिपि बनी, उसके बाद नियमित लिपि आयी। नियमित लिपि के बाद कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है। फिर हाल के दिनों में, सजावटी लिपि के विभिन्न रूप सामने आये हैं, जैसे कि बोल्डफेस शैली, सॉन्ग टाइपफेस, और इत्यादि। जहाँ तक पारंपरिक लिपि और सरलीकृत लिपि में भिन्नता का प्रश्न है, यह सब ठीक है जब तक कि दाफा शिष्य इसे पढ़ सकते हैं और फा को समझ सकते हैं। इसके बारे में चिंता न करें, क्योंकि यह भविष्य के लोगों का मुद्दा है। चाहे [आपने जो वर्णन किया है] वह कुछ ऐसा है जो गुरू भविष्य में करेंगे, इसका दाफा शिष्यों से कोई लेना-देना नहीं है। फल पदवी प्राप्त करने के बाद, आप इस बात से क्यों चिंतित होंगे कि मानव संसार में क्या चल रहा है? इसका कोई अर्थ नहीं होगा। इन चीजों के बारे में चिंता करना छोड़ दें। यदि आप इसके बारे में बहुत अधिक सोचेंगे तो यह एक और मोहभाव बन जाएगा। जो भविष्य का है उसे भविष्य के लिए छोड़ दें।

शिष्य: हम हर काम को उचित तरीके से करने और समाज के अनुरूप रहने के बीच संतुलन कैसे बना सकते हैं? मीडिया को विकसित करने के लिए ऋण लेने के बारे में आपके क्या विचार हैं? पिरामिड योजनाओं के बारे में क्या विचार हैं, जिसने चीन के अंदर और बाहर दोनों ओर के साथी अभ्यासियों के बीच बहुत विवाद उत्पन्न किया है?

गुरूजी: दाफा के शिष्य बुरे काम नहीं कर सकते। पश्चिमी समाज में अब पिरामिड योजनाओं का उपयोग नहीं किया जाता। यह लोगों को सीधे-सीधे ठगना है। यह लोगों को स्तर के क्रमानुसार ठगता है, और देर से जुड़ने वालों का सबसे अधिक शोषण होता है।

[आप] दाफा शिष्यों के पिरामिड योजनाओं में सम्मिलित होने के विषय में [पूछ रहे हैं]? क्या दूसरों से धन अर्जित करने का जुनून उचित है? नहीं, यह नहीं है। यदि आप ऐसा करते हैं, तो आप वैध व्यवसाय नहीं कर रहे हैं। हर लाभ के लिए हानि होनी चाहिए, जिसमें लेनदेन होता है। लेकिन आप क्या कर रहे हैं? लोगों को ठगने के लिए अपना दिमाग खपा रहे हैं। आप ऐसा नहीं कर सकते! मैंने आपको बहुत पहले ही बता दिया था। आप पिरामिड योजनाओं में सम्मिलित नहीं हो सकते, और जो कोई भी ऐसा करता है वह अनुचित कर रहा है। चीन में दाफा शिष्यों में से जो कोई भी पिरामिड योजनाओं में सम्मिलित होता है, वह दाफा शिष्यों द्वारा की जाने वाली साधना के स्वरुप को बाधित कर रहा है। उन्हें बाद में इसके सभी परिणाम भुगतने होंगे। (तालियाँ)

जहाँ तक मीडिया आउटलेट विकसित करने के लिए बैंक से ऋण लेने की बात है, मैं इसका समर्थन नहीं करता। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब दाफा शिष्यों की बात आती है, यदि आप उनसे मीडिया का काम करने या लेख लिखने के लिए कहते हैं, तो वे यह कर सकते हैं। लेकिन आपके लिए किसी प्रकार का व्यवसाय चलाना या विज्ञापन प्राप्त करना वास्तव में कठिन है, क्योंकि आप साधारण लोगों से बातचीत करने के आदी नहीं हैं। तो एक बार ऋण लेने के बाद आप उसे कैसे चुकाएँगे? विज्ञापन मिलना आपके लिए कठिन है, फिर भी आप ऋण लेना चाहते हैं जब आपको मीडिया के लिए विज्ञापन नहीं मिल पा रहे हैं? यदि आपको इसे चुकाना है, तो आपको विज्ञापन से प्राप्त आय और समाचार पत्र से प्राप्त लाभ से भुगतान करना होगा। मैं आपके ऋण लेने का समर्थन नहीं करता—कभी भी ऋण न लें। आपको ऋण नहीं लेना चाहिए।

शिष्य: जब से गुरूजी ने हमें मुख्यभूमि चीन में शिष्यों की सहायता करने के लिए अधिक प्रयास करने के लिए कहा है, मैंने कई बार चीन में साथी अभ्यासियों को फोन किया है जो घर पर रहकर साधना करते हैं। लेकिन फिर भी वे आगे नहीं आते। मैं उनके बारे में वास्तव में चिंतित हूं, विशेषकर क्योंकि फा-सुधार अंतिम चरण में प्रवेश कर गया है। क्या मैं गुरूजी से पूछ सकता हूं कि मुझे उनकी सहायता करने के लिए क्या करना चाहिए?

गुरूजी: साथी अभ्यासियों की सहायता करना एक ऐसी चीज है जो की जानी चाहिए, और किसी को पीछे नहीं छोड़ने की इच्छा करने में कुछ भी अनुचित नहीं है। लेकिन यदि वे वास्तव में आगे नहीं आ सकते हैं, तो ठीक है, आपने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है। वास्तव में आप यह पता लगाने का प्रयास कर सकते हैं कि उनकी मानसिक बाधाएं क्या हैं और उनके अवरोध कहां हैं। एक बार जब आप यह निर्धारित कर लेते हैं कि उनकी बाधाएं और अवरोध क्या हैं, तो शायद उनका समाधान किया जा सकता है। लेकिन बहुत से लोग, मुझे लगता है कि वे केवल डरते हैं। एक दिव्य प्राणी या एक साधक के लिए, भय एक प्रमुख मोहभाव माना जाता है, और यदि इसे हटाया नहीं जाता है तो यह वास्तव में उचित नहीं होगा। इसलिए उनकी परिस्थितियों के आधार पर आप जो कर सकते हैं वह करें, हालांकि यदि वे वास्तव में मना करते हैं तो आप कुछ नहीं कर सकते। कुछ लोग अपनी क्षमता को पूरा उपयोग न करके और आशाओं पर खरा न उतरकर आपको वास्तव में निराश कर देंगे। अतीत के साधकों के साथ ऐसा कुछ नहीं था। वे बस यही सोचते थे, "आपकी परवाह कौन करता है। यदि आप सफल नहीं हो सकते या आशाओं पर खरे नहीं उतर सकते, तो आपके लिए सब समाप्त हो जायेगा। घर जाओ। अब और नहीं। ऐसा नहीं है कि मैं यहाँ केवल आपको बचाने के लिए व्याकुल हो रहा हूँ।" केवल दाफा शिष्य ही वह करेंगे जो हम करते हैं। (तालियाँ)

शिष्य: पिछले दो महीनों में, हमने देखा है कि न्यूयॉर्क में समाज के मध्यम या निचले वर्ग के बहुत से लोगों ने हमारे पर्चे स्वीकार किए हैं, जबकि समाज के मुख्य भाग के 70% लोगों को हमारी सामग्री नहीं मिली है। हम इसे कैसे संभालें? यदि हम औपचारिक वेशभूषा अपनाएं, जैसे हमने आज पहनी है, तो क्या इससे कोई अंतर पड़ेगा?

गुरूजी: यह समस्या नहीं है। समस्या वही है जो मैंने पहले बताई थी : यहाँ की कंपनियों में काम करने वाले चीनी लोग दुष्ट, नीच समूह के बदनामी भरे प्रचार के विष से भर गये हैं जो दाफा का दमन करता है, और ये वे लोग हैं, जो सच्चाई नहीं जानते, जो दुष्टता को विष प्रसारित करने में सहायता कर रहे हैं। वे [समस्या का] मुख्य कारण हैं। यदि आप समस्या का समाधान करना चाहते हैं तो आपको वहीं से शुरुआत करनी होगी। अमेरिकियों को लगता है कि वे लोग विश्वसनीय हैं क्योंकि वे सहकर्मी हैं, और इसलिए वे उनकी बात सुनते हैं, यह नहीं जानते कि वे लोग भी पीड़ित हैं।

शिष्य: चीन के पास के बहुत से एशियाई देशों में बहुत अधिक हस्तक्षेप किया गया है। मैं आदरणीय गुरूजी से पूछना चाहता हूँ, क्या पश्चिमी शिष्य वहाँ जाकर स्थिति सुधारने में सहायता कर सकते हैं?

गुरूजी: उन देशों के शिष्य मूल रूप से यही कर रहे हैं। लेकिन कुछ सरकारें चीन के साम्यवादी शासन से वास्तव में डरती हैं, इसलिए कुछ सरकारों ने बहुत बुरा आचरण किया है। यदि आप किसी और काम में व्यस्त हैं, तो आपको अभी इस विषय पर काम करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन यदि आपके पास समय है, तो आप यह देखने का प्रयास कर सकते हैं कि क्या आप कुछ कर सकते हैं। मैं बस इतना कह सकता हूँ कि आप प्रयास कर सकते हैं और देख सकते हैं कि यह कैसे किया जा सकता है। जब आप उन देशों के आचरण को देखते हैं, तो उसे ऐसे समझें जैसे आप किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो आशाओं पर खरा नहीं उतरा है।

शिष्य: ऑस्ट्रेलिया के दाफा शिष्यों ने गुरूजी को अपना नमन भेजा है।

गुरूजी: धन्यवाद। (तालियाँ)

शिष्य: क्या मैं गुरूजी से पूछ सकता हूँ कि हमें विभिन्न देशों और स्थानीय क्षेत्रों में सत्य को स्पष्ट करने और न्यूयॉर्क और बीजिंग में लोगों को सत्य को स्पष्ट करने के बीच संतुलन कैसे बनाए रखना चाहिए?

गुरूजी: वे सभी महत्वपूर्ण हैं। आपको यह वहीं करना चाहिए जहाँ आपकी परिस्थितियाँ अनुकूल हैं।

शिष्य: सिंगापुर के सभी दाफा शिष्यों की ओर से गुरूजी को नमन। इंडोनेशियाई दाफा शिष्यों ने भी मुझसे कहा कि जब मैं आपसे मिलूं तो गुरूजी को उनका नमन पहुंचा दूँ।

गुरूजी: धन्यवाद। (तालियाँ)

शिष्य: गुरूजी, क्या लोगों के बीच संघर्ष और साधकों के बीच संघर्ष एक जैसे होते हैं? मुझे ऐसा क्यों लगता है कि साधकों के बीच संघर्ष को सुलझाना हमेशा कठिन होता है? सतह पर वे साथ-साथ चल रहे होते हैं, जबकि वास्तव में वे एक-दूसरे से अप्रसन्न होते हैं। यदि ऐसा लंबे समय तक चलता रहा, तो हमें इसके बारे में क्या करना चाहिए? (श्रोता हंसते हैं)

गुरूजी: आपको इसके बारे में क्या करना चाहिए? (श्रोता हंसते हैं) वास्तव में, आपको इसके बारे में क्या करना चाहिए? आप साधक हैं, तो आप ऐसे कैसे हो सकते हैं? लेकिन मैं जानता हूँ, और मैं आपको फिर से वही बात बताऊँगा : हालाँकि कुछ लोगों के साथ कुछ समस्याएँ स्पष्ट दिखायी देती है, लेकिन वास्तव में उन्होंने कुछ ऐसी चीजों के साथ बहुत अच्छी तरह से साधना की है जो दिखायी नहीं देती हैं। आप उनकी तुलना साधारण लोगों से नहीं कर सकते, और आपको यह सोचना भी नहीं चाहिए कि उनके बीच जो संघर्ष हैं, वे केवल संघर्ष हैं। वे उनके लिए स्वयं को बेहतर बनाने के अवसर हैं।

यदि आप सभी एक बड़े सामंजस्यपूर्ण समूह होते, सब कुछ वास्तव में शांत होता और आप सभी के साथ सब कुछ अच्छा होता, कोई किसी को परेशान नहीं करता, और हर कोई दूसरों को प्रसन्न कर रहा होता, तो यह ठीक नहीं होता, (श्रोता हंसते हैं) यह वास्तव में बुरा होता, क्योंकि तब आप साधना नहीं कर पाते। यदि किसी का विरोध सतह पर नहीं आया और आप एक-दूसरे को सुधारने में सहायता नहीं कर सकें, तो यह साधना समूह नहीं होगा। जो बात हमें साधारण लोगों से सबसे भिन्न करती है, वह यह है कि जब संघर्ष और तनाव उत्पन्न होते हैं, तो हम स्वयं की जांच करने में सक्षम होते हैं। (तालियाँ) ऐसा बिल्कुल नहीं है कि हमारे बीच संघर्ष नहीं होते। जब हमारे कुछ ऐसे पक्ष सामने आते हैं जिनकी हमने अच्छी तरह से साधना नहीं की है, तो घर्षण होगा, और मतभेद होगा और राय में असहमति होंगी। तब देखें कि समस्याएँ कहाँ हैं। प्रत्येक व्यक्ति को कारण समझने के लिए स्वयं की जाँच करनी चाहिए : "क्या मैंने कुछ अनुचित किया, और इसी कारण लोग मुझसे असहमत थे?" और दूसरे पक्ष को भी कुछ सोचना चाहिए : "क्या मैंने जिस तरह से मुद्दे को उठाया, उसमें कोई समस्या थी, और इसी कारण लोगों ने इसे स्वीकार नहीं किया?" यदि हर व्यक्ति स्वयं की जांच कर सके, तो वह साधना है। यदि आपने स्वयं की जांच नहीं की, तो आपने साधना नहीं की, या कम से कम उस एक विषय में तो नहीं।

ऐसे मुद्दे हैं जहाँ संघर्ष काफी लंबे समय तक चलते हैं, लेकिन कभी न कभी उन्हें यह देखना होगा कि उनकी समस्याएँ कहाँ हैं। उनसे शीघ्र ही छुटकारा पाना बेहतर है। किसी को भी तब तक फल पदवी प्राप्त करने की आशा नहीं करनी चाहिए जब तक वे संघर्षों और मोहभावों में उलझे हुए हैं। (तालियाँ)

शिष्य: बौद्ध धर्म की उत्पत्ति भारत में हुई, लेकिन बाद में यह भारत से लुप्त हो गया। आजकल भारत में कई भिन्न-भिन्न संस्कृतियाँ और भाषाएँ हैं, और इससे वहाँ दाफा को प्रसारित करना कठिन हो जाता है। क्या यह प्राचीन शक्तियों की व्यवस्था के कारण है? आदरणीय गुरूजी, कृपया हमारा इस पर कुछ मार्गदर्शन करें।

गुरूजी: इस विषय में यह चीन जैसा ही है। चीन इतना बड़ा क्षेत्र है, और कई क्षेत्रों की बोलियाँ दूसरे क्षेत्रों के लोगों की समझ से परे हैं। लेकिन हर कोई मेंडरिन बोलता है, जो राष्ट्रीय भाषा है, और इसलिए लोग एक-दूसरे को समझ सकते हैं। भारत में भी यह वास्तव में ऐसा ही है। भारत की भी एक आधिकारिक भाषा है, और कई भारतीय अंग्रेजी बोलते हैं। अंग्रेज वहाँ काफी लंबे समय तक रहे, इसलिए बहुत से वृद्ध लोग अंग्रेजी बोलते हैं। भारत की जनसँख्या बहुत अधिक है और भूमि काफ़ी बड़ी है, इसलिए भाषा में अंतर होना स्वाभाविक है। मुझे नहीं लगता कि यह उन्हें फा प्राप्त करने से रोक रहा है। निश्चित रूप से यह प्राचीन शक्तियां हैं जो उन्हें रोक रही हैं। चीन के दाफा शिष्य इस मुद्दे को हल करने में सक्षम हुए हैं, और भारत में भी हो सकते हैं।

दूसरे धर्मों और विभिन्न मान्यताओं को अपनाने के बाद से भारत के लोगों में बहुत बदलाव आया है। अतीत में, भारतीय लोग आदिम सादगी वाले लोग थे; भारतीय जाति का निर्माण बुद्ध ने किया था।

पृथ्वी पर मनुष्यों को विभिन्न देवताओं ने सृजन किया था। ऐसा लगता है जैसे ब्रह्मांड के कुछ देवता यहाँ त्रिलोक में आकर बस गये थे—यहाँ बुद्ध, दाओ और सभी प्रकार के देवताओं ने अपने चरण रखें हैं। उनके चरणों के तल पर—सबसे निचले स्तर के कण—त्रिलोक और पृथ्वी हैं, जिस पर इस संसार के विभिन्न लोग हैं, विभिन्न देवताओं की प्रणालियों के अनुरूप विभिन्न लोग हैं। शाक्यमुनि अक्सर कहा करते थे कि चरण गंदे हैं। वास्तव में उनका अर्थ था कि यह मानव स्थान निम्न स्तर पर है। दूसरे शब्दों में, एक बार जब एक भगवान ने एक व्यक्ति को बनाया, तो वह व्यक्ति उस भगवान की प्रणाली का भाग बन गया, और इसीलिए देवताओं ने लोगों की देखभाल की। लेकिन बाद में, क्योंकि फा-सुधार शुरू हुआ, मनुष्यों का निर्माण करने वाले देवताओं ने त्रिलोक और मानव जाति को त्याग दिया; जिन देवताओं ने मनुष्य को बनाया वे सभी त्रिलोक से अलग हो गये, इसलिए मनुष्य अकेला पड़ गया। यह सतही मानव रूप, जिसे मानव त्वचा भी कहा जाता है, अभी भी विभिन्न जातीय समूहों की छवि धारण किये हुए है, लेकिन इसका अब ऊपर के देवताओं से कोई संबंध नहीं है। दूसरे शब्दों में, अब इनका उन देवताओं से कोई संबंध नहीं है जिन्होंने पहले मनुष्यों का सृजन किया था। क्या ब्रह्मांड के उच्च स्तरों से देवता एक के बाद एक नीचे नहीं आये, मानव रूप धारण करके फा प्राप्त करने के लिए? दूसरे शब्दों में, आज अधिकांश मानव शरीर उन प्राणियों द्वारा उपयोग किए जा रहे हैं जो उच्च लोकों से उतरकर यहाँ मानव बन गये हैं। यह वस्त्र उच्च लोकों से आये प्राणियों द्वारा पहना जा रहा है। एक बार जब वे इस मानव स्थान पर पहुँच जाते हैं तो आप उन्हें अब देवता नहीं कह सकते, क्योंकि अतीत में जो प्राणी इस मानव स्थान पर आये थे वे कभी वापस नहीं जा पाये थे; एक बार जब कोई इस लोक में पहुँच जाता है तो वह इस लोक का प्राणी बन जाता है। तो दूसरे शब्दों में, वह मनुष्य बन गये, केवल अंतर यह था कि वह उच्च स्तरों से आये थे। लेकिन, चर्चा के इस बिंदु पर, मैं जो कह रहा हूँ वह यह है कि पूर्व देवता, जिन्हें मेरे महान फा के व्यापक रूप से प्रसारित होने पर बचाया नहीं जा सकता, जब तक कि वे इतने बुरे न हों कि उन्हें हटा दिया जाए, वे हमेशा के लिए यहाँ मानव बने रहेंगे। और हम उन लोगों के बारे में बात कर रहे हैं जिन्होंने दाफा के विरुद्ध पाप नहीं किया है और वे अत्यधिक बुरे नहीं हैं। वे अगले काल में मनुष्य होंगे, जब भावी मानवजाति का वास्तव में आरम्भ होगा।

आज की मानवजाति को ब्रह्मांड में एक सदैव रहने वाले स्तर के रूप में नहीं बनाया गया था। त्रिलोक का निर्माण फा-सुधार के लिए किया गया था, और चाहे इसका इतिहास कितना भी लंबा क्यों न हो, यहाँ के प्राणी फा-सुधार के उद्देश्य से हैं और फा-सुधार के साथ-साथ अस्तित्व में हैं। देवताओं ने मानवजाति को उनकी संस्कृतियों, व्यवहार और सोचने के तरीकों के साथ-साथ उनके जैविक स्वरूप को आकार देकर निर्देशित किया। वह प्रक्रिया इतिहास का एक भाग थी जिसका उद्देश्य फा-सुधार को सुगम बनाना था, यह फा-सुधार के लिए हुआ था, और यह फा-सुधार के लिए ही था कि मनुष्य के विभिन्न राजवंश निरंतर बदलते रहे। दूसरे शब्दों में, मनुष्य वास्तव में ब्रह्मांड के इस स्तर से संबंधित प्राणी नहीं हैं। मानव स्तर पर प्राणियों और समाज का निर्माण एक उद्देश्य के साथ किया गया था। यदि इस फा-सुधार के दौरान मनुष्य अच्छा कार्य करते हैं, तो मानवजाति धन्य हो जाएगी। चूँकि महान फा यहाँ प्रसारित हुआ है, इसलिए इस स्तर के प्राणियों—मानवों—का वास्तविक इतिहास वास्तव में भविष्य में शुरू होगा, और महान फा इस भविष्य के स्तर के लिए मनुष्यों के जीवन को स्थापित करेगा। दूसरे शब्दों में कहें तो, भविष्य में मनुष्य वास्तव में अस्तित्व में रहेगा, और यह स्तर हमेशा के लिए ब्रह्मांड की संरचना का एक भाग बन जाएगा, यह स्तर हमेशा के लिए ब्रह्मांड का एक स्तर होगा। (तालियाँ) तो भविष्य में जो लोग दाफा के विरुद्ध पाप नहीं करते हैं लेकिन दाफा में साधना नहीं करते हैं वे हमेशा के लिए यहाँ मनुष्य बने रहेंगे।

आज का मानव संसार वास्तव में डरावना है, और इससे पहले कोई भी यहाँ आने का साहस नहीं करता था। यहाँ आने के बाद वे भ्रम में पड़ जाते थे, और उनके मन रिक्त कर दिए जाते थे, चाहे कोई देवता कितने भी उच्च स्तर से क्यों न आया हो, यहाँ आने के बाद उसे कुछ भी पता नहीं चलता था। इस संसार के विपरीत सिद्धांतों में डूब जाने के बाद, और इस संसार के मानवीय स्वार्थ और चिंग से प्रेरित होकर, लोग कुछ भी करने में सक्षम हैं। यहाँ कोई भी प्राणी केवल बर्बादी के मार्ग पर ही जा सकता है, और उसके लिए स्वयं को बाहर निकालना कठिन है। इस मानवीय स्तर पर, चिंग पानी की तरह अभिव्यक्त होता है; यह पानी, जिसे लोग देख सकते हैं, उसके कणों से छोटा होता है और अत्यधिक घना होता है। यह एक देवता है, लेकिन यह निराकार है, और इसे "चिंग " कहा जाता है। यह एक ऐसा देवता है जिसे त्रिलोक के सृजन के समय बनाया गया था, और यह बस अपनी भूमिका निभाता है। यहाँ, कोई भी प्राणी जो त्रिलोक के भीतर के कणों से बना है, डूबा हुआ है। सूक्ष्म स्तर से देखा जाए तो मानव शरीर में अणु बड़ी गोलियां होती हैं और उन गोलियों के बीच अंतराल होते हैं। इसलिए क्योंकि मनुष्य यहाँ डूबा हुआ है, और मानव शरीर में अणुओं के बीच स्थान—और यहाँ तक कि अणुओं के अंदर के स्थान भी—चिंग में डूबे हुए हैं, ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे पानी में डूबे हुए हैं। कौन कह सकता है कि वह चिंग से प्रभावित नहीं है? यदि कोई चिंग से बाहर निकल सकता है, तो वह व्यक्ति दिव्य है। (तालियाँ) आपका प्रसन्न होना, आपका दुखी होना, आपको कुछ पसंद आना, आपको कुछ नापसंद आना, आपका क्रोधित होना—आपकी कोई भी भावनात्मक प्रतिक्रिया—आपको कुछ भौतिक वस्तुएँ पसंद आना, आपको कुछ काम पसंद आना, आपको कुछ विशेष खाद्य पदार्थ खाने की इच्छा होना... ये सभी चीजें चिंग से हैं।

मनुष्य का सतही शरीर—इस तथ्य के होते हुए भी कि यह प्राणी उच्च स्तरों से आया है—मनुष्य का सतही शरीर इस आयाम में विभिन्न खाद्य पदार्थों से बना है, लेकिन साथ ही, आप जो सतह देखते हैं वह बहुत जटिल है। मनुष्य के पास एक वास्तविक शरीर है। (निःसंदेह, इस फा को भविष्य में सिखाया जाना चाहिए, क्योंकि यह जो फा है वह त्रिलोक की सीमा में है।) मानव शरीर की संरचना जटिल है। जब कोई व्यक्ति जन्म लेता है, तो मनुष्य के पुनर्जन्म के प्रभारी निम्न-लोक के देवताओं को उस व्यक्ति को एक मानव त्वचा देनी होती है। वह मानव त्वचा उस समय बहुत छोटी होती है; उस आयाम में इसकी अभिव्यक्ति बहुत छोटी होती है। जब यह एक भ्रूण होता है, तब से, इस आयाम से जो पदार्थ इसके माता-पिता इसे देते हैं—जिसे लोग "पोषण" कहते हैं—वह निरंतर इसे भरता और बड़ा करता है। इसे भरने और इसे बड़ा करने की यह प्रक्रिया वृद्धि की प्रक्रिया है। यह भरता और बड़ा होता है क्योंकि यह निरंतर इस आयाम के पदार्थ द्वारा पुष्ट होता है, जो निरंतर वास्तविक त्वचा को भरता और बड़ा करता है। जन्म के बाद व्यक्ति के विकास की प्रक्रिया के साथ भी ऐसा ही होता है : आप जो भी मानव भोजन ग्रहण करते हैं, आपका शरीर बढ़ेगा, और यह विकास वास्तव में आपकी वास्तविक त्वचा है जो जन्म के बाद आपके द्वारा ग्रहण किये गये भोजन के परिणामस्वरूप बनी कोशिकाओं द्वारा भरी और बड़ी हो रही है। फिर जब किसी व्यक्ति का निधन हो जाता है, तो साधारणतः उसकी वास्तविक त्वचा को निकाल कर ले जाया जाता है। यह सबसे बाहरी सतह पर उपस्थित पदार्थ से कहीं अधिक सूक्ष्म है, इसलिए देवता इसे सरलता से हटा सकते हैं। जैसे ही वास्तविक त्वचा को हटा दिया जाता है, सतह पर उपस्थित शरीर टूटने और सड़ने लगता है। चूँकि यह इस आयाम में पृथ्वी के पदार्थ से बना था, इसलिए इसे पृथ्वी पर वापस लौटना होगा, इसलिए इसे यहाँ सड़ना होगा।

मैं त्रिलोक के फा के बारे में बात कर रहा हूँ। (गुरूजी मुस्कुराते हैं) (श्रोता हँसते हैं, तालियाँ बजाते हैं) आपकी मानवीय सतह इसे सुनना पसंद करती है, लेकिन उच्च-स्तरीय साधना में इसका कोई उपयोग नहीं है। दूसरे शब्दों में, जैसा कि मैंने थोड़ा पहले कहा, ऊपरी लोकों से आये प्राणी वास्तव में अब इस प्रकार के वस्त्र पहन रहे हैं—अर्थात, मानव त्वचा, सतह पर यह मानव शरीर। चूँकि मनुष्यों की सतही दिखावट पहले देवताओं द्वारा बनायी गयी थी, अतीत में वे हमेशा उन देवताओं से जुड़े हुए थे, इसलिए उनकी मूल रूप से उन देवताओं की छवियाँ थीं। वे अधिकांश रूप से समान थे, केवल नगण्य अंतर था। प्रत्येक व्यक्ति का अपना स्वरूप हो सकता है, लेकिन पूर्ण रूप से उसकी छवि उस देवता की मूल छवि है। अर्थात विभिन्न देवताओं ने विभिन्न मनुष्यों का निर्माण किया। लेकिन, फा-सुधार अवधि आरम्भ होने के कारण, उन सब ने मानव जाति को त्याग दिया। कुछ लोग कहते हैं कि वे इस या उस जातीयता के हैं, लेकिन देवताओं की दृष्टि में वे वास्तव में किसी भी जातीयता से संबंधित नहीं हैं। यह केवल इतना है कि सतह पर उनके शरीर में अभी भी उस जातीयता की दिखावट है; उनका वास्तविक रूप इसका भाग नहीं है। वे शायद दूसरे जातीय समूहों में भी पुनर्जन्म ले चुके होंगे, और कई प्राणी दिव्यलोक से आये होंगे।

जब देवताओं ने मनुष्य का सृजन किया तो उन्होंने ऐसा स्वर्ग में नहीं किया, उन्होंने इसे धरती पर किया। अर्थात, उन्होंने मनुष्य का सृजन करने के लिए धरती पर उपस्थित पदार्थ का उपयोग किया। स्पष्ट रूप से ओल्ड टेस्टामेंट में कहा गया था कि यहोवा ने मनुष्य को मिट्टी से बनाया। वास्तव में, अणु एक तरह के कण हैं जो ब्रह्मांड के सबसे निचले स्तर की सतह पर हैं। दूसरे शब्दों में, देवताओं की दृष्टि में कणों की यह परत धरती है, मिट्टी है। [वे इसे इस प्रकार देखते हैं] क्योंकि उनका पदार्थ ब्रह्मांड में सबसे अच्छा पदार्थ है, और ब्रह्मांड में आप जितना नीचे जाते हैं, चीजें उतनी ही निम्न होती हैं और कण उतने ही बड़े और स्थूल होते जाते हैं, जिसका अर्थ है कि चीजें उतनी ही बुरी होती हैं, और उनकी दृष्टि में चीजें उतनी ही गंदी होती हैं। इसलिए उनकी दृष्टि में स्वर्ग और धरती मनुष्यों की धारणा से भिन्न हैं। जब लोग कहते हैं कि कोई स्वर्ग गया है, तो वह वास्तव में केवल ऊपर गया है और अणुओं के बीच आगे की यात्रा की है। उसने अभी भी अणुओं के इस आयाम को नहीं छोड़ा है, इसलिए वह वास्तव में स्वर्ग में नहीं है। देवता जिस स्वर्ग का उल्लेख करते हैं वह सूक्ष्म कणों से बना है—वे वास्तविक स्वर्ग हैं।

वैज्ञानिक पूछते हैं, "आपको देवता कहाँ मिल सकते हैं? हमने अपनी दूरबीनों से आकाश में देखा है—देवता कहाँ हैं?" यह वास्तविक स्वर्ग नहीं है, बल्कि मनुष्य जैसा सोचते हैं वैसा ही स्वर्ग है। यह ब्रह्मांड के प्राणियों द्वारा कहे जाने वाले सच्चे "स्वर्ग" नहीं हैं। और "पृथ्वी" जैसा कि हम जानते हैं, पृथ्वी की वास्तविक अवधारणा को पूर्ण रूप से समाहित नहीं करती है। मनुष्य पृथ्वी को देखते हैं और सोचते हैं, "ओह, यह पृथ्वी, यह हमारी पृथ्वी है। हम पृथ्वी पर खड़े हैं। पृथ्वी गोल है।" देवता कहते हैं कि यह गोल नहीं है। [लोग सोच सकते हैं,] "यह गोल कैसे नहीं है? हम इसे देवताओं से अधिक स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।" लेकिन इसके बारे में सोचें, देवता अणुओं को धरती की मिट्टी के रूप में देखते हैं, और क्या इस आयाम का पदार्थ अणुओं से नहीं बना है? क्या वायु, जिसे हमारे मानवीय नेत्र नहीं देख सकते, अणुओं से नहीं बनी है? और वायु में वायु जैसे पदार्थ हैं, जिनकी संख्या हजारों लाखों में है, जो पुरे त्रिलोक में फैले हुए हैं। बस इतना है कि नेत्र अणुओं और छोटे कणों को नहीं देख सकते, हालाँकि इस आयाम में सब कुछ उनसे भरा हुआ है। मानव जाति अणुओं और छोटे कणों के ढेर में दबी हुई है। मानव जगत में सतही रूप अणुओं से बने सतही पदार्थ से बने भिन्न-भिन्न रूप हैं। कुछ रूप देवताओं ने बनाए, कुछ मनुष्य ने। मनुष्य द्वारा बनाए गये रूप इस भवन जैसी चीजें हैं। देवताओं द्वारा बनाए गये रूप हैं : पानी, चट्टानें, मिट्टी, हवा, धातुएँ, पौधे, पशु और मनुष्य, साथ ही आकाश में तारे और पृथ्वी। मनुष्य केवल कणों की इस परत से बने आयाम के भीतर से संसार को देख रहा है, और इस बहुत ही संकीर्ण आयाम के भीतर से ब्रह्मांड को देख रहा है। मनुष्य के मन में जो स्वर्ग और पृथ्वी हैं, वे सच्चे स्वर्ग और पृथ्वी नहीं हैं। पृथ्वी, वायु की तरह, अणुओं से बनी है, इसलिए देवताओं की दृष्टि में, यह सब पृथ्वी है। सूक्ष्म जगत के स्तर से देखें तो इस स्तर के कणों से बना आयाम वास्तव में पृथ्वी है, जबकि अधिक सूक्ष्म कणों से बना लोक ही वास्तविक स्वर्ग है।

कुछ समय पहले मैंने कहा था कि भारतीयों की रचना बुद्ध ने की थी। जिस प्रकार से वे बात करते हैं और आचरण करते हैं, वह बुद्ध जैसा ही है। अतीत में यह समानता और भी अधिक थी। आधुनिक समाज में जातीयता के मुद्दों के कारण चीजें थोड़ी उलझ गयी हैं। अरबी और चीनी भारत के करीब हैं, इसलिए हाल के समय में भारतीयों का एक बड़ा भाग मिश्रित जातीयता का है। अतीत में भारतीय जातीयता बहुत शुद्ध थी। आप देख सकते हैं कि मैंने भारतीय जातीय नृत्य का वर्णन कैसे किया है। उनके हाथ की मुद्राएँ और क्रियाएं बुद्ध की मुद्राओं और क्रियाओं से बहुत मिलती-जुलती हैं। मुझे वे बहुत, बहुत समान लगते हैं। (तालियाँ)

शिष्य: रूस में हाल ही में पर्यटकों पर आतंकवादी हमलों की कई घटनाएँ हुई हैं, इसलिए बहुत से लोग मुख्यभूमि चीन में हो रहे आतंकवादी-शैली के दमन के बारे में सुनना नहीं चाहते हैं।

गुरूजी: यह भी हस्तक्षेप का एक रूप है। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता—सच्चाई को वैसे ही स्पष्ट करें जैसे आप सामान्य रूप से करते हैं। [दुष्टता] आपके साथ हस्तक्षेप करने का प्रयास करने पर तुली हुई है। लेकिन, इसे अपने साथ हस्तक्षेप न करने दें, और बस वही करते रहें जो आप सामान्य रूप से करते हैं। यह अभी कठिन है, लेकिन यह लंबे समय तक कठिन नहीं रहेगा।

शिष्य: चीनी अक्षरों के सुधार के संबंध में, क्या यह केवल दाफा पुस्तकों के साथ किया जाना चाहिए? चूँकि मीडिया का काम...

गुरूजी: जब आप साधारण लोगों के लिए लेख लिखते हैं, तो उनमें अक्षरों को न बदलें। यदि साधारण लोग उन्हें समझ नहीं पाते, तो यह एक समस्या होगी, है न? इन चीजों को अभी साधारण मामलों में सम्मिलित न करें।

शिष्य: मेरे बुरे विचार-कर्म हैं। मैंने इसे हमेशा स्वीकार करने से इनकार कर दिया है और मैं इससे छुटकारा पाने का प्रयास कर रहा हूँ। लेकिन बहुत समय बीत चुका है और मैं अभी भी इससे छुटकारा पाने में सफल नहीं हुआ हूँ। मैं यह पहचानने में सक्षम हूँ कि यह मैं नहीं हूँ।

गुरूजी: यदि यह वास्तव में कुछ बुरा है, तो इसे हटा दें। कोई और तरीका भी हो सकता है जिसका अच्छा परिणाम हो सकता है, और यह आवश्यक नहीं कि इसे संभालने का कोई चरम तरीका अपनाया जाये। आप यह विचार कर सकते हैं : "ब्रह्मांड के फा-सुधार के दौरान, मैं आपमें से उन लोगों के लिए एक उचित व्यवस्था कर सकता हूँ जो मेरे फा के मान्यकरण करने में हस्तक्षेप नहीं करेंगे; मैं आपको भविष्य के प्राणी बना सकता हूँ। आपमें से जो लोग एक परोपकारी समाधान चाहते हैं, उन्हें मुझे छोड़ देना चाहिए और मेरे निकट प्रतीक्षा करनी चाहिए। यदि आप वास्तव में मुझे नहीं छोड़ सकते हैं, तो मेरे साथ हस्तक्षेप करने में कोई भूमिका न निभाएँ। भविष्य में मैं फल पदवी प्राप्त करने में सक्षम हो जाऊँगा, और मैं आपको एक परोपकारी समाधान प्रदान करूँगा। जो लोग पूर्ण रूप से बुरे हैं, जो अभी भी मेरे साथ हस्तक्षेप करते हैं और जिन्हें नहीं रहना चाहिए, उन्हें मानकों के अनुसार, हटाना होगा। यदी मैं आपको नहीं भी हटाता हूँ, ब्रह्मांड का नियम आपको रहने नहीं देगा।" यदि आपके मन में यह विचार है, तो यह उन अत्यंत निम्न-स्तर के कुछ प्राणियों के प्रति बहुत ही करुणामयी होना है, और उन्हें हटाना सरल हो जायेगा जो अभी भी हस्तक्षेप करते हैं।

ब्रह्मांड के फा-सुधार के मानक हैं। यदि आप इसे इस प्रकार से करते हैं तो किसी के पास आपको चुनौती देने का कोई कारण नहीं होगा। सिद्धांत स्पष्ट हैं, क्योंकि जिन्हें हटाया जाना चाहिए उन्हें हटाया जाना चाहिए। और हाँ, जब कई निम्न-स्तरीय चीजों की बात आती है तो आप उन्हें पूर्ण रूप से हटा सकते हैं—सिद्धांतों के संदर्भ में इसमें कोई समस्या नहीं है। लेकिन जब आप इसे वैसे ही संभालते हैं जैसा मैंने अभी बताया है, तो कोई भी प्राणी आपत्ति नहीं कर सकता है। जो बुरे काम करना जारी रखते हैं, उनके पास कोई बहाना नहीं बचेगा, और जो कुछ भी किया जाना चाहिए वह किया जाएगा। (तालियाँ)

शिष्य: आपके फा के उपदेशों का अनुवाद करते समय, कुछ शिष्यों को लगता है कि इसे मूल पाठ के अनुसार शब्दशः किया जाना चाहिए, और कुछ को लगता है कि अनुवाद विदेशी भाषा की प्रथाओं के अनुरूप होना चाहिए।

गुरूजी: मुझे लगता है कि कुछ एशियाई भाषाओं को छोड़कर, जहाँ यह काम कर सकता है, शब्दशः अनुवाद करना इतना सरल नहीं हो सकता है; ऐसा विशेष रूप से पश्चिमी भाषाओं के साथ है। समान अर्थ वाले शब्दों का उपयोग करके सबसे सतही विचारों का अनुवाद करना ठीक है। अनुवाद को यथासंभव मूल अर्थ के अनुरूप बनाना काफी अच्छा है। अनुवाद के साथ ये प्रश्न अक्सर आते हैं। अनुवाद सतही अर्थ के बहुत निकट होना चाहिए, और यह ठीक रहेगा।

दूसरी बात यह है कि कुछ लोगों को लगता है कि अनुवादों को अधिकतर मौखिक भाषा जैसा करना बेहतर है। उदाहरण के लिए अंग्रेज़ी को ही लें। एक पुस्तक का अनुवाद पूर्ण रूप से मौखिक शैली में किया गया था। कुछ लोगों का कहना है कि इस प्रकार का अनुवाद लोगों के लिए समझना सरल होता है। निश्चित ही, ऐसा करने में कुछ भी अनुचित नहीं है, लेकिन मुझे लगता है कि मानक संरचना और शब्दावली का उपयोग करने के साथ-साथ अनुवाद को यथासंभव मूल अर्थ के अनुरूप करना सबसे अच्छा है। अंग्रेज़ी और उस भाषा के विद्वान शायद ऐसी स्थानीय भाषा को स्वीकार न कर पाएँ जो किसी एक क्षेत्र के लिए बहुत अधिक विशिष्ट हो। यदि आप मानक संरचना और शब्दावली का उपयोग करते हैं, तो हर कोई इसका अध्ययन कर सकता है और हर कोई इसे पढ़ सकता है। इस बात की चिंता न करें कि लोग इसे समझ नहीं पाएँगे। क्या हमारे पास पहले से ही बहुत सारे अंग्रेज़ी बोलने वाले शिष्य नहीं हैं? क्या वे सभी इसे नहीं समझते? यह कोई समस्या नहीं है।

आप एक फा सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं, लेकिन मैं सारा समय ले रहा हूँ—यह अच्छा नहीं है, है न? (तालियाँ बजती हैं जो दर्शाती हैं कि सब ठीक है) बहुत सारे अभिवादन हैं।

शिष्य: स्पेन, ऑस्ट्रिया, हंगरी, पुर्तगाल, वियतनाम, इंडोनेशिया, न्यूजीलैंड, फ्रांस, जापान, नीदरलैंड, बेल्जियम, जर्मनी, इटली, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, लातविया, आयरलैंड, सिंगापुर, ग्रेटर न्यूयॉर्क क्षेत्र, स्कॉटलैंड, लाओस, ईरान, रूस, भारत, चेक गणराज्य और दक्षिण अफ्रीका के सभी दाफा शिष्यों की ओर से गुरूजी को नमन!

गुरूजी: आप सभी का धन्यवाद। (तालियाँ) अभी और मुख्यभूमि चीन से भी हैं।

शिष्य: क्वांगडोंग, जियांगमेन, हेनान, झेंग्झौ, ज़ुझाउ, पिंगडिंगशान, शी-एन, हैनान, वेनचांग, तांगशान, जियामुसी, शेडोंग के हेज़, हार्बिन, हुनान, ह्वाइह्वा, शेडोंग, गाओतांग, हेबेई के पिंगशीयांग, शिनजियांग, सानहेयानजियाओ, तियानजिन, बीजिंग विश्वविद्यालय, सिंघुआ विश्वविद्यालय, चीनी विज्ञान अकादमी, शेडोंग के जिनान, शिजियाझुआंग, हुनान के लाईयांग, नानचांग, होंगडु, झेजियांग, फुयांग, निंगबो, चीचीहार, हुबेई, हांगकांग, शंघाई, क्वांगचो, लियाओनिंग, शानहाईगुआन, शेडोंग, गुआंग्शी, शेनयांग, हेफ़ेई, डांडोंग, यानजी, डालियान, झागजियांग, ग्वोजू, चोंगचिंग, चेंगडू, वुहान, जिनझोउ, युन्नान, मकाऊ, ज़ुहाई, लान्झू, हेबेई और जिलिन के सभी दाफा शिष्यों की ओर से गुरूजी को नमन!

गुरूजी: आप सभी का धन्यवाद। (तालियाँ) चूँकि यहाँ बहुत सारी प्रश्न-पर्चियां हैं, यदि मैं उन सभी को पढ़ूँगा, तो आज के फा सम्मेलन में मैं ही बोलता रहूँगा। (तालियाँ यह दर्शाती हैं कि वे चाहते हैं कि गुरूजी अपनी बात जारी रखें) मैं जितना संभव हो उतनी पढ़ूँगा। (तालियाँ)

शिष्य: हम दाफा शिष्यों के अनाथ बच्चों के लिए एक धर्मार्थ संस्था स्थापित करना चाहते हैं। क्या गुरूजी कृपया हमें इस बारे में कुछ परामर्श देंगे?

गुरूजी: यह एक अच्छी बात होगी, और आप ऐसा कर सकते हैं। मैं इस बारे में हमेशा से सोचता रहा हूँ। कुछ दाफा शिष्यों के दमन के कारण मारे जाने के बाद, उनके बच्चे बेघर हो गये और वे पालक घरों में रह रहे हैं। मैं इसके बारे में कुछ नहीं कर सकता, इसलिए मैंने सोचा कि हम उनके नाम एकत्र कर सकते हैं और फिर उन्हें चीन से बाहर निकालने का कोई मार्ग निकाल सकते हैं। (तालियाँ) हम उनका पालन-पोषण करेंगे, और हम उनके लिए एक विद्यालय स्थापित कर सकते हैं। (तालियाँ)

शिष्य: मेरे सामने यह प्रश्न है : मैं कैसे जानूँ कि कौन सा प्रोजेक्ट मेरे लिए अधिक महत्वपूर्ण है और किस पर मुझे अधिक ध्यान देना चाहिए?

गुरूजी: यह आपको पता लगाना है। (श्रोता हँसते हैं) यह बहुत अधिक विशिष्ट प्रश्न है। गुरू से यह मत पूछिए, ठीक है?

शिष्य: कुछ वर्ष पहले एक शिष्य मनोविकृति से पीड़ित था और उसे अस्पताल में रहना पड़ा था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उसे कोई समस्या नहीं हुई है। अभी वह फा-मान्यकरण कार्य में भाग ले रहा है। क्या हमें उसे सुझाव देना चाहिए कि वह जितना संभव हो सके उतना कम लोगों के सामने आये, कम मिले जुले और पृष्ठभूमि में रहकर काम करे?

गुरूजी: यह एक अच्छा सुझाव है। यदि कुछ शिष्य स्वयं को अच्छी तरह से संभाल नहीं पाते हैं या फा सीखने से पहले मनोविकृति से पीड़ित थे, तो उनके लिए घर पर रहकर साधना करना उचित है। जब मैं फा सिखा रहा था, तो मैंने हमेशा कहा कि जो लोग मनोविकृति से पीड़ित हैं उन्हें व्याख्यान में आने की अनुमति नहीं है। जब [वे] लोग अभ्यास से जुड़े, तो मैं उनकी देखभाल करने लगा, और यदि वे घर पर भी अध्ययन करते हैं, तब भी मैं उन्हें बचाऊंगा। लेकिन उन्हें व्याख्यान में आने की अनुमति नहीं थी। हमें दाफा शिष्यों के उस साधना वातावरण की रक्षा करने और हस्तक्षेप को रोकने की आवश्यकता थी, और इसीलिए मैंने गंभीर रूप से बीमार रोगियों या मनोविकृति से पीड़ित लोगों को व्याख्यान में भाग लेने की अनुमति नहीं दी। जो शिष्य मनोविकृति से ग्रस्त थे, वे कुछ ऐसी चीजें कर सकते हैं जो पृष्ठभूमि में होती हैं, और जब सत्य स्पष्टीकरण करने की बात आती है तो यह उचित है कि वे कम या कुछ भी नहीं करते हैं।

शिष्य: दाफा, शिष्यों से अपेक्षा करता है कि वे हत्या और आगजनी जैसी घटनाओं को चुपचाप बैठकर न देखें और अनदेखा न करें। मुख्यभूमि चीन में शिष्य अभी अपनी जान गंवा रहे हैं। मैं केवल घर पर बैठकर चुपचाप प्रतीक्षा नहीं कर सकता। मैं लोगों को यह बताने के लिए तियाननमेन चौक जाना चाहता हूँ कि "फालुन दाफा महान है" और दाफा ने मेरी जान बचायी है।

गुरूजी: अभी भी वहाँ बहुत दुष्टता है। जबकि आप मुख्यभूमि चीन के शिष्यों का दमन किये जाने पर चुपचाप बैठकर नहीं देख सकते, मैं नहीं चाहता कि आपका भी दमन हो। दमन को रोकने के लिए सत्य स्पष्टीकरण करने पर अधिक परिश्रम करें। आपके गुरू के रूप में, मुझे सबसे पहले आपकी सुरक्षा के बारे में सोचना होगा। (तालियाँ)

शिष्य: जब हम कलाकृती बनाते हैं, तो हमें आज के लोगों द्वारा स्वीकार की जाने वाली कला और भविष्य में लोगों द्वारा पसंद की जाने वाली कला के बीच संतुलन कैसे बनाना चाहिए और उचित तरीके से काम कैसे करना चाहिए? क्या हम नई कला की स्थापना कर रहे हैं?

गुरूजी: आपको दाफा शिष्यों द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक प्रदर्शनों को अधिक सद्गुणी और बेहतर बनाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए। एक कलात्मक उत्पादन क्या दर्शाता है यह केवल विषय वस्तु का प्रश्न है, जबकि उत्पादन की कलात्मकता और गुणवत्ता साधारणतः इस बात के लिए महत्वपूर्ण होती है कि दर्शक ग्रहण करने योग्य हैं या नहीं।

शिष्य: मैं निराशा में डूबने की प्रवृत्ति रखता हूँ। मुझे लगता है कि मेरे जीवन में सबसे दुखदायक चीज अकेलापन है, क्योंकि मेरे पास परिवार का साथ नहीं है। मुझे अपने ऊपर अकेलेपन की भावना के छाए बादल से छुटकारा पाना कठिन लगता है। मुझे इस समस्या को कैसे देखना चाहिए? क्या यह मेरे पिछले कर्मों के कारण है, या क्या यह कुछ ऐसे कारक हैं जिनसे मुझे अपनी साधना के दौरान छुटकारा पाने की आवश्यकता है?

गुरूजी: यदि यह कर्म या हस्तक्षेप है, तो इसे हटा दें। एक जीवित प्राणी के रूप में, अब आपके पास वह उत्साह क्यों नहीं है जो आपको शुरू में दाफा प्राप्त करने पर था, इस दाफा को प्राप्त करने पर गर्व, और यह भावना कि आपके पास कुछ ऐसा है जो दूसरों को नहीं मिल सकता? क्या आप अब परिश्रमी नहीं हैं? क्या ऐसा ही है? या, चाहे आप अपनी भावनाओं पर विचार करने के लिए सत्य का स्पष्टीकरण करने में बहुत व्यस्त थे, ऐसा इसलिए होगा क्योंकि आप दाफा के काम कर रहे थे या चेतन प्राणियों को बचाने का काम कर रहे थे। आपको अकेलापन क्यों अनुभव होता है? यदि आप चेतन प्राणियों को बचाने के लिए काम करते हैं और वे काम करते हैं जो एक दाफा शिष्य को करने चाहिए, तो आप निश्चित रूप से ऐसा अनुभव नहीं करेंगे। यदि आप फा का अध्ययन कर रहे होते और लगन से साधना कर रहे होते, तो क्या आप ऐसा अनुभव कर सकते थे? केवल जब आप लगन से काम नहीं करते, तभी आपको उन साधारण मानवीय भावनाओं पर विचार करने का समय मिलेगा, है न? (तालियाँ)

शिष्य: एक साथी साधक अभी मुझे आर्थिक सहायता कर रहा है, जिससे मैं न्यूयॉर्क में रहकर दाफा का और अधिक कार्य कर पा रहा हूँ। मुझे नहीं लगता कि दूसरों की सहायता स्वीकार करनी उचित है। गुरूजी, क्या मेरी समझ उचित है?

गुरूजी: हाँ, मुझे लगता है कि चूँकि सभी दाफा शिष्य स्वयं को समर्पित कर रहे हैं और आप भी स्वयं को समर्पित कर रहे हैं और सत्य को स्पष्ट कर रहे हैं, यदि आप अन्य लोगों के आर्थिक योगदान पर निर्भर हैं, तो क्या आप सशर्त काम नहीं कर रहे हैं? यदि दूसरे आपकी सहायता नहीं करते, तो क्या आप काम नहीं करते? जब हम दूसरों से लेते हैं, तो क्या हमें ऋण से ग्रस्त होने की भावना नहीं होती? क्या हम इसे उचित मानते हैं? अवश्य ही, कुछ विशेष परिस्थितियाँ होती हैं, और हम इसके बारे में कठोर नहीं हो सकते। यह समझ में आता है जब शिष्य जिनके पास अपना स्वयं का व्यवसाय है वे अधिक देते हैं और शिष्यों के कुछ परियोजनाओं का समर्थन करते हैं। लेकिन सामान्य परिस्थितियों में मुझे नहीं लगता कि यह उचित है। यहाँ तक कि जब यह सत्य के स्पष्टकरण करने जैसे कामों के लिए होता है, तो मुझे नहीं लगता कि यह उचित है। यदि आप यहाँ लंबे समय तक रहते हैं, तो नौकरी ढूँढ़ें और अपने खाली समय में [दाफा] चीजें करें—यह भी चलेगा। किसी भी प्रकार, अंततः आपको अपनी वित्तीय स्थिति को स्वयं ही सुलझाना होगा। आप अपने भरण-पोषण के लिए किसी और पर निर्भर नहीं रह सकते—यह एक समस्या होगी।

मैं इस बारे में फा के सिद्धांतों के संदर्भ में बात कर रहा हूँ। वास्तव में, निरीक्षण करने वाले देवता आप पर दृष्टि गड़ाए हुए हैं, इसलिए आपको लोगों से ऋण नहीं लेना चाहिए। यदि परिस्थितियाँ वास्तव में अनुकूल नहीं हैं, तो घर पर अन्य दाफा-शिष्य वाले कार्य करें। मैंने जो कहा वह यह था कि जिनकी परिस्थितियाँ अनुकूल हैं वे सत्य का स्पष्टकरण करने के लिए यहाँ रह सकते हैं। यदि आपकी परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं हैं, तो अपने घर वापस जाएँ और वहाँ सत्य-स्पष्टीकरण कार्य करें, जो कि एक ही बात होगी।

शिष्य: क्या आप कृपया उस घृणित जियांग के विदेशी गिरोह के कुछ सदस्यों के बारे में बात कर सकते हैं जो चीन के बाहर चीनी लोगों के मन में विष भर रहे हैं?

गुरूजी: ये बातें हमारे फा सम्मेलन में चर्चा के योग्य नहीं हैं। एक व्यक्ति जो भी मार्ग अपनाता है उसके परिणामों के लिए वही उत्तरदायी होता है। उन लोगों ने जो मार्ग चुना वह उनका अपना चुनाव था। यहां तक कि जब, आपकी सहायता से, उन्हें चीजों का एहसास होता है, तब भी उन्हें अपना ऋण चुकाना पड़ता है। एक व्यक्ति को अपने किये का मूल्य चुकाना पड़ता है। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो इसकी बिल्कुल भी अनुमति नहीं है। हालांकि, विष फैलाकर उन्होंने कितने लोगों को हानि पहुंचायी है, इस बारे में सोचें। यह पाप पर्वतों और आकाश जितना बड़ा है, इसलिए वे इसका भुगतान नहीं कर सकते, क्योंकि उन्होंने बहुत से लोगों के मन में विष भर दिया है। इसलिए यदि कोई मीडिया आउटलेट बुरा काम करता है, तो उसका पाप बहुत बड़ा है; मैं दाफा को हानि पहुंचाने के सन्दर्भ में बात कर रहा हूँ।

शिष्य: पोलैंड के शिष्य मुख्यभूमि चीन के शिष्यों की किस प्रकार सहायता कर सकते हैं? पोलैंड के दाफा शिष्यों की ओर से आदरणीय गुरूजी को नमन!

गुरूजी: धन्यवाद! (तालियाँ) पोलैंड के दाफा शिष्यों के संबंध में, मुझे लगता है कि आप चाहे जहाँ भी हों, आप सत्य को स्पष्ट कर सकते हैं, और यदि आपके पास समय है तो आप इसे अन्य क्षेत्रों में भी कर सकते हैं। यह सब ठीक है, और इससे मुख्यभूमि चीन के शिष्यों को सहायता मिलती है। अभी मुख्यभूमि चीन के बाहर के शिष्यों ने कुछ हद तक [चीन में] बेहतर स्थिति बनायी है और [वहाँ] दुष्टता को प्रभावी ढंग से रोका है। और साथ ही, वे वहाँ के शिष्यों को यह एहसास दिलाने में सहायता कर रहे हैं कि उन्हें आगे आना चाहिए और ऐसा करने का महत्व समझना चाहिए। ऐसी कई प्रकार की चीजें हैं जो आप कर सकते हैं, और यदि आपके पास दूसरे सुझाव हैं, तो वह भी ठीक है।

हालाँकि, जहाँ तक उन्हें धन भेजने की बात है, तो ऐसा न करें। हो सकता है कि धन उन तक न पहुँचे, और वे भी साधना कर रहे हैं। यदि धन बहुत अधिक हो जायेगा, तो उनके मानवीय विचार जाग सकते हैं और उसके कारण वास्तव में मोहभाव की ओर ले जा सकते हैं। वे एक दुष्ट वातावरण में हैं, और कुछ क्षेत्रों में यह वास्तव में कठिन है। लेकिन जब तक वे स्वयं को अच्छी तरह से संभालते हैं, गुरू उन सभी का ध्यान रखेंगे। उन्हें अपने मार्ग पर चलने की आवश्यकता है। गुरू हर चीज को ध्यान में रखते हैं; ये चीजें मौलिक समस्याएँ नहीं हैं।

शिष्य: जब कुछ शिष्यों ने फा प्राप्त किया तो वे फा से प्राप्त चीजों को उचित प्रकार से नहीं समझ पाए और स्वयं के साथ कड़े नहीं थे। परिणामस्वरूप, उनके हानिकारक व्यवहार ने उनके आस-पास के नए शिष्यों को प्रभावित किया और उन शिष्यों में साधना करने की इच्छा समाप्त हो गयी। क्या उन लोगों को बचाया जा सकता है? और क्या उन्हें प्रभावित करने वाले शिष्य उनके द्वारा पहुंचायी गयी हानि की भरपाई कर सकते हैं?

गुरूजी: जब भी कोई शिष्य ऐसा करता है कि दूसरों को नहीं बचाया जा सके, तो यह बहुत गंभीर मामला है। एक साधक के रूप में, आप चेतन प्राणियों को केवल बचा सकते हैं, आप उन्हें नष्ट नहीं कर सकते। मानव संसार में आप एक देवता बनने में सक्षम हैं, और मानव संसार में आप दूसरों को नष्ट करने में सक्षम हैं। ये समान परिमाण की चीजें हैं, इसलिए आप इसके महत्व को अनदेखा नहीं कर सकते। जहाँ तक साधना शुरू करने से पहले आपके ऊपर ऋण का प्रश्न है, वे चीजें अलग कर दी गयी हैं, और वे एक अलग मामला है। फिर साधना के दौरान आप जो करते हैं वह बहुत विशाल है। यदि आप वास्तव में किसी को नष्ट, उद्धार के अयोग्य, या यहाँ तक कि भविष्य के लिए असमर्थ बनाते हैं, तो यह आपको हमेशा के लिए दिव्य बनने से रोक देगा। यह इतना गंभीर है। इसलिए बहुत, बहुत ध्यान रखें कि आप ऐसा कुछ न करें।

निश्चित ही, जानबूझकर और अनजाने में की गयी चीजों को भिन्न-भिन्न तरीके से देखा जा सकता है, लेकिन क्या हम यहां चेतन प्राणियों के लिए नहीं आये हैं? जब आपका नकारात्मक प्रभाव गंभीर हानि पहुंचाता है, तो चेतन प्राणियों को बचाने के आपके पवित्र विचारों को क्या हुआ था? आपने यह क्यों नहीं सोचा कि दूसरे क्या अनुभव करेंगे? क्या आप एक पवित्र फा के पवित्र ज्ञानप्राप्त प्राणी बनने के लिए साधना नहीं कर रहे हैं, एक ऐसा प्राणी जो दूसरों के हितों को अपने से पहले रखता है और दूसरों को पहले मानता है? जब आपका दूसरों के साथ टकराव होता है तो इसका प्रभाव नए शिष्यों पर पड़ता है, तो आपने नए शिष्यों के सामने ऐसा क्यों किया? आपने दूसरों के बारे में नहीं सोचा और क्या आप आत्म-केंद्रित नहीं हो रहे थे? अवश्य ही, शायद यह अनजाने में हुआ था, लेकिन क्या इसके प्रभाव ने नये शिष्यों को दूर नहीं कर दिया?

बहुत सी चीजों के बारे में आपको अधिक सावधान रहना चाहिए, और आपको उन चीजों की भरपाई करनी चाहिए जिन्हें आपने पहले ठीक से नहीं संभाला था। बस यह मत सोचिए, "वह एक नया शिष्य है, वह इसलिए आया क्योंकि हमने फा का प्रसार किया, और यदि वह अभ्यास नहीं करना चाहता तो वह जा सकता है।" इसे इस प्रकार से न देखें। आप जानते हैं, फा का प्रसार करने के आपके प्रयास केवल परिस्थितियाँ प्रदान करते हैं, जबकि उसे स्वीकार किया जाता है या नहीं यह गुरू पर निर्भर करता है। यह गुरू ही हैं जो वास्तव में उसे लाये हैं, इसलिए यदि आप उसे भगा देते हैं तो यह कोई साधारण बात नहीं है। इसके अतरिक्त, एक बार जब कोई दाफा सीख लेता है, तो वह दाफा का शिष्य बन जाता है, और उसके लिए बहुत सी चीजें की जानी होती हैं। जब उसके लिए बहुत सी चीजें की जाती हैं और फिर भी वह अभ्यास करना बंद कर देता है, तो क्या आपको आगे के परिणामों की कोई कल्पना है?

शिष्य: यदि प्राचीन शक्तियों द्वारा दमन नहीं हुआ होता, तो आपने हमारे लिए जो साधना मार्ग पहले व्यवस्थित किए थे, वे किस प्रकार के होते?

गुरूजी: चीजें घटित हो चुकी हैं और स्थिति बदल गयी है, तो उसके बारे में क्यों पूछना?

शिष्य: क्या हम अपने पवित्र विचारों और पवित्र कार्यों से, फा द्वारा मानव जगत के सुधार से पहले दमन को समाप्त कर पाएंगे?

गुरूजी: सच तो यह है, दाफा शिष्यों, फा-सुधार का समर्थन करने में, आपके पवित्र विचारों और पवित्र कार्यों ने दमन को पहले ही अंत के निकट ला दिया है। (तालियाँ) इसके बारे में सोचिये, दुष्ट प्राणियों ने अब काफी हद तक हार मान ली है। यदि आप शक्तिशाली नहीं होते, यदि आपने अच्छा नहीं किया होता, तो वे आपको क्यों छोड़ देते? जब कुछ शिष्य उनके हाथ लग जाते हैं, तो दुष्ट लोग अब उनका उतने बुरे प्रकार से दमन करने का साहस नहीं करते। क्यों नहीं? क्या यह इसलिए नहीं है कि उन्हें डर है कि दाफा शिष्य बाद में उन्हें न्याय के कटघरे में लाएँगे? क्या यह इसलिए नहीं है कि दाफा शिष्यों का दमन करने वाले दुष्ट लोग चाहे जहाँ भी भागने का प्रयास करें, अंततः उनका पता लगा लिया जाएगा? यदि इस दमन के दौरान दाफा शिष्यों को पीटा गया होता और उन्होंने निर्बल होकर सब छोड़ दिया होता, तो क्या दुष्ट लोग डर जाते? वे [दुष्टता करने के बारे में] संकोच नहीं करते। आप जो काम कर रहे हैं, वे आज दुष्टता को चौंका और डरा सकते हैं, दुष्टता को बहुत कम कर सकते हैं और उसे रोक सकते हैं, दुष्टता को भयभीत कर सकते हैं और उसकी दमन जारी रखने की शक्ति घटा सकते हैं, और अंततः इस दुष्ट दमन को समाप्त करने के लिए विवश कर सकते हैं। यही वह है जो दाफा शिष्य इस समय कर रहे हैं, इससे पहले कि फा मानव संसार का सुधार करे, और यह अद्भुत है।

शिष्य: कुछ शिष्य सामूहिक अध्ययन या अभ्यास में भाग नहीं लेते हैं। क्या वे शिष्य संकट में हैं? हम उन्हें उनके डर से छुटकारा पाने में कैसे सहायता कर सकते हैं?

गुरूजी: मुझे लगता है कि नए शिष्यों के साथ, आपको बहुत शीघ्रता नहीं करनी चाहिए। उनके लिए अपना समय लेना ठीक है। लेकिन आपको उन्हें सामूहिक अध्ययन सत्रों में भाग लेने का सुझाव देने का पूरा प्रयास करना चाहिए, क्योंकि सामूहिक अध्ययन का वातावरण एक-दूसरे को बेहतर बनाने में आपकी सहायता करने के लिए अपरिहार्य है, यह आवश्यक है। क्यों, पहले, मैंने लोगों से उन्हें आयोजित करने के लिए कहा था? क्योंकि इस फा द्वारा अपनाई जाने वाली साधना का स्वरूप यह निर्धारित करता है कि इसे इस प्रकार से किया जाना चाहिए। अतीत में लोगों को साधना करने के लिए सांसारिक जगत क्यों छोड़ना पड़ा? वे जानते थे कि एक समस्या थी : जब वे सांसारिक जगत में वापस आये और साधारण लोगों के साथ घुले मिले, तो वे साधारण लोगों के जैसे हो गये और दृढ़ नहीं रह सके। इसके अतरिक्त, वे अपनी सह आत्माओं की साधना करते थे। यही कारण है कि उन्होंने सांसारिक जगत को छोड़ दिया और स्वयं को एक साथ समूहबद्ध कर लिया। साधक एक दूसरे की उन्नति में सहायता कर सकते थे और देख सकते थे कि वे दूसरों की तुलना में कैसे हैं, उनके पास हमेशा साझा करने के लिए ऐसी चीजें होती थीं जो साधकों के लिए विशिष्ट होती थीं, और उन्होनें साधकों के लिए एक वातावरण बनाया।

उस वातावरण के बिना, फिर... इसके बारे में सोचें, आज के दाफा शिष्यों के साथ भी ऐसा ही है : जब आप सधारण समाज में वापस जाते हैं, तो आप सधारण समाज के वातावरण में होते हैं। यदि आप दिन का सदुपयोग [साधना करने के लिए] नहीं करते हैं, तो आज शायद आपका पढ़ने का मन हो सकता है और इसलिए आप थोड़ा पढ़ते हैं, लेकिन कल आप शायद आलस के कारण और कम पढ़ सकते हैं... इसलिए उस वातावरण के बिना दृढ़ बने रहना कठिन है। आखिरकार, यह मनुष्य ही हैं जो साधना कर रहे हैं। इसलिए मानवीय आलस्य और इस संसार में लोगों को प्रभावित करने वाले सभी प्रकार के विघ्नों के साथ, आपके लिए यह देखना बहुत कठिन है कि आपमें कहाँ कमी रह गयी है। और विशेष रूप से, यदि इसके अतरिक्त आप दृढ़ नहीं हैं, आप पुस्तक को बहुत अधिक नहीं पढ़ते हैं, या आप फा को बहुत अच्छी तरह से नहीं समझते हैं, तो आप अपने मोहभावों को बिल्कुल भी नहीं देख पाएंगे। इसलिए आपको सामूहिक अध्ययन और अभ्यास में भाग लेना चाहिए।

अभी हम ऐसे समय में हैं जब दमन हो रहा है, इसलिए ऐसे कई कारण हैं कि शिष्य सामूहिक रूप से अभ्यास नहीं कर सकते हैं, या हमेशा नहीं कर सकते हैं। भविष्य में आप निश्चित रूप से सामूहिक अभ्यास कर पाएँगे। मुख्यभूमि चीन के बाहर कई वरिष्ठ शिष्य फा का मान्यकरण करने के लिए बहुत सी चीजें करने में व्यस्त हैं। लेकिन, नए शिष्यों के लिए, अनुभवी शिष्यों को उनके लिए ऐसा वातावरण बनाना चाहिए जिससे वे फा का अध्ययन कर सकें और एकसाथ व्यायाम कर सकें।

शिष्य: (अनुवादित प्रश्न) मैं एक पश्चिमी शिष्य हूँ। आदरणीय गुरूजी, क्या आप पश्चिमी शिष्यों को आगे आने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कुछ कहेंगे? बहुत सी दाफा परियोजनाओं को अभी अंग्रेज़ी बोलने वाले शिष्यों की आवश्यकता है।

गुरूजी: यह सच है कि उन्हें परिश्रमी होना चाहिए। मैं सोच रहा था कि दाफा शिष्यों द्वारा संचालित [चीनी] इपोक टाइम्स समाचार पत्र का चीनी समुदाय पर काफी बड़ा प्रभाव पड़ा है। वास्तव में, इपोक टाइम्स समाचार पत्र पहले से ही संसार का सबसे बड़ा मीडिया आउटलेट है; यह पूरे संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई देशों में फैला हुआ है। मैंने इसे अमेरिका के छोटे शहरों में भी देखा है। यह बहुत बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है, और साथ ही इसका वेब संस्करण भी है। लेकिन, यह केवल चीनी लोगों तक ही पहुँचता है। मुख्यभूमि चीन से परे, वास्तविक मुख्यधारा का समाज, समाज का प्रमुख भाग... उदाहरण के लिए, अमेरिका एक अंग्रेज़ी बोलने वाला समाज है, और अधिकतर लोग वह भाषा ही बोलते हैं। तो हमारे पास ऐसा प्रकाशन क्यों नहीं हो सकता जो उन्हें सच्चाई स्पष्ट करे? केवल मौखिक रूप से सत्य को स्पष्ट करने पर निर्भर रहने की अपनी सीमाएँ होती हैं। और यदि ऐसा संभव भी हो, तो भी हमें लोगों को सत्य को बेहतर ढंग से समझने में सहायता करने के लिए कुछ अन्य तरीके जोड़ने का यथासंभव प्रयास करना चाहिए। क्या यह बेहतर नहीं होगा? इसलिए मैं सोच रहा था कि जब भी आप जो द इपोक टाइम्स चला रहे हैं उसका अंग्रेजी संस्करण वास्तव में शुरू हो जाएगा, तो यह सबसे बड़ी बात होगी। और वास्तव में, यही बात अन्य देशों पर भी लागू होती है। (तालियाँ)

मुख्यधारा के समाज के कई मीडिया आउटलेट्स के चीन के साथ व्यापारिक संबंध हैं, और कुछ प्रबंधकों और संपादकों को चीन के दुष्ट गुंडों के गिरोह ने खरीद भी लिया है। आज के समय में, इतना गंभीर दमन हो रहा है—इतनी महत्वपूर्ण बात—फिर भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इसको अनदेखा कर देता है। क्या यह विचित्र नहीं है? क्या यह स्वीकार्य है? यह एक अपराध है! गुंडों का यह गिरोह बहुत ही दुष्ट है। यदि दाफा शिष्यों की स्थानीय मीडिया में उपस्थिति हो, तो शायद ये समस्याएं हल हो जाएं। लेकिन यदि ये मीडिया आउटलेट [जिनमें हम सम्मिलित हैं] अच्छा प्रभाव प्राप्त करना चाहते हैं, तो उन्हें मानव और भौतिक संसाधनों की चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है, जिसका अर्थ है कि उन्हें अपने कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है। तो इस दृष्टिकोण से, वर्तमान में सम्मिलित पश्चिमी शिष्यों की संख्या वास्तव में आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर रही है। सम्मिलित शिष्य भी इस बारे में चिंतित हैं।

निश्चित ही, धीरे-धीरे सब कुछ बेहतर होता जाएगा। नए शिष्य सम्मिलित होंगे; नए शिष्य जुड़ेंगे जो समय के साथ फा को समझेंगे और सम्मिलित होंगे। सब कुछ बेहतर होता जाएगा। चीनी भाषा के समाचार पत्र की स्थिति भी पहले ऐसी ही थी। वे कम कर्मचारियों से लेकर अधिक लोगों तक, न जानने से लेकर जानने तक, अपरिचित से लेकर परिचित होने तक, अपरिपक्व होने से लेकर अंततः परिपक्व होने तक पहुँच गये। इसलिए मुझे लगता है कि जब नए शिष्यों की बात आती है जो फा के अनुसार स्वयं की साधना कर सकते हैं, तो आप उन्हें अधिक चीजों में सम्मिलित कर सकते हैं। लेकिन, यदि वे अभी भी फा के अनुसार चीजों को नहीं समझ सकते हैं, तो आप वास्तव में उन्हें सम्मिलित नहीं कर सकते, क्योंकि वे बहुत सी चीजों को नहीं समझ पाएंगे और उन्हें अभी तक यह एहसास नहीं है कि हमें ही फा का मान्यकरण करने के लिए चीजें करनी हैं। यह चेतन प्राणियों को बचाने का एक और तरीका है, इसलिए यदि हम ऐसा नहीं करेंगे, तो कौन करेगा?

जब कोई नया शिष्य समझ नहीं पाता है, तो यह उस पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है या उसे बर्बाद कर सकता है। इसलिए आपको उस पक्ष पर विचार करना चाहिए। उन्हें बताएं कि हम जो काम कर रहे हैं, वह चेतन प्राणियों को बचाता है, तथ्यों को स्पष्ट करता है और दमन को उजागर करता है। मुझे लगता है कि प्रत्येक अनुभवी शिष्य भी कभी नया शिष्य था। धीरे-धीरे ये नए शिष्य भी परिपक्व हो जाएंगे।

शिष्य: जब भी मैं किसी कठिन परीक्षा या कसौटी से गुजरा हूँ, तो हर बार मैंने स्वार्थ से उपजे गंदे मोहभाव देखे हैं। मैंने इतने लंबे समय तक साधना की है, लेकिन मैंने अभी भी इसे पूर्ण रूप से नहीं हटाया है, जबकि फा-सुधार लगभग समाप्त होने वाला है...

गुरूजी: इसके बारे में चिंता ना करें। उन चीजों को हटाना परत दर परत किया जाता है, और इसीलिए वे सतह पर आती हैं। जब कुछ चीजों की बात आती है, यदि आप वास्तव में उन्हें नहीं कर सकते, तो गुरू आपके लिए उन्हें कर देंगे।

साधारण समाज एक बहुत बड़ा कलुषित प्रवाह है, और जैसे ही आप अपनी सतर्कता कम करते हैं, आपको उससे जंग लग जाती हैं। इसलिए आपको निरंतर साधना करनी चाहिए और दूषित होने का प्रतिरोध करना चाहिए। जैसे ही आप ढीले पड़ेंगे, यह आपके पीछे पड़ जाएगा। आप साधक हैं, और गुरू ने आपको वे चीजें रखने दी हैं जो आपको साधारण लोगों के बीच साधना करने में सक्षम बनाती हैं। यह एक कारण है [आपने जो वर्णन किया है उसके पीछे]—यह इसलिए है जिससे आप अपनी साधना में जितना संभव हो सके साधारण समाज के तरीके के अनुरूप बन सकें। हालाँकि, जब आप दृढ़ नहीं होते हैं, तो आपकी उन मानवीय चीजों का शोषण किया जाएगा। लेकिन साधक के रूप में आप अपनी साधना के माध्यम से निरंतर स्वयं को सुधारने और निरंतर बुरी चीजों से छुटकारा पाने में सक्षम हैं। हालाँकि, आपके पास अभी भी कुछ बचा हो सकता है। लेकिन, यह मत सोचिए कि आप अच्छी तरह से साधना करने में विफल रहे हैं, और इसे बोझ बनने तो बिलकुल भी ना दें। नहीं तो यह एक मोहभाव बन जाएगा। जब [बुरी चीजें] दिखें, तो उन्हें हटा दें। गरिमा और आत्मविश्वास से साधना करें, और उन चीजों को अपने कार्यों को प्रभावित न करने दें। जब वे आपके विचारों में प्रकट हों तो उन्हें समय-समय पर हटाते रहें।

शिष्य: जैसे-जैसे फा-सुधार का समय शीघ्रता से आगे बढ़ रहा है, [मुझे चिंता है कि] मेरे परिवार को सच्चाई स्पष्ट करना अभी भी बहुत कठिन है। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि उन्हें सच्चाई कैसे स्पष्ट की जाए।

गुरूजी: कुछ शिष्यों को अपने परिवार को सच्चाई स्पष्ट करना बहुत कठिन लगता है। मुझे लगता है कि अधिकतर मामलों में ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आप अभी भी उन्हें अपने परिवार के लोगों के रूप में देखते हैं और बाहरी संसार के लोगों से भिन्न प्रकार से व्यवहार करते हैं। आपको यह याद रखना चाहिए कि वे भी मानव संसार में चेतन प्राणी हैं, इसके स्थान पर कि आप उन्हें पहले अपना परिवार समझें। और आपको पता लगाना चाहिए कि उनके मन में क्या अनसुलझा है। एक बार जब आप उन चीजों को सुलझा लेते हैं तो सब कुछ हल हो सकता है। सामान्य परिस्थितियों में जब आप सच्चाई स्पष्ट करते हैं, तो लोग तुरंत फा सीखने लगेंगे इसके बारे में न सोचें और परिणाम बेहतर होंगे।

शिष्य: हालाँकि मुझे एहसास है कि हम सभी बहुत भाग्यशाली हैं, लेकिन कभी-कभी मैं दुखी हो जाता हूँ। क्या आप कृपया मुझे बताएँगे कि क्या ऐसा मेरे उस पक्ष के कारण होता है जो पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुआ है, या यह कर्म के हटाने, अर्थात कर्म का परिणाम है?

गुरूजी: वास्तव में, दुखी होना स्वाभाविक बात है। नए शिष्यों ने मानव संसार में कई धारणाएँ बनायी हैं, और उनकी धारणाएँ चीजों को भिन्न-भिन्न तरीके से देखती हैं। आपको एक चीज अच्छी लग सकती है, दूसरी बुरी, और इत्यादि—लोगों की भावनाएँ ऐसी ही होती हैं। ये मानवीय धारणाएँ हैं जो प्रतिक्रिया करती हैं। आपके साधना शुरू करते ही, आपकी धारणाएँ एक साथ समाप्त नहीं हो सकती हैं, इसलिए धारणाओं पर आधारित प्रतिक्रियाएँ आपकी भावनाओं को प्रभावित करेंगी, जो आपकी मनोदशा को दुखी या प्रसन्न बना देगी।

आपकी साधना में ऐसी चीजें होती हैं। धीरे-धीरे फा के बारे में आपकी समझ स्पष्ट होती जाएगी, आपके पवित्र विचार और अधिक शक्तिशाली होते जाएंगे, आप चेतन प्राणियों को अधिक से अधिक करुणा और दया की दृष्टि से देखेंगे, और चीजें बदल जाएंगी।

शिष्य: अब जबकि नया जुआन फालुन आ गया है, तो हमें उनके साथ क्या करना चाहिए जिनमें बिना सुधार किये गये [चीनी] अक्षर हैं, अर्थात पुराने जुआन फालुन? क्या हमें अभी भी उनका उपयोग करना चाहिए?

गुरूजी: यह पुस्तक है, यह फा है, और बस कुछ शब्दों के लिए... क्या आप केवल अक्षरों को सुधार नहीं सकते? क्या मैं सही हूँ? आप कुछ ऐसा नहीं कर सकते जो आपको नहीं करना चाहिए, है न?

शिष्य: पाँच हज़ार वर्ष प्राचीन चीनी संस्कृति ब्रह्मांड के विभिन्न ब्रह्मांडीय पिंडों की संस्कृतियों का [संयोजन] है। तो क्या पश्चिमी संस्कृतियाँ भी सदियों पहले के ब्रह्मांडीय पिंडों की संस्कृतियाँ हैं? क्या उनका सम्बन्ध दाफा के प्रसार के साथ हैं?

गुरूजी: पश्चिमी देवताओं ने पश्चिमी लोगों को बनाया। चाहे वे एशियाई हों या अन्य जातीयताएँ, वे सभी भिन्न-भिन्न देवताओं द्वारा बनाए गयी थी, इसलिए उनमें निश्चित रूप से उन प्रणालियों की विशेषताएँ हैं। जहाँ तक संस्कृति का प्रश्न है, आपको यह कहना चाहिए कि देवताओं ने मनुष्यों के लिए संस्कृतियाँ बनाईं, इसके स्थान पर कि वे संस्कृतियाँ स्वर्ग की संस्कृतियाँ हैं। यदि आप कहते हैं कि मैनहट्टन में गगनचुंबी इमारतें स्वर्ग में उपस्थित इमारतों जैसी ही हैं, तो यह सच नहीं है, क्योंकि वे आधुनिक विज्ञान द्वारा बनायीं गयी थीं, और आधुनिक विज्ञान परग्रहियों द्वारा लाया गया था। हाँ, चीन के विभिन्न राजवंशों की संस्कृतियों में स्वर्गीय राज्यों की विशेषताएँ थीं जिनसे कर्म संबंध बने। लेकिन, देवताओं ने इस मानव स्थान पर जो कुछ पीछे रह गया था, उसे विशिष्ट लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया, क्योंकि मानव इतिहास फा-सुधार का आधार बना रहा था। पश्चिमी संस्कृति एक सतही संस्कृति है जो मानव जाति के लिए तब बनायी गयी थी जब वे जीवित रहकर फा-सुधार की प्रतीक्षा कर रहे थे।

शिष्य: मुझे जेन, शान, रेन में लौटना बहुत कठिन लगता है। गुरूजी, क्या आप कृपया मुझे बता सकते हैं कि वास्तव में मूल स्तर पर मोहभावों को हटाने का क्या अर्थ है?

गुरूजी: आप एक नए शिष्य हैं, इसलिए चिंतित न हों। आप अपनी साधना प्रक्रिया के दौरान धीरे-धीरे कई चीजों को अनुभव कर पाएंगे और समझ पाएंगे। सबसे अच्छा तरीका है कि आप पुस्तक(ओं) को अधिक पढ़ें—आपको पुस्तक(ओं) को बार-बार पढ़ना होगा। गुरू जो आपको बता रहे हैं वह आपके लिए बहुत ही अच्छा है।

आपने देखा कि मुख्यभूमि चीन में मेरे द्वारा फा सिखाने के कुछ ही वर्षों में, 10 करोड़ लोग इसे सीखने लगे। चीन छोड़ने के बाद से मैंने प्रत्यक्ष रूप से अभ्यास या फा नहीं सिखाया है, और यह शिष्य ही हैं जो इसे आगे बढ़ा रहे हैं, नौ दिवसीय व्याख्यान आयोजित कर रहे हैं, और इस फा के बारे में प्रचार कर रहे हैं। यद्यपि प्राचीन शक्तियां कुछ चीजों को नियंत्रित कर रही हैं, वे इसे रोक नहीं पायी हैं, और बहुत से लोग अभी भी इसे सीखने आ रहे हैं। ऐसा क्यों है? क्योंकि यह फा वास्तव में लोगों की साधना का मार्गदर्शन कर सकता है, यह वास्तव में लोगों को सुधार करने में सहायता कर सकता है, और वास्तव में किसी प्राणी की स्थिति को परिवर्तित कर सकता है। मुख्यभूमि चीन में दुष्टता बहुत अधिक दमन कर रही है, और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में दाफा शिष्यों द्वारा अनुभव किया गया दुष्टता का दबाव भी बहुत अधिक है। तो वे दुष्टता का सामना करने और सफल होने में सक्षम क्यों हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे इस फा को जान गये हैं और उन्होंने वास्तव में इस फा और अपनी साधना के माध्यम से स्वयं में सुधार किया है। निश्चित ही, शीघ्र ही समझ के बहुत उच्च स्तर तक पहुँचने की इच्छा करना वास्तविक नहीं है। लेकिन, धीरे-धीरे फा का अध्ययन करने से आप सब कुछ समझ जाएंगे।

जहाँ तक मोहभाव का विषय है, यदि आज गुरू आपको इस या उस चीज से छुटकारा पाने के लिए कहते हैं, तो यह कुछ थोपने जैसा होगा, और इससे छुटकारा पाने की कोई भी इच्छा आपके मन से नहीं आयेगी। और जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा, जब गुरू द्वारा ऐसी बहुत सी बातें कहने के बाद आप इसे और सहन नहीं कर पाएंगे, तो आप नाराज हो जाएँगे और सोचेंगे, "मुझे ऐसा क्यों करना चाहिए?" लेकिन जब आपने फा के सिद्धांतों से चीजों को समझ लिया है और यह समझ लिया है कि ऐसा करने से आपके अस्तित्व पर क्या प्रभाव पड़ सकता है, वास्तव में तभी आपमें सुधार होगा, और तभी आप वास्तव में ऐसा करने में सक्षम होंगे। बाहरी प्रतिबंध कभी भी आपकी अपनी इच्छा या आपके द्वारा किए गये सच्चे सुधार से नहीं आते हैं। प्रतिबंध और बल से कभी किसी में परिवर्तन नहीं लाया जा सकता या उसमें सुधार नहीं लाया जा सकता। और एक बार प्रतिबंध हट जाने के बाद, व्यक्ति फिर से वैसा ही हो जाएगा जैसा वह पहले था, इसलिए यह काम नहीं करता।

शिष्य: 1999 में दमन शुरू होने के बाद से, कुछ शिष्य जो श्रम शिविरों से बाहर निकले थे, बौद्ध धर्म का अभ्यास करने चले गये हैं। सच तो यह है कि वे सभी भयभीत थे।

गुरूजी: मुझे लगता है कि यदि वे भय से भरे हुए हैं, तो चाहे वे कहीं भी जाएँ, वे वास्तव में साधना नहीं कर पाएँगे, और वे फल पदवी तक नहीं पहुँच पाएँगे। एक बार जब वे बौद्ध धर्म अपना लेंगे, तो वे देखेंगे कि यह कैसा है। उन शिष्यों की तुलना में जिन्होंने स्वयं का अच्छी तरह से आचरण किया है, उन्होंने निश्चित रूप से बुरा प्रदर्शन किया है। वे तब जुड़े जब दाफा ने उन्हें लाभ पहुँचाया, लेकिन जब दाफा का दमन किया गया तो वे भाग गये। उन्होंने लाभ उठाया, लेकिन जब हम दमन का विरोध कर रहे हैं, तो वे दाफा का पक्ष नहीं ले रहे हैं और फा का मान्यकरण नहीं करना चाहते हैं। देवताओं की दृष्टि में इस प्रकार का प्राणी सबसे बुरा है। जहाँ तक साधना के संदर्भ में उन्हें क्या बताना है, तो आप बस उन्हें यह सुझाव दे सकते हैं कि वे वही करें जो उनके लिए अच्छा है; कोई विशेष तरीका नहीं है। एक व्यक्ति क्या चाहता है यह उस पर निर्भर करता है।

शिष्य: मध्य पूर्व का क्षेत्र निरंतर युद्ध से त्रस्त रहा है, और वहां के लोगों को फा प्राप्त करने का अवसर नहीं मिला है। कृपया हमें बताएं कि दाफा शिष्यों को उस क्षेत्र में फा का प्रसार कैसे करना चाहिए?

गुरूजी: यह वास्तव में कठिन है। यह सब प्राचीन शक्तियों का काम है। अमेरिकी सरकार जानती है कि फालुन गोंग के शिष्यों का अत्याधिक दमन हो रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका की स्थापना आस्था की स्वतंत्रता पर हुई थी और वे मानवाधिकारों का समर्थन करते हैं। अमेरिका में पहले अप्रवासी प्यूरिटन लोग थे, जो आस्था की स्वतंत्रता के लिए इस भूमि पर आये थे। दाफा शिष्यों के दमन में सीधे तौर पर अमेरिका के सबसे मौलिक हित और इसके सैधांतिक मूल्य सम्मिलित हैं, लेकिन अमेरिकी सरकार इसमें सम्मिलित क्यों नहीं हुई? उनकी स्थिति को समझने का प्रयास करते हुए, मैं कहूंगा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि प्राचीन शक्तियां मध्य पूर्व क्षेत्र में समस्या उत्पन्न कर रही हैं, जिसने अमेरिका को उलझाए रखा है और उसे चीन पर ध्यान केंद्रित करने और दाफा शिष्यों के दमन के बारे में कुछ करने से रोक रखा है।

यदि यह अभी आतंकवादियों के मुद्दे से जुड़ी नहीं होती, तो मेरा मानना है कि अमेरिकी सरकार निश्चित रूप से आज के संसार में इस प्रकार की दुष्टता को नहीं होने देती। ऐसा इसलिए है क्योंकि संसार में अमेरिका की भूमिका व्यवस्था बनाये रखना है—यह वास्तव में अंतरराष्ट्रीय पुलिस है। देवताओं ने इसे इतना शक्तिशाली और समृद्ध क्यों बनाया? देवता चाहते थे कि यह संसार में यही भूमिका निभाये। चीन मानव जाति के इस नाटक का मुख्य मंच है, यह वह स्थान है जहाँ मुख्य नाटक खेला जाता है। लेकिन किसी को थिएटर में व्यवस्था बनाये रखनी होगी—आप इसे अव्यवस्थित नहीं होने दे सकते, है ना? तो सच तो यह है कि देवता वास्तव में चाहते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका ऐसा करे। सी सी पी हमेशा अमेरिका की "अंतर्राष्ट्रीय पुलिस" बनने के लिए आलोचना करता है। जो भी हो, यह अंतरराष्ट्रीय पुलिस है, और देवता चाहते हैं कि ऐसा ही हो। यदि अमेरिकी सरकार वास्तव में उस उत्तरदायित्व को पूरा नहीं करती है और वह भूमिका नहीं निभाती है, तो देवता इसे इतना शक्तिशाली या समृद्ध नहीं बनाना चाहेंगे। ऐसा नहीं है कि अमेरिकी लोग विशेष हैं, बल्कि ऐसा है कि देवताओं ने उसे इस प्रकार से व्यवस्थित किया है। (गुरूजी मुस्कुराते हैं)

शिष्य: मेरे और मेरे आस-पास के कुछ दाफा शिष्यों के हाल ही में बच्चे हुए हैं। ऐसा लगता है कि अब हमारे पास तथ्यों को स्पष्ट करने के लिए उतना समय नहीं है जितना पहले था, और हम इससे थोड़े परेशान हैं।

गुरूजी: मुझे नहीं लगता कि यह कोई समस्या है। बहुत से दाफा शिष्यों के बच्चे हैं। यदि बच्चा बहुत छोटा है, तो बच्चे की देखभाल में अधिक समय बिताना ठीक है। जब आपके पास समय हो तो आप तथ्यों को स्पष्ट करने के लिए काम कर सकते हैं, और जब आपके पास कम समय हो तो आप थोड़ी बहुत सहायता करने की भूमिका निभा सकते हैं, और यह भी ठीक होगा। जब बच्चा बड़ा हो जाता है और समय बचता है, तो आप अधिक काम कर सकते हैं, और यह ठीक होगा।

शिष्य: (अनुवादित प्रश्न) जब हम अत्याचार-विरोधी प्रदर्शन आयोजित करते हैं, तो बहुत से साधारण लोग एक ही दिन में कई बार गुजरते हैं और हमारी सत्य-स्पष्टीकरण सामग्री पहले ही ले चुके होते हैं, लेकिन कुछ चीनी साथी साधक फिर भी उनके पास जाते हैं और उनके हाथों में सामग्री थमा देते हैं।

गुरूजी: शायद वे भिन्न शिष्य थे और उन्हें नहीं पता था कि वे लोग पहले ही सामग्री ले चुके हैं, इसलिए उन्होंने उन्हें फिर से वही सामग्री दे दी। आपको इस संबंध में कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसे-जैसे समय बीतता है, जब कुछ लोग आपसे परिचित हो जाते हैं और उन्हें सत्य स्पष्ट हो जाता है, यदि आप वही सामग्री उनके हाथों में थमा देते हैं जो आपने उन्हें पहले दी थी, तो यह वास्तव में संसाधनों को व्यर्थ करना है। इसे साधारण लोगों के जैसे सामग्री वितरित करना न समझें, जहाँ यदि आपने सबकुछ वितरित कर दिया तो आपका काम हो गया। आप चेतन प्राणियों को बचा रहे हैं। अन्यथा आप यहाँ [न्यूयॉर्क में] किस लिए हैं?

शिष्य: अटलांटा शहर और जॉर्जिया राज्य सीनेट चीनी वाणिज्य दूतावास स्थापित करने के लिए दबाव डाल रहे हैं। क्या ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हमारा सत्य-स्पष्टीकरण पर्याप्त शक्तिशाली नहीं रहा है, या यह प्राचीन शक्तियों के हस्तक्षेप के कारण है?

गुरूजी: वे जो बनाना चाहें बना सकते हैं, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। वे वाणिज्य दूतावास स्थापित करते हैं या नहीं, इससे हमारा कोई लेना-देना नहीं है। और कौन जानता है कि भविष्य में यह किसका वाणिज्य दूतावास होगा। (श्रोता हंसते हैं) वास्तव में, हमें साधारण लोगों के मामलों से कोई सरोकार नहीं है। हम केवल साधना करने वाले हैं। देखिए चीन अब कैसा है। सी सी पी इस समय वास्तव में ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठी है, किनारे से गिरने ही वाली है। यह सतह पर भव्य और ऊंची उड़ान भरती दिखती है, लेकिन अब इसका कोई उपचार नहीं बचा है। सतह पर इसके वस्त्र आकर्षक हैं, लेकिन अंदर से यह पूर्ण रूप से सड़ चुकी है।

शिष्य: अब तक न्यूयॉर्क में फा-सुधार किस चरण तक पहुँच चुका है?

गुरूजी: कोई चरण नहीं है। बस सत्य को स्पष्ट करें, लोगों को [तथ्य] बताकर उन्हें समझने में सहायता करें, और संसार को सत्य से अवगत होने में सहायता करें। आप वास्तव में जो जानना चाहते हैं वह यह है कि अब समग्र स्थिति क्या है। वास्तव में, जब से आपने इस प्रकार से सत्य को स्पष्ट करना शुरू किया है, तब से न्यूयॉर्क शहर में रहने वाले बहुत से लोग सत्य को समझ गये हैं। वास्तव में आधे से अधिक लोगों ने। उन्होंने चीजों को जल्दी समझ लिया। लेकिन जो लोग केवल न्यूयॉर्क में काम करते हैं और यहाँ नहीं रहते हैं, वह केवल एक छोटा भाग ही है। यही स्थिति है।

शिष्य: सुरक्षा के मुद्दों के कारण, कुछ चीजें हैं जिन्हें हम गुप्त रखना चाहते हैं। लेकिन इसको कड़ाई से लागु करना शिष्यों के बीच आदान-प्रदान और संचार को बाधित करता है और लोगों के उत्साह को कम करता है। हम इसे बेहतर तरीके से कैसे संभाल सकते हैं?

गुरूजी: साधकों, आप जानते हैं, दूसरों के बारे में सोचना चाहिए चाहे वे कुछ भी कर रहे हों, और इससे भी अधिक उन्हें दाफा के बारे में सोचना चाहिए। इसलिए जब कोई आपको कुछ नहीं बताता है तो परेशान न हों। कुछ परियोजनाओं पर बड़ी बैठकों में चर्चा नहीं की जा सकती, वे सभी को नहीं बतायी जा सकतीं। जब बड़ी संख्या में लोगों को ऐसी परियोजना के बारे में पता चलता है, तो लोग अपनी सतर्कता कम कर देते हैं। एक व्यक्ति इसके बारे में बात करता है, और दूसरा इसके बारे में बात करता है, और इससे पहले कि आप कुछ समझ पाएं, चीन के गुंडों के गिरोह के गुप्त एजेंटों को भी इसके बारे में पता चल जाता है। आप जो कुछ भी करते हैं, उस पर निगरानी रखने और चोरी छुपे सुनने के उनके तरीके अब हमारे नियंत्रण में नहीं रहे हैं। चाहे आपका फोन चल रहा हो या बंद हो, वे आपकी बातें सुन सकते हैं। इसलिए सुरक्षा बनाये रखने के लिए, चेतन प्राणियों को बचाने के लिए आप जो भी काम करते हैं, उन्हें करने से पहले व्यापक रूप से नहीं बताया जा सकता। आपको इस बिंदु पर स्पष्ट होना चाहिए : आपको इसे शिष्यों पर छोड़ देना चाहिए [जब वे आपको चीजों के बारे में नहीं बताते हैं]। वे आपसे चीजें छिपाने का प्रयास नहीं कर रहे हैं—वे उन्हें गुप्त रखने का प्रयास कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि आप सच्चाई को स्पष्ट करने के लिए एक कला प्रदर्शनी आयोजित करना चाहते हैं, और चीजें शुरू होने से पहले वाणिज्य दूतावास प्रदर्शनी वालों को डराने के लिए फ़ोन करता है, और कहता है, "यदि आप उन्हें प्रदर्शनी के स्थान का उपयोग करने देते हैं, तो देख लेना : विस्फोट हो जाएगा।" वे छलपूर्ण व्यवहार करने की किसी भी हद तक जा सकते है। इसलिए कुछ चीजों में हम बहुत से लोगों को सम्मिलित नहीं कर सकते। दाफा के शिष्यों के रूप में आपको हर शिष्य के प्रति समझदारी दिखानी होगी।

शिष्य: कुछ शिष्यों ने दाफा के लिए बहुत काम किया है और बहुत कुछ किया है, लेकिन काम करते समय वे अक्सर अपना संयम खो देते हैं। क्या ऐसे किसी व्यक्ति को साधना द्वारा फल पदवी प्राप्त हो सकती है?

गुरूजी: मुझे नहीं लगता कि इससे फल पदवी जैसी बड़ी चीज पर कोई प्रभाव पड़ेगा। वह अपना संयम क्यों खोएगा? निश्चित ही, यदि यह केवल क्रोधित होने की बात है, तो हम यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकते कि उसने बुरे तरीके से साधना की है। लेकिन, अपना संयम खोना वास्तव में बहुत बुरा प्रभाव डालता है। नए शिष्यों पर इसका प्रभाव बहुत अधिक होता है, यह लोगों को डरा कर भगाने के लिए काफ़ी है। आप सभी अभी भी साधना कर रहे हैं—आखिर, यह मनुष्य ही साधना कर रहे हैं, देवता नहीं—इसलिए आप गलतफहमी उत्पन्न करेंगे [जब आप क्रोधित होंगे] और व्यवधान उत्पन्न करेंगे। आप मतभेद रख सकते हैं या जितना चाहें उतना परेशान हो सकते हैं, लेकिन आपको फिर भी शांत तरीके से बात करने की आवश्यकता है। क्या ऐसा नहीं है कि हमारे दाफा शिष्यों को दुष्टता के विरुद्ध भी वार या अपमान का बदला नहीं लेना चाहिए? क्या आपको सहन नहीं करना चाहिए? धैर्यपूर्वक सत्य को स्पष्ट नहीं करना चाहिए? फिर जब आप अपना संयम खो देते हैं, तो वह किसलिए होता है? एक साधक को क्रोध करने का क्या कारण हो सकता है? और जब आप दूसरे साधकों के साथ होते हैं, तो क्या ऐसा और भी कम नहीं होना चाहिए? आप चाहे जो भी हों, आप साधना कर रहे हैं। आप हमेशा मेरे शिष्यों पर क्रोध क्यों करते हैं? क्या मैंने मेरे शिष्यों के प्रति आपको इस प्रकार के व्यवहार करने की अनुमति दी है?

शिष्य: मेरे प्रबल मोहभाव के कारण, फा सम्मेलन के समय मैंने हड़बड़ी में गुरूजी की कुछ तस्वीरें ले लीं और वे इतनी अच्छी नहीं आयीं। मुझे एहसास हुआ कि ऐसा करना गुरूजी का अनादर करना था।

गुरूजी: यही कारण है कि मैं आपको तस्वीरें न लेने के लिए कहता हूँ। जैसे ही कुछ शिष्य मुझे देखते हैं, "क्लिक-क्लिक-क्लिक", वे तस्वीरें लेना शुरू कर देते हैं। मैं इसके बारे में इतना चिंतित नहीं हूँ, और यदि तस्वीरें अच्छी नहीं आती हैं तो व्यक्तिगत रूप से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन तस्वीरें लेने के बाद आपको इसके बारे में इतना अच्छा नहीं लगेगा। बस अब से इसे ध्यान में रखें। जैसे कि मैंने अभी बताया, जब इसे संभालना कठिन हो जाता है, तो बस सभी तस्वीरें मुझे दे दें और मैं उनसे निपट लूँगा।

शिष्य: (गुरूजी: इसमें बहुत सारे शब्द हैं।) चीनी और पश्चिमी देशों के लोग सत्य-स्पष्टीकरण सामग्री वितरित करने के तरीके में अंतर है। उदाहरण के लिए, हमारे पश्चिमी शिष्य हमेशा अपने हाथों में पर्चे पकड़ते हैं और चुपचाप एक तरफ खड़े होकर लोगों द्वारा उन्हें लेने की प्रतीक्षा करते हैं। लेकिन बहुत कम लोग उन्हें लेने के लिए आगे आते हैं। लेकिन, [चीनी शिष्यों के साथ] विशेष रूप से ताइवान के शिष्य, वे हमेशा विनम्रता और उत्साह से उन्हें वितरित करते हैं, और साधारतः वे उनमें से बहुत से वितरित करने में सफल होते हैं। लेकिन अक्सर पश्चिमी शिष्यों द्वारा उन्हें ऐसा न करने के लिए कहा जाता है, विशेष रूप से जब हम अत्याचार विरोधी प्रदर्शनों में सत्य को स्पष्ट कर रहे होते हैं। कई कारणों से, हम आशा करते हैं कि पश्चिमी शिष्य सत्य को स्पष्ट करने में अधिक सक्रिय हो सकें और ऐसा नहीं सोचें कि उन्हें लोगों के [उनके पास आने] की प्रतीक्षा करनी चाहिए।

गुरूजी: मेरी समझ से हमारे पश्चिमी शिष्यों की भी यही सोच है, अर्थात उन्हें लगता है कि चूँकि हम जेन, शान, रेन की साधना कर रहे हैं, इसलिए हमें विनम्र होना चाहिए और लोगों को दाफा शिष्य की शान प्रदर्शित होनी चाहिए। निश्चित रूप से वे यही सोचते हैं, इसलिए वे सीधे लोगों से संपर्क नहीं करते और उनके आने की प्रतीक्षा करनी उचित समझते हैं जिससे वे स्वयं ही पर्चे ले लें। मुझे नहीं लगता कि इस दृष्टिकोण में कुछ अनुचित है, लेकिन फिर भी, लोगों को बचाना एक बहुत ही आवश्यक मामला है। दाफा शिष्यों ने घर की सुख-सुविधाओं को त्याग दिया है, अपने व्यावसायिक प्रगति का त्याग किया है और सभी प्रकार की चुनौतियों का सामना किया है, और इसके अतरिक्त उनकी आर्थिक स्थिति भी तंग है। इसलिए यहाँ आकर सच्चाई को स्पष्ट करना और लोगों को बचाना उनके लिए वास्तव में सरल नहीं रहा है। इसलिए, चूँकि यह लोगों को बचाने के बारे में है, इसलिए थोड़ा और सक्रिय होना अच्छा है। लेकिन आपको विनम्र होना होगा।

थोड़ा और विनम्र, और थोड़ा और सक्रिय, दोनों बनें। इस प्रकार लोग निराश नहीं होंगे और हम उन्हें सामग्री भी दे पाएंगे—मुझे लगता है कि यह बेहतर होगा। यदि आप लोगों के आने और उन्हें लेने की प्रतीक्षा करते हैं, जबकि यह संभव है कि आपके विचार उन लोगों को बचाने के बारे में हों और आप उन्हें [अपने मन में] कह रहे हों कि वे आकर ले जाएं, जब लोगों का मानवीय पक्ष शक्तिशाली हो जाता है, तो जागरूक पक्ष काम नहीं कर पाता है। उदाहरण के लिए, मैनहट्टन में रहने वाले लोग वास्तव में बहुत व्यस्त हैं। उनके मन में धन अर्जित करने, किसी से मिलने या किसी प्रकार का सौदा करने के विचार हो सकते हैं, और इसलिए वे हड़बड़ी में चले जाते हैं। इसलिए जब वे किसी चीज के बारे में सोच रहे होते हैं, तो आपके द्वारा भेजा गया विचार उनके जागरूक पक्ष को आपके पास आने और आपकी सामग्री लेने के लिए प्रेरित कर सकता है, लेकिन उनका मानवीय पक्ष अभी भी शक्तिशाली है, और इसलिए वे अवसर खो सकते हैं। इसलिए, मैं जो सोच रहा हूं, वह यह है कि यदि हम उनका विनम्रता से स्वागत कर सकें और थोड़ा और सक्रिय हो सकें तो यह बहुत अच्छा होगा।

मुझे पता है कि यह दृष्टिकोण हमारे पश्चिमी शिष्यों के लिए कठिन है। उन्हें हमेशा लोगों को तंग करने, उन्हें सक्रिय रूप से तंग करने के बारे में बुरा लगता है। लेकिन ऐसा नहीं है। आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि आप लोगों को बचा रहे हैं, और सब ठीक होगा। (तालियाँ)

शिष्य: मैनहट्टन में गगनचुंबी इमारतों में कर्मचारियों को सत्य स्पष्ट करते समय, हमें अभी भी बहुत सी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। हम प्राचीन शक्तियों द्वारा स्थापित बाधाओं और रुकावटों की परतों को तोड़ने में कैसे बेहतर कर सकते हैं, और इस प्रकार उन इमारतों में रहने वाले चेतन प्राणियों को मोक्ष दिला सकते हैं? क्या गुरूजी कृपया...

गुरूजी: हाँ, वास्तव में जब हम सत्य को स्पष्ट करने के लिए उन इमारतों में जाते हैं, तो वहाँ जाना वास्तव में कठिन होता है, क्योंकि वहाँ हर कोई काम कर रहा होता है। जब सब कोई काम कर रहा होता है, यदि हम सच्चाई को स्पष्ट करने के लिए वहाँ जाते हैं, तो उनके प्रबंधक निश्चित रूप से परेशान होंगे, और फिर वे हमारे बारे में बुरा सोचेंगे। निश्चित ही, इसका अर्थ यह नहीं है कि यह हमेशा ऐसा ही होता है। जब परिस्थितियाँ अनुकूल होती हैं तो हम ऐसा कर सकते हैं। जहाँ तक उन कंपनियों के कर्मचारियों की बात है, तो साधारणतः दिन के तीन समय होते हैं जब आप उनसे संपर्क कर सकते हैं। एक, जब वे काम पर जाते हैं, दूसरा, जब वे काम से वापस लौटते हैं, और तीसरा, जब वे दोपहर का भोजन करते हैं। उनमें से अधिकांश दोपहर का भोजन करने के लिए बाहर आते हैं। इसलिए उन तीन समयों पर हम उनसे संपर्क करने का प्रयास कर सकते हैं, और शायद परिणाम बेहतर होंगे।

शिष्य: मैं बीजिंग का दाफा शिष्य हूँ। [अमेरिका के लिए] प्रस्थान करने से पहले, मेरे साथी साधकों ने मुझसे कहा कि मैं गुरूजी को उनका नमन अवश्य पहुँचा दूँ। (गुरूजी : धन्यवाद। बीजिंग के शिष्यों को मेरा धन्यवाद।) (तालियाँ) हालाँकि वे सभी अनुभव करते हैं कि गुरूजी हमेशा उनके साथ हैं, लेकिन वे गुरूजी को बहुत याद करते हैं—गुरूजी का नाम सुनते ही उनकी नेत्रों में अश्रु आ जाते हैं। पिछले दो दिनों में मैंने विदेशी दाफा शिष्यों द्वारा आयोजित गतिविधियों में भाग लिया है, और इसे बहुत ही मन को छूने वाला पाया है। हालाँकि हम [बीजिंग में] दुष्टता के दूसरे केंद्र में हैं, कुछ साथी साधक एक ऐसी स्थिति में आ गये हैं जहाँ वे एक यांत्रिक दिनचर्या का पालन कर रहे हैं क्योंकि दमन लंबे समय से चल रहा है। यह विदेशी दाफा शिष्यों की तरह नहीं है, जो इतने परिश्रमी हैं और तत्परता की भावना बनाए रखते हैं। यहाँ वास्तव में ऐसा लगता है कि चीजों की गति बहुत तीव्र है और प्रत्येक दाफा शिष्य बहुत परिश्रमी है। मैं हमारे और विदेशी दाफा शिष्यों के बीच भिन्नता अनुभव कर सकता हूँ। मैं निश्चित ही लौटकर चीन में साथी साधकों के साथ साझा करूंगा कि मैंने मैनहट्टन में क्या अनुभव किया और न्यूयॉर्क फा सम्मेलन की भव्यता कैसी थी। हमें वास्तव में गति बढ़ाने और हमेशा परिश्रमी रहने की आवश्यकता है। गुरूजी अपने मन को शांत कर सकते हैं : हम इसे प्राप्त करेंगे, हम निश्चित रूप से करेंगे।

गुरूजी: मुझे आप पर विश्वास है। (तालियाँ) वास्तव में मुख्यभूमि चीन में दुष्टता, वहाँ और संसार भर में दाफा शिष्यों के आपके द्वारा वर्णित कार्य करने और ऐसे प्रयास करने से काफी डर गयी है। इसने दमन को रोकने में बहुत सहायता की है, और इस प्रकार बहुत सारी दुष्टता नष्ट हो गयी है। इसलिए, जब परिस्थिति ऐसी है, यदि हमारे पास अभी भी ऐसे शिष्य हैं जो अपने मन के डर के कारण आगे नहीं बढ़ रहे हैं और काम नहीं कर रहे हैं, तो वे वास्तव में अपना अवसर खो रहे हैं। कुछ लोग कहते हैं, "हम जानते हैं कि गुरूजी अच्छे हैं और हम जानते हैं कि दाफा अच्छा है। हम घर पर [फा] का अध्ययन कर रहे हैं और वहाँ गुप्त रूप से अभ्यास कर रहे हैं।" लेकिन सच तो यह है कि दाफा आपको पारित किया गया है, और यह इसलिए किया गया है जिससे आप सभी प्राणियों को बचा सकें, यह आपके लिए और भी अधिक शक्तिशाली सदगुण स्थापित करने और सभी प्राणियों के प्रति उत्तरदायी होने के लिए है। क्या मैंने पहले यह नहीं कहा है : भविष्य के जीव अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए कुछ करेंगे? यह प्रक्रिया बिल्कुल वैसी ही है जिसमें आपके अंदर ऐसे गुण गढ़े जाते हैं, इसलिए आप केवल अपने बारे में नहीं सोच सकते। आपको किस बात का भय है? ऐसा लगता है कि हर चीज से। हाँ, जब इतना क्रूर दमन हो रहा है, तो मैं शिष्यों को भी दमन सहते हुए नहीं देखना चाहता। लेकिन वर्तमान स्थिति धीरे-धीरे परिवर्तित हो रही है, और इसका अर्थ है कि हमें और भी बेहतर करना चाहिए। वास्तव में, जिन शिष्यों ने हमेशा बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है, क्या उन्हें गंभीर, क्रूर दमन से नहीं गुजरना पड़ा था?

इसलिए मेरी आशा है कि मुख्यभूमि चीन के शिष्य वास्तव में चीन के बाहर के शिष्यों से सीख प्राप्त कर सकते हैं और उनका अनुकरण कर सकते हैं। आप पर दुष्टों के दमन को कम करने के लिए, देखें कि वे क्या कर रहे हैं। उन्होंने बहुत परिश्रम किया है। कुछ लोग शायद ही सो पाते हैं, प्रत्येक व्यक्ति कई काम कर रहा है, और वे सभी बहुत सारी परियोजनाओं को संभाल रहे हैं। और मैं उनमें से केवल कुछ के बारे में बात नहीं कर रहा हूँ—यह उनमें से अधिकांश के बारे में है, और वे वास्तव में कड़ा परिश्रम कर रहे हैं। इसलिए, जब हम चीजों की तुलना करते हैं, चाहे उनका वातावरण शांत और आरामदायक हो, दाफा शिष्यों के रूप में, यह अभी भी परिश्रमी होने के बारे में है। यदि बहुत कठिन परिस्थितियों में आप चीजें करने में विफल रहे या उन्हें अच्छी तरह से करने में विफल रहे, तो शायद यह वास्तव में परिस्थितियों का परिणाम था। लेकिन अब चीजें बदल गयी हैं और आपको आगे बढ़ना चाहिए और अच्छा करना चाहिए।

पहले, जब इतनी सारी दुष्टता यहाँ केन्द्रित कर दी गयी थी, तब त्रिलोक में दुष्टता व्याप्त हो गयी थी, और हवा में भर गयी थी। साँस लेने पर यह आपके पेट में समा जाती—इतनी दुष्टता थी। दुष्टता सभी ओर थी, और हर छोटी-बड़ी चीज पर उस दुष्टता का प्रभाव था। घास आपको गिरा देती थी, और पेड़ की शाखाएँ आपके चेहरे पर मारती थीं। जब आप दीवार के पास से चलते थे तो यह आपके सिर पर वार करती थी। यह सब आपको स्वाभाविक लगता था, लेकिन ऐसा नहीं था—दुष्टता इतनी सारी थी। अब जब दुष्टता को हटा दिया गया है और हमारे आस-पास का वातावरण पहले से कहीं अधिक शांत और सहज हो गया है। कई क्षेत्रों में दुष्टता दाफा शिष्यों को देखते ही भाग जाती है। वह उन क्षेत्रों में जाने का साहस नहीं करती, क्योंकि वहाँ दाफा शिष्यों ने अच्छा काम किया है। फिर मैनहट्टन में इतने सारे दाफा शिष्यों के होते हुए, दुष्टता यहाँ आने का साहस क्यों करेगी? ऐसा इसलिए है क्योंकि प्राचीन शक्तियों के तत्व—जैसे कि कचरा एकत्रित कर रहे हों—दुष्टता को यहाँ ला रहे हैं, उसे यहाँ जमा कर रहे हैं, और उसे यहाँ एकत्रित कर रहे हैं, जिससे दाफा शिष्य और बहुत सारे देवता इसे हटा सके। अन्यथा दुष्टता बिल्कुल भी यहाँ आने का साहस नहीं करती।

अब जब हम मुख्यभूमि चीन को देखते हैं, तो वर्तमान में वातावरण जिस प्रकार है, यदि कुछ शिष्य अभी भी आगे नहीं बढ़ सकते हैं, तो वे वास्तव में अपना अवसर खोने वाले हैं। निश्चित ही, कई शिष्यों ने वहाँ बहुत अच्छा काम किया है, और वे हमेशा से ही काम करते आ रहे हैं। यह वास्तव में अद्भुत है।

शिष्य: वाणिज्य दूतावास के सामने पवित्र विचार भेजने के बारे में लोगों की भिन्न-भिन्न समझ है। कुछ लोगों का मानना है कि यदि हम हर अभ्यास के बाद पवित्र विचार भेजेंगे, तो दुष्टता को सांस लेने का भी अवसर नहीं मिलेगा। क्या यह सोच करुणा के विरुद्ध है?

गुरूजी: दाफा शिष्यों का दमन करने वाली दुष्टता को बस हटाना होगा। जहाँ तक चीजों की विशिष्टताओं का प्रश्न है, मैं उन्हें आप पर छोड़ता हूँ।

शिष्य आगे पूछता है : कुछ लोगों की समझ है कि इसे उस प्रकार से करना [जैसा मैंने बताया] मानवीय सोच का उपयोग करना है। पवित्र विचार भेजना एक गंभीर बात है, और फा के सिद्धांत यह निर्देश देते हैं कि चीजें तभी प्राप्त होती हैं जब हम इच्छाभाव से मुक्त होते हैं, कि हमें प्रकृति को अपने तरीके से चलने देना चाहिए। केवल तभी जब हम खड़े होकर व्यायाम करने के बाद और फिर ध्यान के बाद पवित्र विचार भेजते हैं, तो यह हमारी अपनी साधना को प्रभावित नहीं करेगा। क्या आप हमें बता सकते हैं कि व्यायामों को अलग-अलग कुछ घंटों के दौरान करने में कोई समस्या है?

गुरूजी: मोहभाव विकसित न करें। व्यायामों को करते समय निर्धारित की गयी आवश्यकताओं का पालन करें। जहाँ तक पवित्र विचार भेजने की बात है, आप इसे सामूहिक रूप से किए जाने के अतरिक्त, जब चाहें तब कर सकते हैं। मेरी सोच यह है कि व्यायाम करना केवल व्यायाम करना है, इसलिए उन्हें स्वाभाविक रूप से करें। जहाँ तक पवित्र विचार भेजने की बात है, आप इसे किसी भी समय, किसी भी स्थान पर कर सकते हैं। जब तक आप थके हुए नहीं हैं, आप उन्हें भेज सकते हैं, और यह ठीक होना चाहिए। आप जो भी व्यय करेंगे, वह शीघ्र ही पुनः प्राप्त हो जाएगा। केवल व्यायाम करने के लिए व्यायाम करने का कोई अर्थ नहीं है— व्यायाम आपके यंत्रों को शक्तिशाली करते हैं, और यह स्वचालित यंत्र ही हैं जो वास्तव में आपको ऊँचा उठाते हैं और आपकी शक्ति को पुनः प्राप्त कराते हैं। चौबीस घंटे आप गोंग और फा द्वारा परिष्कृत होते रहते हैं, इसलिए जब आप पवित्र विचार भेजते हैं, तो चाहे आप कितनी भी शक्ति उत्सर्जित करें, उसमें से कुछ भी व्यय नहीं होती। और जहाँ तक आपकी अलौकिक क्षमताओं की बात है, वे अपने आप वापस आ जाएँगी। अन्य चीजें जो व्यय हो जाती हैं, वे भी शीघ्रता से पुनः प्राप्त हो जाएंगी, और ऐसा इसलिए है क्योंकि आपका मानक उस ऊंचाई पर है। यह वैसा ही है जैसा मैंने कहा है : आपका गोंग कितना ऊंचा है, वह आपके शिनशिंग के उस ऊंचाई पर निर्भर करता है, क्योंकि वह एक मानक है। जब वह मानक उस ऊंचाई पर होता है, तो गोंग उस बिंदु तक जाने से स्वयं को नहीं रोक सकता, और इस प्रकार चीजें शीघ्रता से पुनः प्राप्त हो जाती हैं। गोंग को बढ़ाना वास्तव में बहुत सरल है। शिनशिंग को बढ़ाना कठिन है। इसीलिए गोंग को बढ़ाना इतना कठिन है। (तालियाँ)

मैंने अब सभी प्रश्न-पत्र पढ़ लिए हैं। (तालियाँ) हमारे दाफा शिष्य पिछले कुछ वर्षों में दाफा का मान्यकरण करने, सत्य को स्पष्ट करने और चेतन प्राणियों को बचाने के लिए वास्तव में कड़ा परिश्रम कर रहे हैं; बहुत से दाफा शिष्यों के लिए तो यह इतना कठिन है कि वे वास्तव में थकान अनुभव करते हैं, और बहुत से लोगों ने इन चीजों को करने के दौरान हर तरह की चुनौतियों पर विजय प्राप्त की है। आप यह कहे बिना नहीं रह सकते कि दाफा शिष्य अद्भुत हैं। वास्तव में, हालाँकि मैं कह रहा हूँ कि आप अद्भुत हैं, मैं केवल उन शब्दों को दोहरा रहा हूँ जो देवता उपयोग कर रहे हैं। वे ही कहते हैं कि आप अद्भुत हैं। यदि केवल मैं यह कह रहा होता कि आप अद्भुत हैं, तो ठीक है, मैं आपका गुरू हूँ, इसलिए निश्चित रूप से मैं अपने शिष्यों के प्रति थोड़ा पक्षपाती हूँ। जीवों की व्यापक श्रेणी को आश्वस्त करना था, और यही कारण है कि, चाहे यह कैसा भी प्रतीत हो, हमारे शिष्यों के लिए समस्त रूप से चीजें बेहतर हो रही हैं, चाहे आपको फा का मान्यकरण करते समय बहुत सी कठिनाईयों और असफलताओं का सामना करना पड़ रहा है।

ब्रह्मांड का फा द्वारा सुधार निश्चित रूप से सफल होगा। यहां तक कि प्राचीन शक्तियों द्वारा व्यवस्थित की गयी चीजें भी इसे सफल न होने देने का साहस नहीं कर सकतीं। केवल इतना है कि उनकी योजनाओं ने फा-सुधार में बाधा डाली और फा-सुधार में बहुत सी चीजों को हानि पहुंचायी, यही कारण है कि प्राचीन शक्तियों के कारकों को पूर्ण रूप से हटा दिया जाना चाहिए। दाफा के शिष्य यहां मानव संसार में हमेशा के लिए फा का मान्यकरण नहीं करेंगे, क्योंकि वह समय निश्चित रूप से आयेगा जब फा मानव संसार का सुधार करेगा। शीघ्र ही ब्रह्मांड में दाफा द्वारा किया जा रहा फा-सुधार समाप्त हो जाएगा। लोग अब जानते हैं कि ब्रह्मांड आकाशगंगा से और दूर होता जा रहा है। दूसरे शब्दों में, यह सब केवल कुछ ऐसा नहीं है जो केवल मैं कह रहा हूं, और यह ऐसा कुछ नहीं है जिसे केवल दाफा शिष्य ही जान सकते हैं : यहां तक कि मनुष्य भी धीरे-धीरे इसे जान जाएंगे।

मनुष्य जिस पर विश्वास नहीं करता, वह सब उसकी अपनी आँखों के सामने प्रकट हो जाएगा। अतीत का हर अनसुलझा रहस्य यहाँ मानव संसार में सामने प्रकट होगा, और जब ऐसा होगा, तब फा द्वारा मानव संसार के सुधार का समय आ गया होगा। आप दाफा शिष्यों ने जो कुछ भी किया है, उससे आपने स्वयं को दाफा द्वारा आपको आगे बढ़ने के लिए दी गयी सभी बातों के योग्य सिद्ध किया है। मैं कह सकता हूँ कि दाफा शिष्यों द्वारा फा का मान्यकरण करने से, पूर्ण रूप से, वह प्राप्त हुआ है जो उसे प्राप्त होना चाहिए था, और उन्होंने अपने उत्तरदायित्व पुरे किये हैं। (तालियाँ) और यद्यपि अभी भी यात्रा का शेष भाग तय करना शेष है, और यद्यपि कुछ कार्य किए जाने शेष हैं, मुझे लगता है कि इनमें से किसी में भी समस्या नहीं होनी चाहिए, क्योंकि सबसे कठिन समय बीत चुका है और सबसे बुरी अवधि समाप्त हो चुकी है। (तालियाँ) आगे का मार्ग और अधिक चौड़ा होता जाना चाहिए, सब कुछ और अधिक स्पष्ट होता जाना चाहिए, और आप और अधिक परिपक्व होते जाएँगे। और साधक होने के नाते, आपको दाफा शिष्य की शिष्टता और आचरण को और भी अधिक अपनाना चाहिए। आने वाले समय में दाफा शिष्यों को संपूर्ण फा-सुधार प्रक्रिया के दौरान उन्होनें जो कुछ भी किया है उन सभी का प्रतिफल दिया जाएगा। और यहां तक कि जब मानवजाति द्वारा झेले गये दमन और हानि की बात आती है, तो आने वाले समय में मानवजाति को भी प्रतिफल दिया जाएगा। (तालियाँ) दाफा मानवजाति के लिए एक भविष्य स्थापित करेगा, और जब कोई व्यक्ति इस समय के दौरान जब दाफा का प्रसार हो रहा है और दाफा शिष्य दमन किये जाने की कठोर स्थिति में हैं, तब वह व्यक्ति उचित तरीके से कार्य कर सकता है, उस प्रकार के व्यक्ति को पुण्य दिया जाना चाहिए। ऐसे व्यक्ति ने वही किया है जो एक व्यक्ति से अपेक्षित है, इसलिए भविष्य में उनके लिए, मानव जीवन के अनुकूल एक वास्तविक, सच्चा वातावरण स्थापित किया जाएगा।

शीघ्र ही सब कुछ बदल जाएगा, लेकिन दाफा शिष्यों के रूप में, आप फल पदवी से पहले किसी भी तरह से विचलित नहीं हो सकते। आपको वही करना चाहिए जो आपको करना है, जैसा कि आप हमेशा से करते आये हैं। यदि आपका एक भी विचार या धारणा अतिवादी है, और यदि आप परिणामों पर विचार नहीं करते हैं, या यदि आप दाफा के हित के बारे में नहीं सोचते हैं, तो मैं आपको दूँ, आप अपने मार्ग पर ठीक से नहीं चले हैं। चूँकि आपका मार्ग भविष्य के लिए छोड़ा जाना है, इसलिए आपको इसे स्थापित करने में सफल होना चाहिए। आपकी साधना का लक्ष्य स्वयं की फल पदवी से परे है, क्योंकि आपको चेतन प्राणियों को बचाना है, और आप भविष्य के जीवों के लिए उस भविष्य को स्थापित करने में सहायता कर रहे हैं। आपका उत्तरदायित्व बड़ा है, लेकिन आपको मिलने वाला प्रतिफल बहुत विशाल है। बाद में आपको जो मिलेगा वह आपने जो किया है उससे कहीं अधिक होगा, चाहे वह जितना भी हो। इसलिए मुझे आशा है कि आप किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होंगे। चाहे लोगों द्वारा दाफा पर निर्णय बदला जाता है या नहीं, चाहे कोई नई परिस्थिति आये या न आये, जो भी हो, दाफा शिष्यों को अभी भी उन चेतन प्राणियों को बचाना चाहिए जिन्हें बचाने की आवश्यकता है। फल पदवी प्राप्त होने तक आपको जो करना चाहिए, वह करते रहें!

(दीर्घ समय तक, उत्साही तालियाँ)




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